Description
कला-विमर्श | ||
1. | आदिवासी अस्मिता के सवाल और हिन्दी रंगमंच: डॉ. अनिल शर्मा | 10-18 |
2. | प्रारम्भिक भोजपुरी सिनेमा में गीत-संगीत और उसका वैशिष्ट्य: डॉ. संगीता राय | 19-36 |
3. | लोकगीतों के फकीर बादशाह : देवेंद्र सत्यार्थी- बी आकाश राव | 37-50 |
दलित एवं आदिवासी -विमर्श | ||
4. | समकालीन दलित महिला काव्य में स्त्री का प्रतिरोध: उषा यादव | 51-57 |
5. | हिंदी कविता में आदिवासी प्रतिरोध: विकल सिंह | 58-65 |
भाषिक-विमर्श | ||
6. | दक्खिनी भाषा, साहित्य और इतिहास का पुनःपाठ: राजकुमार | 66-74 |
मीडिया-विमर्श | ||
7. | दूसरे दौर की पत्रकारिता और समसामयिक समीकरण: डॉ. सरोज कुमारी | 75-80 |
शिक्षा-विमर्श | ||
8. | GANDHIAN EDUCATION AND ITS RELEVANCE FOR SUSTAINABLE RURAL DEVELOPMENT IN INDIA: Rajni Kant Dixt | 81-90 |
स्त्री- विमर्श | ||
9. | प्रतिरोधी समाजव्यवस्था एवं इक्कीसवीं सदी की हिंदी स्त्री आत्मकथाएँ: सुप्रिया प्रभाकर जोशी | 91-97 |
10. | स्त्री चेतना में महादेवी वर्मा के स्वर: डॉ. शमा खान | 98-102 |
11. | ‘वर्तमान समय में नारी की बदलती दशा व दिशा’
(‘पंचकन्या’ उपन्यास के विशेष संदर्भ में): वंदना पाण्डेय |
103-108 |
साहित्यिक-विमर्श | ||
12. | 21 वीं सदी में हिन्दी भाषा का सवाल- एक वाजिब सवाल
(हिन्दी उपन्यासों के विशेष संदर्भ में): डॉ. मंजू कुमारी |
109-136 |
13. | मुक्तिबोध की पहचान का संघर्ष: अभी अलिखित पुस्तक हूँ! – रमेश कुमार राज | 137-146 |
14. | निर्मल वर्मा के उपन्यासों में मूल्य-विघटन से प्रभावित बाल-जीवन: डॉ. सोमाभाई जी. पटेल | 147-151 |
15. | स्कन्दगुप्तः राष्ट्रीय चेतना का जीवन्त दस्तावेज: ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह | 152-162 |
16. | संत कबीर के काव्य का समाजशास्त्रीय अध्ययन: गौरव वर्मा | 163-170 |
17. | राकेश कबीर की कविताओं में पर्यावरण चिंतन: लक्ष्मी डागर | 171-176 |
18. | मीरा के काव्य में स्त्री मुक्ति के स्वर: कुमकुम पाण्डेय | 177-182 |
19. | नागार्जुन: कविता की अदालत में खड़ा जनता का वकील: बिमलेंदु तीर्थंकर | 183-189 |
20. | जहां कोई वापसी नहीं :विकास या विस्थापन- डॉ. बीना जैन | 190-199 |
21. | एक कथाकार के रूप में कुँवर नारायण: डॉ. अमरनाथ प्रजापति | 200-210 |
22. | आदिवासी स्त्री के अंतर्मन और बाह्य जीवन की बेबाक अभिव्यक्ति:
डॉ. गंगाधर चाटे |
211-217 |
23. | अशोक वाजपेयी का मृत्यु चिंतन: संतोष कुमार | 218-232 |
24. | अंधविश्वास को मिटाने वाले प्रकाश पुंजः संत गुरू घासीदास- मनीष कुमार कुर्रे | 233-243 |
25. | प्रेमचंद के आलोचक और आलोचकों के प्रेमचंद: सुशील द्विवेदी | 244-250 |
राजनीतिक- विमर्श | ||
26. | लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी: लोकबंधु राजनारायण- निशा राय | 251-256 |
27. | गांधी आश्रम : अवधारणा, कार्य एवं प्रभाव- प्रिंस कुमार सिंह | 257-261 |
पुस्तक समीक्षा | ||
28. | समीक्ष्य पुस्तक – मैं कैसे हॅंसू (कहानी संग्रह)
समीक्षा आलेख – कठिन समय का दस्तावेज – मैं कैसे हॅंसू: सुषमा मुनीन्द्र |
262-265 |
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