जल की जलना, किसी से क्या कहना
दम साधें बैठे हैं जिया में ज्वार कई।
मौजों का तो धर्म ही उफान
पी गयी हो चाहे धैर्य के समंदर कई।
वो सागर का तीर संगम मेरा
कह दूं जाकर वहां अलविदा
पर तन मन भंवर कई!
कैसे पार में पाऊंगी!
वश में कहाँ कुछ… परवशता ठहरी
पर लगी है अब कुछ ऐसी लगन
मैं दरिया यह पार कर जाऊंगी!!