महाश्वेता देवी लिखित ‘1084वें की माँ’ उपन्यास 70 के दशक के बंगाल के सामाजिक एवं राजनीतिक माहौल को दर्शाता है । उस वक्त नक्सलवाद अपने चरमसीमा पर था । छात्रों, गरीबों और आम जनता में अपनी सरकार को लेकर भयंकर असंतोष फैला हुआ था ।
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