सात फेरों की चुभन

           –डॉ.वर्षा कुमारी

जीतू- सृष्टि इतना क्यों रो रही हो? चुप भी हो जाओ अब। तुम अकेली ऐसी लड़की नहीं हो न जिसकी शादी हुई है? और तुम कोई पराए घर थोड़ी ना आई हो। यहाँ से तुम्हारा मायका 4घंटे की दूरी पर ही तो है। जब तुम्हारा मन करे चली जाना सबसे मिलने। यहाँ तुम्हे किसी चीज की कोई कमी नहीं होगी।

सृष्टि- जी,माँ-पापा घर में अकेले हैं। उन्हें अब खाना कौन बना कर देगा। उनका ख्याल कौन रखेगा? माँ की आँखों से भी ठीक प्रकार से दिखाई नहीं देता। इन्हीं सब बातों की चिंता हो रही है।

माँ जी- बहू आज तुम्हारा रसोईपुजन कर देते हैं। फिर तुम खाना बनाना शुरू कर देना।

सृष्टि- जी, माँ जी।

जीतू- सृष्टि से, माँ का हमेशा खयाल रखना। वो जैसा बोले वैसा ही करना। उसकी बातों को कभी ना नहीं बोलना।

सृष्टि ने एक दिन सोचा क्यों न माँ-पापा से मिलने चली जाऊँ। बिना माँ-पापा को बताए ही जाऊँगी वो एहसास कितना अलग होगा न? इसी खुशी में एक दिन जीतू से बोलते हुए- मुझे माँ से मिलने का बड़ा मन कर रहा है। मुझे ले चलोगे क्या माँ के पास?

जीतू- अच्छा ठीक है। माँ से पूछता हूँ मैं।

माँ- अभी-अभी तो बहू घर में आई है। मायके जाने की भी सोचने लगी। कुछ दिन के बाद चली जाएगी ।

 

 

जीतू- अच्छा ठीक है माँ। जैसा आप उचित समझे। मैं समझा दूँगा सृष्टि को बाद में कभी चलेंगे।

एक माह बाद………….

जीतू- सृष्टि तुमने मुझे आज जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी दी है। मैं पापा बनने वाला हूँ।

माँ- जीतू, अब तो बहू का कहीं आना-जाना बंद हो गया। ऐसी हालत में सफर करना अच्छा नहीं होता है। बच्चे पर बुरी नजर लगती है समझे।

सृष्टि अब अंदर-ही-अंदर घुटती जा रही थी। देखते-देखते चार महिने हो गए। उसे अपने माँ-पापा की बहुत याद आ रही थी।

एक दिन सृष्टि के मायके से फ़ोन आया कि माँ की तबीयत ठीक नहीं है। सृष्टि से मिलना चाहती हैं।

सृष्टि- माँ जी, अगर आपकी इजाजत हो तो एक दिन के लिए मैं जा सकती हूँ क्या माँ से मिलने? घर पास में ही तो है। अगर आप बोलें तो एक दिन में ही माँ से मिलकर वापस भी आजाऊंगी। बहुत दिन हो गए हैं। माँ-पापा को  देखने का बड़ा मन कर रहा है।

माँ जी- बहू मैंने पहले ही कहा है कि ऐसी हालत में कहीं जाना बच्चे के  लिए  खतरे से खाली नहीं होगा। फिर भी तुम मुझसे ऐसी बात पूछ रही हो? खुदा ना खासता अगर बच्चे को कुछ…….ना बाबा ना …….। माँ बीमार हीं तो हैं, ठीक हो ही जाएँगी। तुम मेरे होने वाले वारिस को क्यों मुसीबत में डालने की सोच रही हो।

जीतू- सृष्टि, रो-रो कर तुमने अपनी कैसी हालत बना ली है? अपना नहीं तो बच्चे का ख्याल तो रखो। माँ ने मना किया है तो कुछ सोच समझ कर ही।

 

सृष्टि को इस बात की चिंता खाए जा रही थी कि घर में उसके बूढ़े माँ -बाप अकेले हैं। माँ बीमार हैं। उनका ख्याल रखने वाला कोई नहीं है। मैं होती तो माँ की देख-रेख करती।

सृष्टि एक दिन विचारती हुई जीतू से बोलती है – क्यों न माँ-पापा को यहीं बुला ले। वहाँ अकेले रहते हैं। माँ भी बीमार है। खाना बनाने वाला भी कोई नहीं हैं।

जीतू अपनी माँ से पूछते हुए- माँ, सृष्टि बोल रही थी माँ-पापा को यहीं बुलाने के लिए।

माँ – ऐसा भी कहीं होता है क्या? जो लड़की के माँ-बाप रहते हों अपनी बेटी के ससुराल में? नहीं बेटा ऐसा नहीं हो सकता। बहू को समझा दो।

सृष्टि- एक दिन माँ जी से विनती करती है। प्लीज आप माँ-पापा को यहाँ आकर रहने दें। यहाँ मैं उनका ध्यान तो रख सकती हूँ। आपलोगों को तो मालूम है कि मेरे सिवाय कोई और नहीं है उनके लिए। मैं ही एकमात्र सहारा हूँ माँ-पापा के लिए ।आपके पास तो बेटा और बहू दोनों है। उनके पास तो बेटे का भी सहारा नहीं है। फिर बहू तो दूर की बात है।

सृष्टि को अपने बूढ़े माँ-बाप की चिंता ने तोड़ कर रख दिया था। बेसहारा महसूस करने लगी खुद को। सोचने लगी कि शादी करके मैंने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर दी है। बेटी के माँ-बाप बोझ होते हैं क्या? शादी से पहले तो जीतू ने हाजार बाते बोली थी। पर अब क्या हो गया जीतू को। माँ सझदार नहीं है तो क्या जीतू तो पढ़ा लिखा है। उसे तो माँ को समझाना चाहिए कि जैसे आपलोग मेरे माँ-पिताजी हैं वैसे ही वो लोग भी मेरे माँ-पिता हैं। क्या शादी होने से सिर्फ लड़की की ही ज़िम्मेदारी बढ़ती है। लड़के को भी तो चाहिए कि वो

 

लड़की के माँ-पिता की ज़िम्मेदारी निभाए। ये सब बातें सोचते- सोचते एक दिन वो बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हो गई।

माँ- सुबह-सुबह बहू….बहू चिल्लाये जा रही थी। माँ की आवाज सुन कर जीतू भी सृष्टि को आवाज देने लगा। सृष्टि का घर में कहीं पता नहीं चला। सब परेशान हो गए कि सृष्टि ऐसी हालत में कहाँ जा सकती है। जैसे ही जीतू अपने कमरे गया उसे बिस्तर पर रखा एक लिफाफा दिखा। उसमें लिखा था……..

            जीतू, आप माँ जी और पिताजी का ख्याल रखना। उनके खाने का लिस्ट मैंने इसमें लिख दिया है। कौन- कौन सी दवाई कब खानी है ये भी लिखा है। मैं माँ के घर जा रही हूँ। क्योंकि माँ-पापा को मेरी जरूरत है। क्या हुआ कि मैं बेटा नहीं बेटी हूँ। बेटियां क्या किसी से कम होती हैं? बूढ़े माँ-बाप का सहारा उनके बच्चे ही तो बनते हैं। आप भी तो अपने माँ-पिता का सहारा हो। मैं आज वही फर्ज पूरा करने जा रही हूँ। आपलोग मुझे मेरे मायके भेजने के लिए तैयार नहीं थे। मैंने बोला की माँ -पापा को ही बुला लेते हैं। उस बात के लिए भी माँ जी नहीं तैयार हुई। इसीलिए मुझे आज ऐसे कदम उठाने पड़े। पता है आपको, मुझे विदा करते वक़्त माँ- पापा ने क्या कहा था- “ससुराल में सबसे ज्यादा अपने सासु माँ और पिताजी का ख्याल रखना। अब से वही तुम्हारे माँ-बाप हैं। बुढ़ापे की लाठी बनना उनके। सोचना की तुम हमलोगों की सेवा कर रही हो। उनकी बातों को कभी दिल पर नहीं  लेना। हमलोगों की तो जीवन की नैया पार हो गई बेटी। अब तो हमलोग तुझे ससुराल में खुश देखना चाहते हैं।” बोलते-बोलते माँ-पापा की आँखे भर आई थी। मैंने बचपन से सोचा था कि मैं माँ-पापा को हमेशा अपने पास ही रखूँगी। बेटी का घर कोई पराया

 

थोड़ी ना होता है। उन्हें भी पूरा अधिकार है अपनी बेटी के घर रहने का। पर ये मेरे नसीब में नहीं था। अब मैं हमेशा माँ-पापा के साथ ही रहूँगी। माँ-बाप का कर्ज कोई नहीं उतार सकता। क्योंकी अपने बच्चों के प्रति उनका बलिदान निःस्वार्थ होता है। शादी हो जाने से माँ-बाप से रिश्ते खत्म नहीं होते। मैं पहले एक बेटी हूँ,फिर पत्नी, बाद में एक बहू। आज मैं अपने फर्ज को चुन रही हूँ।

  मुझे क्षमा कर देना सृष्टि

एक वर्ष बाद……….

जीतू बेटा,तेरे नाम का एक रजिस्ट्री आया है। मुझे तो पढ़ना आता नहीं, तेरे कमरे में मैंने रखा है। देख तो क्या है?

जीतू- लिफाफा खोलते हुए रुँधे गले से, तलाक के नोटिस है पापा। सृष्टि मुझसे तलाक चाहती है।

पिताजी- तुमलोगों की बात यहाँ तक पहुँच गई। लड़के होकर एक लड़की को काबू में नहीं कर सके। तुमने उसे ज्यादा ही बढ़ावा और छूट दे रखी थी। अब भुगतो। तलाक नहीं देना। अरे, उसकी चलेगी क्या? बड़ी आई तलाक लेने।

जीतू- नहीं पापा, सृष्टि ने बिल्कुल सही फैसला लिया है। उसके फैसले का मैं सम्मान करता हूँ। तलाक तो मुझे देना ही पड़ेगा। पापा, सृष्टि एक पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की है। वो पराधीन होकर नहीं जीना चाहती है। हमारी सोच बहुत पुरानी और छोटी है। ये समाज हम जैसे लोगों के लिए नहीं है पापा। आज लड़कियां स्वावलंबी बनना चाह रहीं है। हमने सृष्टि पर हमेशा अपनी मर्जी सौपीं थी। फिर भी उसने हमारा मान रखा था। उसने कभी हमलोगों को गलत जवाब नहीं दिया। हमें सृष्टि से कुछ सीखने की जरूरत है पापा। मैं आज ही तलाक के नोटिस पर हस्ताक्षर कर के भेज दूँगा। बोलते-बोलते जीतू को सृष्टि के साथ लिए सात फेरे धुंधले नजर आने लगे।

डॉ. वर्षा कुमारी

संप्रति: स्वतंत्र लेखन तथा ब्लॉगर।

मो. 7569961990

मेल- drwarshagupta29@gmail.com 

ब्लॉग- https://bhawnaonkasansar.blogspot.com

संपर्क : कर्ण विहार पार्ट-4 नई दिल्ली

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