‘‘न्यू मीड़िया बनाम एवं संस्कृति’’
माधवी
हिन्दी विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
मो. 8447545614
ईमेल: yadavmadhavi066@gmail.com
सारांश
आज ‘न्यू मीड़िया’ संवाद का एक ऐसा जरिया बनकर उभर चुका है जहाँ इंटरनेट के माध्यम से पॉडकास्ट, ब्लॉग्स, सोशल साइट्स, टैक्सट मैसेजिंग आदि करते हुए एक-दूसरे से पारस्परिक संवाद धारण कर लेता है। जिसमें पाठक / दर्शक / श्रोता तुरंत अपनी टिप्पणी न केवल लेखक। प्रकाशक से साझा कर सकते हैं, बल्कि अन्य लोग भी प्रकाशित / प्रसारित / संचारित विषय वस्तु पर अपनी टिप्पणी दे सकते हैं।
बीज शब्द: मीडिया, संवाद, समाज, परिवर्तन
शोध आलेख
भारतीय संविधान के तहत मीड़िया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। मीड़िया ने हमारे समाज को हर क्षेत्र में प्रभावित किया है। अगर मीड़िया समाज के प्रति अपने दायित्व निभाये, सत्य पर अड़िग खड़े रहे तो उस समाज और राष्ट्र की नींव हिल नहीं सकती है। मीड़िया की जिम्मेदारी समाज को जागरूक करने की है और सही मार्ग दर्शन दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आज मीड़िया का स्वरूप ही बदल गया है। मीड़िया की जगह न्यू मीड़िया का वर्चस्व है। यह 21वीं सदी का मीड़िया है, इस मीड़िया ने अभी तक के चले आ रहे अभिव्यक्ति के तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि ‘‘न्यू मीड़िया एक ऐसा मीड़िया है जिसने फिल्म, छवियों, संगीत, मौखिक और लिखित शब्द जैसे पारंपरिक मीड़िया को कंप्यूटर की इंटरैक्टिव शक्ति और संचार प्रोद्योगिकी विशेषकर इंटरनेट से जोड़ दिया है।’’
आज हम चारों तरफ से न्यू मीड़िया के अवतार से घिरे हुए हैं। आज इसने हमारी दिनचर्या को पूरी तरह से प्रभावित किया है लेकिन आज हम इसके बिना अपनी निजी जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। आज हमारे दैनिक जीवन का कौन-सा क्षेत्र जिसमें मीड़िया की दखल न हो? शिक्षा, मनोरंजन, विज्ञान, पत्रकारिता निजी व सरकारी कार्यालय, बैंकिग, रक्षा, चिकित्सा, उद्योग वैश्विक बाजार, कृषि, मौसम, पर्यावरण, खेल, तकनीक सूचना प्रौद्योगिकी जैसे विविध और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इसका योगदान है।
कहाँ भारत अपनी प्राचीन संस्कृति और कला के लिए प्रसिद्ध है आज भी विश्व भर में भारतीय संस्कृति, कला, नृत्य, दस्तकारी शिल्प और परिधान की वजह से आज हम रोजमर्रा की जिदंगी में न्यू मीड़िया से इतने प्रभावित हैं। कि हम अपनी संस्कृति को फल-फूलने की बजाय नव संस्कृति को ग्रहण कर रहे हैं।
लेकिन स्थिति यह अपने देश में अपनी संस्कृति की स्थिति चिंताजनक है। नव संस्कृति के आने से समाज, कला, मनोरंजन या फैशन और पश्चिमी संस्कृति अंधाधुंध नकल में अपनी पुरानी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं आज न्यू मीड़िया के दौर में हमें अपनी संस्कृति को परिभाषित करने की जरूरत है। दस्तकारी, शिल्प, ऐतिहासिक स्मारक, विभिन्न राज्यों के विशिष्ट परिधान, अलग-अलग तरह से व्यंजन आदि भी हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है। हमारी भारतीय संस्कृति का मूल सूत्र है कि विश्वबंधुत्व और विश्वकल्याण की भावना है।
भारतीय संस्कृति न तो किसी जाति, संप्रदाय, वर्ग, कबीले, धर्म, फिर के समूह और सीमाओं की बात करती है बल्कि विश्व कल्याण भारतीय संस्कृति का मूल ध्येय है आज न्यू मीड़िया और नव संस्कृति ने पुरानी संस्कृति में मिलावट कर दी है। आज न्यू मीड़िया की क्रान्ति मानव समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था, संस्कृति, सामाजिक रिश्तों, पारिवारिक रिश्तों पर प्रभाव डाल रही है और असंतुलन की स्थिति पैदा हो गयी है। जहाँ भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम् परिवार और कुटुम्ब की परिकल्पना है वहीं वैश्विकरण या यू कहें ग्लाब्लाइजेशन, व्यापार और धंधा करने की कल्पना मात्र है। जो संस्कृति विश्वकल्याण और विश्व बंधुत्व की बात करती है उसे क्यों खंडित किया जा रहा है? उसके निहित कारक क्या है? वे कौन से कारण है जो हमारी संस्कृति खंडित करें उन्हें जानना और विचार विमर्श करना सभी का दायित्व है। हमें अपनी संस्कृति का संरक्षण करना चाहिए।
संस्कृति किसी भी समाज की पहचान का महत्वपूर्ण बिन्दु हैं। समाजशास्त्री भीखू पारेख मानते हैं कि संस्कृति एक इतिहास द्वारा निर्मित विश्वासों और प्रथाओं की व्यवस्था है जिसके संदर्भ में व्यक्ति और समूह अपने जीवन को समझता और व्यवस्थित करता है।
संस्कृति हमें जीने का तरीका और समाज को जीवन की व्यवस्था देती है। समाज की तरह संस्कृति पर भी इस न्यू मीड़िया का गहरा असर पड़ा है। पुराने मीड़िया में जहाँ व्यक्ति मात्र कंटेट का उपभोक्ता था वहीं अब वह कंटेट को निर्मित भी कर रहा है। आज संस्कृति को बचाए रखने के लिए अनेक संस्थाएँ व व्यक्ति अब लुप्त होते जा रहे सांस्कृतिक चिन्हों परंपराओं और बोलियों की डिजिटल दस्तावेजीकरण भी कर रहे हैं। परन्तु इसने संस्कृति के नाम अनेक प्रकार की रूढ़ियों को भी प्रचारित किया है। संस्कृति के नाम आजकल धार्मिक कर्मकांडों को ही अधिक महत्व दिया जाने लगा है। इसी प्रकार सांस्कृतिक विरासत का विरूपीकरण करके आने वाली पीड़ियों को गुमराह करने का प्रयास भी किया जाने लगा है। इसलिए अनेक बार संस्कृति के स्थान पर अपसंस्कृति का प्रसार भी इसके माध्यम से हो रहा है। इसके प्रति जागरूक और सावधान रहने की आवश्यकता है।
विगत कुछ वर्षों से देखा जाए तो न्यू मीड़िया बनाम नव संस्कृति में परिवर्तन अविराम गति से चलता हुए आज किस प्रकार हमारा देश संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। आज किसी भी क्षेत्र में नजर उठाकर देखें तो न्यू मीड़िया ने एक जाल-सा बिछा दिया है। और न्यूमीड़िया के दौर में ऐसा कोई क्षेत्र इससे अछुता नहीं रहा है। चाहे वह क्षेत्र राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक सांस्कृतिक, प्रौद्योगिकी या तकनीकी क्रांति हो सभी क्षेत्र में आज परिवर्तन बढ़ी तेजी से हो रहा है। क्योंकि आज वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण की चकाचैंध में मानसिक परिपक्वता को कोई स्थान नहीं दिया जा रहा है। अतः हम एक भेड़ चाल में आँखे मूँदकर चलते चले जा रहे हैं। अच्छे-बुरे अथवा सही और गलत का अंतर करना भी भूलते हुए जा रहे हैं। आज शिक्षित समाज धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति से और सबसे बड़ी बात हम स्वयं अपने से दूर होते जा रहे हैं। आज इसकी संख्या कम है लेकिन आने वाले वर्षों में यह संख्या बढ़ जाएगी। आज भी हमारा झुकाव कहीं न कहीं अंग्रेजी संस्कृति एवं उनके जीवन दर्शन की ओर दिखाई पड़ता है। हमारे देश की सरकार भी यही चाहती है सबकुछ डिजिटल हो जाए।
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आज मीड़िया स्वयं को उपभोक्तावादी संस्कृति से प्रभावित है इसलिए सामाजिक हितों के बजाए, निजी स्वार्थ की तरफ झुकाव कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है। आज मीड़िया निजी स्वार्थ वहाँ की उपभोक्तावादी संस्कृति में इस तरह घुलमिल गया है कि अपनी नैतिक, कर्तव्य, दायित्वों, उद्देश्यों से किस तरह भटकता जा रहा है। आज परिणाम यह है कि जब कोई नीति संस्कृति में बदलाव की बात कहती है, तब टकराव की एक स्थिति बन जाती है। अधिकांश देशवासी मूल अवधारणाओं में बदलाव नहीं चाहते। नई संस्कृति इन मर्यादाओं को तोड़ती हुई दिखाई पड़ती है आज न्यू मीड़िया और नवसंस्कृति की वजह से 377 धारा को मान्यता प्राप्त हुई। इसके आने के बाद समाज में इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं। इस विषय को मंच पर लाने के लिए मैथिलीशरण गुप्त की पंक्ति याद आ रही है-
हम कौन थे, क्या हो गये और क्या होंगे अभी
आओ विचारें, आज मिलकर ये समस्याएँ सभी।।
हमारे देश के राष्ट्रकवि जब यह बात उठा रहे थे उस समय उनके सामने सम्पूर्ण भारत और भारतीय अस्मिता का प्रश्न था। यह प्रश्न, बहुत बड़ा प्रश्न था। ‘हम कौन थे’ अर्थात् अतीत का मूल्यांकन। ‘क्या हो गये’ अर्थात् ‘वर्तमान की परख’ और क्या होंगे सभी’ अर्थात् भविष्य की सम्भावनाओं पर विचार। अतीत के मूल्यांकन के बिना वर्तमान की समझ नहीं बन सकती और वर्तमान की समझ के बिना भविष्य की दशा और दिशा के बारे में हम सोच नहीं सकते हैं। आज न्यू मीड़िया बनाम नव संस्कृति के संदर्भ में यह विषय इसी चीज को लेकर चल रहा है।
आज ‘न्यू मीड़िया’ संवाद का एक ऐसा जरिया बनकर उभर चुका है जहाँ इंटरनेट के माध्यम से पॉडकास्ट, ब्लॉग्स, सोशल साइट्स, टैक्सट मैसेजिंग आदि करते हुए एक-दूसरे से पारस्परिक संवाद धारण कर लेता है। जिसमें पाठक / दर्शक / श्रोता तुरंत अपनी टिप्पणी न केवल लेखक। प्रकाशक से साझा कर सकते हैं, बल्कि अन्य लोग भी प्रकाशित / प्रसारित / संचारित विषय वस्तु पर अपनी टिप्पणी दे सकते हैं। यह टिप्पणियाँ एक से अधिक भी हो सकती है अर्थात् बहुधा सशक्त टिप्पणियाँ परिचर्या में परिवर्तित हो जाती है। उदाहरणतः आप फेसबुक को ही लें- यदि आप कोई संदेश प्रकाशित करते हैं और बहुत से लोग आपकी विषय वस्तु पर टिप्पणी देते हैं तो कई बार पाठक-वर्ग परस्पर परिचर्या आरम्भ कर देते है और लेखक एक से अधिक टिप्पणियों का उत्तर देता है। न्यू मीड़िया वास्तव में परम्परागत मीडिया का रूप है। आज यह कहावत सटीक बैठती है परिवर्तन, प्रकृति का नियम है। यह एक क्षेत्र में लागु नहीं होता है, प्रत्येक क्षेत्र में लागु होती है। इसी तरह मीड़िया भी इससे अछुता नहीं रहा है।
इसका संबंध सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ है सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति ने दुनिया एक ग्लोबल गाँव में तब्दील कर दिया है। आज हम घर बैठे दुनिया के किसी भी कोने को देख सकते है और वहाँ के लोगों से बात कर सकते हैं। इसी सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से पूरा विश्व ग्लोबल गाँव बन गया है। जिससे हम एक दूसरे देश का रहन-सहन, तकनीकी, विकास, संस्कृति को जान सकते हैं। ‘‘आज न्यू मीड़िया मात्र तकनीक का ही नहीं बल्कि तकनीक के प्रयोग का भी नयापन लिए हुए है। यह व्यक्ति की सार्वजनिकता और सार्वजनिक की निजता का समीकरण बन गया है। दौर अब ‘न्यू मीड़िया का आ गया है। वह दौर चला जब समाचारों को जल्दी में लिखा गया इतिहास कहने के साथ ही ‘Next Today- History to morrow कहा जाता है लेकिन अब तो ‘News this moment- History next moment’ का जमाना आ गया है। बिलों को जमा करने, नौकरी-परीक्षा के फाॅर्म भरने जमा करने, फोन करने, पढ़ने व खरीददारी आदि के लिए लम्बी लाइनों का दौर बीते दौर की बात होने जा रही है, और जमाना लाइन में लगने का नहीं रहा, ‘ऑनलाइन’ होने का आ गया है। इसकी जिम्मेदार सिर्फ ‘न्यू मीड़िया’ है। इसकी स्थिति आज ऐसी है कब इसका स्वरूप अपने वाले समय में बदल जाए। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘डिजिटल इंडिया’ बनाने की लगातार बात करते रहते हैं।
इसकी राजनैतिक सामाजिक, भौगोलिक, सीमाओं से पूरी तरह मुक्त है। आज आम जनता अपनी अभिव्यक्ति को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर रही है। कि यह किसी बंधन, कायदे कानून को नहीं मानती है। वह स्वतंत्रता पूर्व अपनी अभिव्यक्ति बयाँ करती है। एक ऐसा माध्यम जिसमें न समय की कोई समस्या आती है, न सर्कुलेशन की कमी, न महीने भर तक पाठकीय प्रतिक्रियाओं का इंतजार करने की जरूरत पड़ती है। यह त्वरित अभिव्यक्ति, त्वरित प्रसारण, त्वरित प्रतिक्रिया का एक प्लेटफार्म बन चुकी है। इसीलिए स्वरूप विश्वव्यापी बन गया है।
इसकी शुरुआत एक उद्देश्य को लेकर उभरी थी, जिसका उद्देश्य समाज हित तथा देश हित था लेकिन अब न्यू मीड़िया एक व्यवसाय बन गया है और बढ़ गया है मनोरंजन। इसने मीड़िया की तकनीक को बदला, नई साज-सज्जा आई है, नया मिजाज, नये पत्रकार, नये सम्पादक, नई तकनीक, सब कुछ नया दिखाई दे रहा है सिर्फ मिल्कियत ही पुरानी है। इस नई फौज ने नई भूख, नई चाहत, नये सपने, नये द्वन्द्व तथा नये संघर्ष दिये हैं।
आज इसने वर्तमान युग को संचार क्रांति का युग बना दिया है। और इसका विकसित माध्यम ‘इलेक्ट्रोनिक मीड़िया’ छोटे-छोटे अंधकारमय कोने में धँसता जा रहा है। जिसकी वहज से आज हमारे सामाजिक सन्दर्भों संस्कृति व जीवन पद्धति सभी को अपने दबाव में लेना शुरू कर दिया है। ये दबाव इतना अधिक बढ़ गया है कि अब ये कहने का वक्त नहीं बचा कि ‘इलेक्ट्रोनिक मीड़िया’ की ये हवायें कहीं हमारे घर को अस्त-व्यस्त न करें? अब तो हम उस आँधी के मध्य में है जो पश्चिम से आई है, जिसके परिणामस्वरूप हमारी सांस्कृतिक हवाओं का रुख बदल गया है। आज नव संस्कृति विकसित हो रही है। हमारे नैतिक मूल्य, कर्तव्य सब अस्त व्यस्त नजर आते हैं।
इसके आने से असल में ऐसा लगता है कि हमने नवसंस्कृति का जामा पहन लिया हो। रेडियो, फिल्म, टी.वी. और इंटरनेट नव संस्कृति को धारण किये हुए हैं। परम्परा उन सांस्कृतिक जुलूसों की तरह है जो हमारे शहरों में किसी न किसी रूप में निकलते रहते हैं। नव संस्कृति मूलाधार है सांस्कृतिक उद्योग के कलाकार-रचनाकार, ये वे कलाकार हैं जो नारा दे रहे हैं ‘‘उनको कोई रोक नहीं सकता।’’ नव संस्कृति की धुरी है विज्ञापन। विज्ञापनों के जरिए यह जामा पहनाया जा रहा है।
‘‘नव संस्कृति में शामिल होने वाले लोग यह बात बार-बार कहते हैं कि उनके द्वारा सांस्कृतिक जाम लगा दिया गया है। इसके कारण संस्कृति का समूचा परिवहन ठप्प हो गया है। ऑडियन्स को सांस्कृतिक हवा मिलनी बन्द हो गई है। नव संस्कृति का बुनियादी लक्ष्य है ‘‘सांस्कृतिक भ्रम या दुविधा पैदा करना।’’ कहने का तात्पर्य यह है इसके आने के बाद हम अपनी संस्कृति के मूल्य भूलते जा रहे हैं। आज नव संस्कृति का जामा हमें चारों तरफ दिखाई देता है।
जिससे अधिक आधुनिक दिखाई दें। यह सही बात है न्यू मीड़िया और नव संस्कृति के आने के बाद पूरा विश्व ग्लोबल गाँव बन गया है। हम उपभोक्तादी संस्कृति में रह रहे हैं। लेकिन हमें अपनी संस्कृति नहीं भूलनी चाहिए, प्रत्येक संस्कृति हमें कुछ नया सीखने को देती है। हम एक दूसरे राज्य और देश की संस्कृति से परिचय करते हैं इसका मतलब यह नहीं हम दूसरे देशों की संस्कृति को ग्रहण कर अपने ऊपर पूरी तरह से लागू करलें। हमारे भारत देश में विविधता होने के बाद भीएक समन्वय है यही समन्वय, संतुलन, एकता नवीन विकास की तरफ इशारा करता है।
आज नव संस्कृति का सबसे बड़ा उदाहरण है थ्योरी का ग्लोबल स्तर पर वितरण। भारत के संदर्भ में पर्यटन, धर्म और स्थानीय संस्कृतियों को जिस तरह नवीकृत किया जा रहा है और विसंदर्भीकृत रूप में जिस तरह पश्चिमी संस्कृति को हमारे गले उतारा जा चुका है और पश्चिमी उपभोग के स्वर्ग को हमारे पर्यटन, धर्म और देशज संस्कृति से जोड़ा गया है। उसने गंभीर संकट पैदा कर दिया है। इस ‘नव संस्कृति जामा’ ही न्यु मीडिया उद्योग को गतिशील अवस्था में लाया है। बहुराष्ट्रीय मीड़िया कम्पनियों का लगातार दबाव बढ़ रहा। विज्ञापन एजेंसियों सेयह सिलसिला शुरू हुआ था और आज इसके सभी माध्यमों को अपने दायरे में ले लिया।’’
आज वैश्वीकरण के आने से न्यू मीड़िया को न केवल प्रभावित किया है बल्कि इसकी रूप रेखा ही बदली है। वैश्वीकरण की शुरुआत उदारीकरण के साथ हुई थी लेकिन धीरे-धीरे इसने राजनीति, संस्कृति, साहित्य भाषा आदि को प्रभावित किया है। इसके आने से समाज, संस्कृति, शिक्षा जगत, राजनीति, कृषि और हमारे दैनिक जीवन पर भी प्रभाव पड़ा है।
इसके आने से हमें रोज नये-नये परिवर्तन देखने को मिलते हैं। ये परिवर्तन सामाजिक रीति-परम्परा, रहन-सहन, खान-पान में तो देखने को मिलते हैं अब तो सोशल मीड़िया रोज नई गतिविधि देखने को मिलती है। सोशल मीड़िया का चेहरा हर दिन बदलता रहता है। आज हमारे दैनिक जीवन पर फेसबुक ट्विटर, व्हाट्सएप ने बहुत गहरा प्रभाव डाला है।
इसकी भूमिका का सच आज बहुत खुले रूप में हमारे सामने आ चुका है। आज की युवा पीढ़ी जिस तरह से इस माध्यम का उपयोग कर रही है वह बेहद चिन्तनीय है। इसके माध्यम से अक्सर कुछ लोगों द्वारा महान व्यक्तियों या देवी-देवताओं के बारे में उपहासास्पद टिप्पणियाँ की जाती है, समाज में असन्तोष फैला कर लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया जाता है। जिसकी वजह से सच तो यह है कि न्यू मीड़िया जैसे माध्यमों को विचारों के आदान-प्रदान के लिए बनाया गया है। यह हमें देश के कौने-कौने की जानकारी देता है। देश और समाज को बदलने वाली बड़ी-बड़ी घटनाओं के सच को भी सामने लाने का काम करता है।
देश में हो रहे भ्रष्टाचार का खुलासा भी करता है, आज कई घोटालों को भी सामने लाया है उदाहरण- पी.एन.बी., शारदा चिट घोटाला, विजय माल्या, केश, नीरवमोदी, टू जी स्पेक्ट्रम घौटाला आदि। आज समाज में फैले कुरीतियों, अंधविश्वासों, धर्म की आड़ के प्रति हो रहे भ्रष्टाचार का खुलासा करना उदाहरण- आसाराम बाबू, राम रहीम, रामपाल बाबा चिन्मयानन्द केस आदि की पोल भी इसके माध्यम से खुली है। कभी-कभी यह हमारे सामने फैली हुई झूठी अफवाहों का खुलासा भी करता है। इस प्रकार सूचनाओं के आदान-प्रदान की दृष्टि से लोगों को जागरूक भी करता है।
लेकिन इसके आने से लोग जागरूक तो हुए हैं हर सिक्के के दो पहलु होते हैं इसी न्यू मीड़िया की कुछ अच्छाईयाँ भी हैं तो कुछ बुराईयाँ भी है। पहले सभी परिवार आपस में मिलजुल रहते थे, कई घंटों तक परिवार के लोग आपस में बात करते थे, अपनी पुरानी यादें ताजा करना बचपन में साथ खेलना, हर त्यौहारों पर आपस में मिलना जुलना होता था। अब स्थिति यह आ गई बिना बोले ही सब काम हो जाते हैं व्हाट्सप, फेसबुक, टिवट्रर, मैसेंजर के आने से अनगिनत एप्प जिसके माध्यम से संवाद होता है। सालों तक लोग अपने परिवार का हाल बिना बोले, बिना मिले ही जान लेते हैं। इस स्थिति की न्यू मीड़िया ही जिम्मेदार है। इस व्यवस्था में हमें अपने वास्तविक जीवन के बारे में कोई खबर ही नहीं रहती है। हमारे पास इतना समय नहीं होता है कि हम अपने परिवार, आस पड़ोस में रहने वालों के सुख-दुःख में शामिल भी हो जाये आज यह विडबंना न्यू-मीड़िया, नव संस्कृति की वजह से आई है। आज हमें यह अफसोस नहीं होता है, हमें अपने मन में विचार करना चाहिए। कुछ आत्म चिंतन करना चाहिए कैसे हम अपनों से और अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं।
आज यह स्थिति चिंता का विषय बन गई है लोग फेसबुक व्हाटसप आदि सोशल साइट्स पर घंटो तक समय की बर्बादी करते हैं फिजुल का समय बर्बाद सिर्फ किसके कारण पश्चिमी संस्कृति के कारण, इस पश्चिमी संस्कृति, नव संस्कृति का झुठा पहनावा पहन कर हम स्वयं खुद को और अपनी संस्कृति को भूल गये हैं।
‘‘वर्तमान में इसके आगमन ने समाज, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में बुनियादी परिवर्तन ला दिया है। लेकिन हमें यह देखना होगा कि इस परिवर्तन की दिशा क्या है और हमें यह परिवर्तन कहाँ ले जा रहा है? देश एवं संस्कृति का विकास जरूरी तो है परन्तु विकास का मतलब यह नहीं कि हम अपनी संस्कृति को भूल विकास के नाम पर उन संस्कृतियों को अपना लें जिनका हमारे मूल संस्कृति से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। इसमें कोई शक नहीं की ‘न्यू मीडिया’ ने देश-दुनिया की शक्ल ही बदल दी है। आज इस माध्यम के द्वारा पूरी दुनिया एक विश्व-ग्राम में बदल गयी है, सूचनाएँ दो तरफा हो गयी हैं। लेकिन हमें सिक्के दूसरे पहलू से सावधान रहने की भी जरूरत है। मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। अतः उसे न्यू मीड़िया के उस दूसरे पहलू को समझते हुए इसका सही उपयोग करना होगा ताकि वह विकास के सही रास्ते पर चल सके और खुद के विकास के साथ-साथ समाज एवं देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके।’’
संदर्भ ग्रन्थ सूची
- नया मीडिया: नया विश्व, नया परिवेश, राकेश कुमार, ई-पत्रिका
- मीडिया और हिन्दी बदलती प्रवृत्तियाँ- रविन्द्र जाधव, केशव मोरे, पृष्ठ 342-343
- डॉ. मोहम्मद फ़रियाद- सोशल मीडिया के विविध आयाम, पृष्ठ 53,193
- डॉ. उमेश कुमार राय, डॉ. रेखा अजवानी- मीडिया अतीत, वर्तमान एवं भविष्य, पृष्ठ 278-279
- अकबर रिज़बी- मीडिया का वर्तमान
- मीड़िया लेखन, सिद्धांत और व्यवहार- डॉ. चन्द्र प्रकाश मिश्र
- जन-संचार और मीडिया, मीडिया लेखन- खेती सरन शर्मा