Description
कला-विमर्श | ||
1. | Idea of form in tat aḍavu of Bharatanāṭyam dance style: Sonal Nimbkar | 10-28 |
2. | दिल्ली हिंदी रंगमंच का पार्श्वकर्म: डॉ. धर्मेन्द्र प्रताप सिंह | 29-33 |
3. | बिरसा मुंडा के जीवन और संघर्षों को दर्शाता नाटक ‘धरती आबा’: डॉ. कुमारी उर्वशी | 34-42 |
4. | इक्कीसवीं सदी का लोक और भोजपुरी सिनेमा: डॉ. अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, डॉ. अर्पिता कपूर | 43-49 |
5. | गाँव: श्याम बेनेगल की नज़र में- लक्ष्मी | 50-55 |
दलित एवं आदिवासी -विमर्श | ||
6. | दलित विमर्श और हिंदी की दलित आत्मकथाएँ: भारती | 56-61 |
7. | विमुक्त-घुमंतू जनजातियाँ: साहित्य और वर्तमान संदर्भ- डॉ. रक्षा गीता | 62-69 |
अल्पसंख्यक -विमर्श | ||
8. | साझा संस्कृति के मूल में निम्नवर्ग एवं मुस्लिम राजनीति: डॉ. नुसरत जबीं सिद्दिकी | 70-76 |
इतिहास | ||
9. | गुप्त कालीन ऐरण : ऐरण से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों का विश्लेषणात्मक अध्ययन: प्रिंस कुमार सिंह | 77-85 |
किन्नर-विमर्श | ||
10. | हिंदी उपन्यास और किन्नर समुदाय का संघर्ष: शिवांक त्रिपाठी | 86-96 |
11. | ‘मैं पायल’ – उपन्यास में चित्रित किन्नर जीवन
की महागाँथा का एक झलक: डॉ. नुरजाहान रहमातुल्लाह |
97-101 |
मीडिया- विमर्श | ||
12. | डिजिटल दुनिया और युवा पीढ़ी: दिव्या शर्मा | 102-105 |
शिक्षा- विमर्श | ||
13. | आधुनिक तकनीकी युग में गांधी की बुनियादी शिक्षा के प्रयोग,वर्तमान परिस्थिति और भाषा
(विशेष संदर्भ: वर्धा): सद्दाम होसैन, श्रीप्रकाश पाल |
106-113 |
14. | मध्यकालीन हिंदी काव्य के शिक्षण- शास्त्रीय आयाम: संगीता केशरी | 114-118 |
15. | नाच न जाने आँगन टेढ़ा: संदीप तोमर | 119-125 |
स्त्री-विमर्श | ||
16. | पितृसत्ता: अर्थ, उत्पत्ति एवं व्यापकता: पूजा मिश्रा | 126-132 |
17. | स्त्री विमर्श और ‘हंस’ पत्रिका : एक अध्ययन – नुरुल होदा | 133-139 |
18. | हिंदी नवजागरण और स्त्री: सुमित कुमार | 140-145 |
19. | स्त्री विमर्श और समकालीन हिंदी कविता: डॉ. गंगाधर चाटे | 146-158 |
20. | स्त्री का मानसिक पर्यावरण: लेखक मुद्राराक्षस के दृष्टिकोण से- रूपांजलि कामिल्या | 159-163 |
समसामयिक-विमर्श | ||
21. | Bouncing back from failure is our duty: Manish Singh | 164-165 |
22. | हिन्दी साहित्य और सिनेमा में एल०जी०बी०टी० समुदाय का मूल्यांकन: सविता शर्मा | 166-170 |
23. | वैकल्पिक विकास में जैविक कृषि की भूमिका: आशीष कुमार | 171-176 |
24. | ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की शिक्षक, शिक्षा और शिक्षार्थी ही आधार – प्रदीप सिंह | 177-179 |
साहित्यिक-विमर्श | ||
25. | 19वीं शताब्दी में हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन में भाषा संबंधी बहसें: संजय कुमार | 180-185 |
26. | साहित्य और कला के अध्ययन में मार्क्सवाद का महत्त्व:
अनीता |
186-188 |
27. | साहित्य के समाजशास्त्र की दृष्टि से मार्क्सवाद की उपयोगिता: रमन कुमार | 189-193 |
28. | दीर्घतपा : एक विश्लेषणात्मक अध्ययन- शेषांक चौधरी | 194-199 |
29. | फणीश्वरनाथ रेणु की ‘जलवा’ कहानी में देशप्रेम: डॉ० पवनेश ठकुराठी | 200-202 |
30. | निम्नवर्गीय आक्रोश और रेणु की रचनादृष्टि: डॉ. रामउदय कुमार | 203-206 |
31. | पूंजीवादी-उपभोक्तावादी संस्कृति और स्त्री
(विशेष संदर्भ- पंकज सुबीर की कहानियाँ): दिनेश कुमार पाल |
207-213 |
32. | तुलसी और समाज: डॉ. भारती मोहन | 214-216 |
33. | तुलसीदास से पहले के अवधी भाषा साहित्य में रामकथा संदर्भ: राम कुमार | 217-223 |
34. | हिन्दी भक्ति-काव्य में राम-महिमा: डॉ. चंद्रकांत सिंह | 224-229 |
35. | ‘रामलला नहछू’: सामाजिक सौहार्द का सांस्कृतिक समारोह- रमेश कुमार राज | 230-236 |
36. | पदमावत व मधुमालती में स्त्री पुरुष सम्बन्धों का तुलनात्मक अध्ययन: रेखा | 237-241 |
37. | नवजागरण के अग्रदूत श्रीनारायणगुरु: डॉ.विजी.वी | 242-246 |
38. | प्रसाद का आरंभिक काव्य: विराट संभावना का उन्मेष- डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय | 247-251 |
39. | महादेवी वर्मा की कविताओं में चित्रित प्रेम-भाव: अनुज कुमार | 252-258 |
40. | श्रृंखला की कड़ियाँ में निहित स्त्री-चेतना: डॉ. चैताली सिन्हा | 259-269 |
41. | ‘अवाक’: कैलाश मानसरोवर की अंतर्यात्रा का वृतांत- स्वाति चौधरी | 270-276 |
42. | मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में जातिप्रथा और नारी सशक्तिकरण: पुरबी कलिता | 277-280 |
43. | कुंवर नारायण का काल बोध: संतोष कुमार | 281-296 |
44. | बिक्रम सिंह की कहानियों समाजबोध के विविध आयाम: वीरेन्दर | 297-303 |
45. | शरद जोशी के स्तम्भों में प्रबुद्ध युगबोध का अवलोक: काजल कुमारी सिंह | 304-311 |
46. | रिटायरमेंट नौकरी से जिंदगी से नहीं: स्मृति कुमारी सिंह | 312-317 |
47. | स्वयं प्रकाश की कहानी कला: गौरव भारती | 318-338 |
48. | स्वर्णिम भारत के शब्द-साधक पद्मश्री गिरिराज किशोर: डॉ. सोमाभाई जी. पटेल | 339-345 |
49. | हिन्दी ग़ज़ल में फ़िक्र और ज़िक्र: डा. जियाउर रहमान जाफरी | 346-351 |
50. | दारगे नरबू : शव काटने वाला आदमी- विजय कुमार | 352-354 |
लेख | ||
51. | गुमनामी के अंधेरों में खोया सितारा : इंद्र बहादुर खरे- डॉ.नूतन पाण्डेय | 355-359 |
52. | स्त्री के दुख की अकथ गाथा का दस्तावेज:देह ही देश- मनोज शर्मा | 360-367 |
साहित्यिक रचनाएँ: कविता | ||
53. | अर्चना त्यागी की कविता | 368 |
54. | राजेन्द्र ओझा की कविता | 369 |
साहित्यिक रचनाएँ: कहानी | ||
55. | वजूद: डॉ. रंजना जायसवाल | 370-373 |
लोकसाहित्य एवं संस्कृति | ||
56. | हिमाचल प्रदेश और लोकजीवन: डॉ. ममता | 374-379 |
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