मध्यकाल की स्त्री रचनाकारों से जुड़ी जनश्रुतियाँ पीएच।डी। शोधार्थी, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली, फ़ोन न। 8447782321, ईमेल: jyotijprasad@gmail।com शोध लेख सारांश– प्रस्तुत शोध लेख में मध्यकालीन समय में प्रसिद्ध दो कवयित्रियों के साथ जुड़ी जनश्रुतियों का ज़िक्र किया गया है। इन श्रुतियों ने समय के साथ लोकस्मृति में अपना स्थान बदलते स्वरुप के साथ […]
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स्त्री-अस्मिता का सैद्धान्तिक पक्ष
स्त्री-अस्मिता का सैद्धान्तिक पक्ष डा॰ शर्वेश पाण्डे एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग डी॰ सी॰ एस॰ के॰ पी॰ जी॰ कालेज, मऊ वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर, उ॰ प्र॰ पूनम ठाकुर शोधार्थी हिन्दी डी॰ सी॰ एस॰ के॰ पी॰ जी॰ कालेज, मऊ वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर, उ॰ प्र॰ अस्मिता, मनुष्यता के विकासक्रम में मानवीय भूमिका को […]

भारतीय रंगमंच में स्त्रियों का प्रवेश-स्वाति मौर्या
रंगमंच के इतिहास को देखने पर यही मिलता है कि प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल के शुरुआती कुछ वर्षों तक स्त्रियों की भूमिका भी स्वयं पुरुष ही करते थे। जबकि भारत देश में हमेशा से ही विदुषी महिलाएं होती रही हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही थी। लेकिन यह विचारणीय प्रश्न है कि इतनी उन्नति परम्परा के रहते हुए भी रंगमंच में स्त्रियों की भूमिका पुरुष ही क्यों करते थे ? वैदिक काल से ही प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली स्त्रियों को मंचन के क्षेत्र में प्रवेश मिलने में इतना संघर्ष क्यों करना पड़ा ?

इक्कीसवीं सदी की हिंदी कहानियों में स्त्री की बदलती सामाजिक छवि
वर्तमान हिंदी कहानी स्त्री के सशक्त होते तमाम रूपों को उद्घाटित करती है जिनका अध्ययन करने से स्वतः सिद्ध हो जाता है कि- स्त्री अब स्वयं को अबला नहीं सबला के रूप में स्थापित करती है। वे अपनी अन्तः-बाह्य स्थितियों पर चिंतन-मनन करती हुई अपने लिए एक नयी राह के अन्वेषण में लगी है।