पर्यावरण की वर्तमान चुनौतियां व उनका समाधान
(अभिषेक रंजन, शोधार्थी, हिंदी विभाग, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद)संपर्क सूत्र: 9958308724ईमेल: aranjan.in@gmail.comशोध सारांश वर्त्तमान समय में हमारा समाज कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहा है । उन समस्याओं में पर्यावरण से सम्बंधित समस्या सर्वाधिक गंभीर समस्या है । आज हम सभी मनुष्यों ने अपने वातावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाया है जिसका खामियाजा हम आज अनेक प्रकार की गंभीर बिमारियों के रूप में कर रहे है । आज हमारा वातावरण पूरी तरह से दूषित हो गया है । पर्यावरण से छेड़-छाड़ का ही नतीजा है कि आज हम ऑक्सीजन के लिए अस्पतालों का चक्कर काट रहे है । कई तरह की गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ रहा है । अगर हम अभी भी नहीं चेते तो एक दिन ऐसा होगा जब हम शुद्ध हवा, पानी और भोजन सभी के लिए तरस रहे होंगे और तब हमारे सामने कोई मार्ग नहीं होगा । इसलिए पर्यावरण को बचाने के लिए हमें अपने आप से प्रण लेना होगा कि किसी भी परिस्थिति में हम अपने वातावरण को स्वच्छ, साफ़ और सुन्दर रखेंगे । जीव-जंतु और वनस्पतियों को नुकसान नहीं पहुचाएंगे ।बीज शब्द – पर्यावरण, पर्यावरण प्रदूषणप्रस्तावनापर्यावरण मनुष्य जीवन का मूल आधार है । पर्यावरण का मनुष्य जीवन से सीधा और गहरा सम्बन्ध है । मनुष्य को इस प्रकृति का पुत्र भी कहा जाता है । मनुष्य प्रकृति की गोद में पैदा होता है, खेलता है, वयस्क होता है तथा अंततः मृत्य की गोद में सो जाता है । पर्यावरण से तात्पर्य वनस्पति (पेड़-पौधे), जल, हवा, भोजन आदि से है । पर्यावरण ही मनुष्य जीवन को स्वच्छ, सुन्दर एवं सुखद बनाते है । पर्यावरण ही मनुष्य को साँस लेने के लिए हवा, पीने के लिए जल, खाने के लिए खाद्य पदार्थ (भोजन अर्थात् अन्न, फल एवं सब्जियाँ आदि) तथा निवास करने के लिए भूमि प्रदान करता हैं । पर्यावरण को समस्त भूमंडलीय विरासत एवं सभी संसाधनों की समग्रता के रूप में देखा जाता है । पर्यावरण के अंतर्गत सम्पूर्ण जैविक एवं अजैविक तत्व समाहित किये जाते है । ये जैविक एवं अजैविक तत्व सदैव एक दूसरे को प्रभावित करते रहते है । इस धरातल पर सभी प्रकार के जीवित तत्व जैसे- मनुष्य, पशु-पक्षी, वनस्पति (पेड़-पौधे), जलीय जीव (मछली) आदि जैविक तत्व के अंतर्गत आते है, तो वही हवा, जल, भूमि आदि अजैविक तत्व के अंतर्गत आते है ।पर्यावरण के तत्वों के बीच संतुलन का होना बहुत आवश्यक है । इन तत्वों में असंतुलन का होना ही पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनता है । यदि हम मनुष्य प्रकृति के बनाए नियमों को अच्छी तरह से समझकर प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग तथा उपभोग करेंगे तभी यह पर्यावरण संतुलन में बना रहेगा और हम मनुष्य जाति स्वस्थ एवं सुरक्षित रह सकेंगे ।अगर हम भारतीय सन्दर्भ में पर्यावरण की बात करते है तो पाते है कि हमारा भारत देश प्राचीन समय से ही प्रकृति की आराधना करता आया है । भारतीय संस्कृति में हम जल (नदी), वायु, भूमि आदि को देवी या देवता के रूप में प्रतिष्ठित करते आये है । किन्तु आज की स्थिति यह है की हम प्रकृति की महत्ता को भूल कर प्रतिदिन इसका दोहन करते जा रहे है । आज हम मनुष्यों ने अपने पर्यावरण को इतना अधिक दूषित कर दिया है कि यहाँ जीवन जीना दूभर होता जा रहा है । हमने संसाधनों का सर्वाधिक दुरूपयोग किया है । आज हमने विकास के दौर में कदम से कदम मिलाने के लिए अपनी हरी-भरी और सुन्दर पर्यावरण को नष्ट कर दिया है । आज हमारे चारों तरह बहुमंजिल इमारते खड़ी है । हमने अपने विकास के लिए अंकों जंगलों को नष्ट किया है । पशु-पक्षियों को हानि पहुंचाई है । विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 40 % फीसदी आबादी ऐसे स्थानों पर निवास करती है जहाँ न तो पीने योग्य पानी की व्यवस्था है और न ही उसकी आपूर्ति का कोई साधन । इसके अतिरिक्त 80 ऐसे देश है जहाँ पानी की व्यवस्था बड़ी ही मुश्किल से हो पाती है । विश्व बैंक के द्वारा यह भी चेतावनी जारी किया है कि भविष्य में अगर पानी की उचित व्यवस्था नहीं की गई तो पानी के लिए अगला युद्ध हो सकता है ।वर्तमान पर्यावरणीय समस्याएँमानव पर्यावरण का एक अभिन्न अंग है । पर्यावरण का निमार्ण प्रकृति के द्वारा किया जाता है । मानव और प्रकृति चिर काल से एक-दूसरे से संबद्ध है । 20 वी सदी के प्रारंभ से ही मानव ने भौतिक, आर्थिक और आर्थिक क्षेत्र में सर्वाधिक विकास किया । संतुलित वातावरण में ही जीवन का विकास संभव है । वर्तमान में मनुष्य ने विकास की आड़ में स्वयं को एक मशीन का पुर्जा मात्र बना दिया है जिस कारण से पर्यावरण में अनेकों समस्याएं उत्पन्न हो गयी है । पर्यावरणीय समस्याओं की वजह से मानव जीवन दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है । अगर मानव अभी से पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं हुआ तो भविष्य में इस धरती पर किसी भी प्राणी के लिए जीवन दुष्कर हो जाएगा । आज के समय के महत्वपूर्ण पर्यावरणीय समस्याएं निम्नलिखित है –- जनसख्या वृद्धि : किसी भी देश की वर्त्तमान स्थिति का आकलन उसकी आर्थिक विकास और जनसँख्या के आधार पर लगाया जा सकता है । किसी भी देश के विकास को इन दोनों कारकों के आधार पर तय किया जा सकता है । वर्तमान में भारत की जनसँख्या 121 करोड़ से अधिक हो गयी है जो कि हमारे लिए एक खतरनाक स्थिति को दर्शाता है । भारत की जनसँख्या वर्ष 2001 और 2011 की जनगणना की तुलना करते है तो हम पाते है कि इन 10 वर्षों में भारत की जनसँख्या में 17.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई । यह बढ़ोतरी भारत जैसे विकासशील देश के लिए बहुत सारी समस्याओं और चुनौतियों को जन्म देता है । भारत की जनसँख्या वृद्धि ने हमारे लिए बेरोजारी, गरीबी, महंगाई, खाद्य समस्या, कुपोषण, अपराध, स्वास्थ्य, ईंधन आदि जैसी गंभीर समस्या को उत्पन्न किया है । मई 2000 में गठित राष्ट्रीय जनसँख्या आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले 26 वर्षों में अर्थात् वर्ष 2026 में भारत की कुल जनसँख्या 140 करोड़ हो जाएगी । इसका अर्थ यह होगा की भविष्य में भारत जनसँख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा और विश्व में सर्वाधिक जनसँख्या वाला देश बन जाएगा । भारत जैसे देश में जनसँख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण है-
- जन्म और मृत्यु दरों में अंतर : अगर हम पिछले कुछ दशकों को देखे तो पाते है कि जन्म और मृत्यु दरों में कमी आई है । भारत में 2001 में हुए जनगणना के आंकड़ों को देखे तो हम पाते है कि जन्म दर 24.8 (प्रति 1000) तथा मृत्यु दर 8.0 (प्रति 1000) है । जन्म दर और मृत्यु दर में कमी होने के बावजूद दोनों में अंतर अधिक है तथा जन्म दर अधिक है । यही कारण है कि लगातार जनसँख्या में वृद्धि होती जा रही है ।
- गरीबी : भारत में जनसँख्या वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण गरीबी है । गरीबी और पर्यावरण आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए है । 1970 के दशक में में स्टॉकहोम में प्रथम विश्व पर्यावरण सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने भाषण में कहा था कि “गरीबी स्वयं सबसे बड़ा प्रदूषण है” । हमारा भारत प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है किन्तु यहाँ गरीबी भी उतनी ही जटिल समस्या के रूप में खड़ी है । देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीब है और इनका जीवन यापन प्राकृतिक वनस्पति पर निर्भर करता है । जीवन यापन के लिए जब प्राकृतिक वनस्पति का अंधाधुंध उपयोग होगा तब स्वाभाविक रूप से पर्यावरण की समस्या बढेगी ।
- अशिक्षा : अशिक्षा भी जनसँख्या वृद्धि में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । जब तक देश का हरेक व्यक्ति शिक्षित नही हो जाता और अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नही हो जाता तब तक जनसँख्या वृदि पर नियंत्रण संभव नहीं है । आज भी देश के बहुत हिस्से ऐसे है जहाँ लोगों में परिवार नियोजन सम्बन्धी जानकारी नही है और जिन्हें इसकी जानकारी है वे इसे ईश्वर और धर्म से जोड़ कर देखते है ।
- प्रदूषण
- जल प्रदूषण : जल प्रदूषण से तात्पर्य है जल में किसी भी प्रकार का अवांछित तत्व के मिल जाने से जल का दूषित या गन्दा हो जाना और पीने योग्य नहीं रहना । जल के दूषित होने में प्रमुख कारण है: कल-कारखानों से छोड़े जाने वाली गन्दगी, नाले और सीवर के गंदे पानी का नदियों में छोड़ा जाना, कृषि कार्यों में उपयोग की जाने वाली रासायनिक खाद आदि ।
- वायु प्रदूषण : जब हवा में अवांछित एवं जहरीली गैसे तथा धूलकण आदि मिल जाते है और प्रकृति तथा मानव को हानि पहुंचाते है तब ऐसी स्थिति को वायु प्रदूषण की स्थिति कहा जाता है । वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण है वाहनों से निकलने वाला धुआं, कल-कारखानों के चिमनी से निकालने वाला धुआं और रसायन, पेड़-पौधे के जलने तथा मरे जानवरों से निकलने वाली गंध आदि ।
- ध्वनि प्रदूषण : वातावरण में अत्यधिक तीव्र और असहनीय ध्वनि में लाउडस्पीकर आदि के उपयोग से ध्वनि प्रदूषण फैलता है । ध्वनि प्रदूषण के फैलने के निम्नलिखित कारण है पर्व-त्योहार या किसी भी प्रकार के उत्सव में लाउडस्पीकरों का अनियंत्रित उपयोग किये जाने से, अकारण वाहनों के हार्न बजने से, जेनरेटर तथा डीजल पम्पों के ध्वनि से आदि ।
- मृदा प्रदूषण : मृदा प्रदूषण से तात्पर्य है भूमि में जहरीली, अवांछित एवं अनुपयोगी पदार्थों के फेंके जाने से भूमि की उर्वरता एवं गुणवत्ता में कमी आना । मृदा प्रदूषण के निम्नलिखित कारण है कृषि कार्यों में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग किया जाना, प्लास्टिक की थैलियों को भूमि में दबाया जाना आदि ।
- प्राकृतिक संसाधनों का दोहन
- जैव विविधता में कमी
- ओजोन परत का क्षतिग्रस्त होना
- जनसँख्या वृद्धि पर रोक लगा कर लोगों को यह समझाया जाना चाहिए कि हम दो हमारे दो के सूत्र को अपनाए ।
- लोगों को परिवार नियोजन के विषय में जागरूक करते हुए यह बताया जाना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन करवाना चाहिए ।
- शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करके लोगों के अधिक बच्चों को जन्म देने के दृष्टिकोण को परिवर्तित किया जाना चाहिए ।
- लोगों में यह जागरूकता फैलानी चाहिए कि वे प्राकृतिक संसाधनों का सीमित रूप में प्रयोग करें और इसका दुरूपयोग नहीं करें ।
- वनों एवं जंगलों का विकास वृक्षारोपण के द्वारा किया जाए तथा वन प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाए ।
- पशुपालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।
- कृषि हेतु जैविक खाद का उपयोग किया जाना चाहिए ।
- विद्यालय से प्रारंभ करके महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय तक ‘पर्यावरण शिक्षा’ को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए ।
- वैसे पदार्थों का अधिक उपयोग किया जाना चाहिए जिनका पुर्नचक्रण और पुर्नउपयोग किया जा सके ।
- निजी वाहनों का कम से कम उपयोग किया जाना चाहिए ।
- सौर उर्जा और पवन उर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए ।
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