लघुकथा – झूठे रिश्ते
– मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
देर शाम तक मौसम रौद्ररुप दिखाता रहा। ओलों भरी बरसात ने मई के महीने को जनवरी जैसा ठण्डा बना दिया था। मौसम के इस बदलाव को रामेश्वर सहन नहीं कर पाये। रात बारह-एक बजे के बीच उनकी तबियत एकदम से बिगड़ गई। सर्दी-जुकाम ने उनके गले को बंद कर दिया। उन्हें घुटन सी महसूस हुई तो अपनी पत्नी को नींद से जगाकर सारा हाल बता दिया।
पत्नी भागी-भागी गई और बड़े बेटे के कमरे का दरवाजा खटखटाने लगी। बड़ी मुश्किल से बेटा जागकर बाहर आया।
‘क्या हुआ माँ ?’ उवासी भरता हुआ बोला।
रामेश्वर की पत्नी ने सारा घटनाक्रम बताया तो बेटे ने एकदम से अपने सिरपर दोनों हाथ मारे और बोला -‘ये लक्षण तो कोरोना के हैं।’
कोरोना का नाम सुनते ही सारे घर में हलचल सी मचगई। एक भयंकर डर ने सभी के सोचने-समझने की क्षमता को शून्य कर दिया। आनन-फानन में रामेश्वर के कमरे को बाहर से ताला लगा कर बंद कर दिया गया।
बेचारे रामेश्वर सुबह तक खाँसते-हाँफते हुए किसी तरह जिंदा बने रहे। सुबह तड़के सरकारी एम्बुलेंस आई और उन्हें ले गयी। पूरा परिवार दूर से ही उन्हें जाता देखता रहा। रामेश्वर जी को लग रहा था कि वे हास्पिटल नहीं यमपुरी को जा रहे हैं।
कुछ दिन बाद पता चला कि रामेश्वर को कोरोना नहीं हुआ था, क्योंकि उनकी हर रिपोर्ट निगेटिव आई थी। मौसम के बदलाव की वजह से सामान्य खांसी जुकाम
ने उनके शरीर में कोरोना वायरस संक्रमण जैसे लक्षण पैदा कर दिये थे।
रामेश्वर के घर वालों को उनके पूर्ण स्वस्थ होने का समाचार जैसे ही मिला। बेटा-बहू, पत्नी सब उन्हें लेने हॉस्पीटल पहुँच गये। पर यह क्या रामेश्वर ने घर जाने से स्पष्ट मना कर दिया। वे शहर के वृद्धाश्रम में जाने का फैसला पहले ही कर चुके थे, क्योंकि उस रात उन्हें झूठे रिश्तों की असलियत पता चल चुकी थी।
रामेश्वर की घरवाली दूर खड़ी मुंह में साड़ी का एक कोना दबाये रो रही थी तो दूसरी ओर खड़े बेटा-बहू रामेश्वर को मिलने वाली तीस हजार प्रतिमाह की पेंशन के मातम में फूट-फूटकर रो रहे थे, और रामेश्वर जी मुस्कराते हुए वृद्धाश्रम की गाड़ी में बैठकर चले गये।
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,
फतेहाबाद, आगरा 283111
9627912535