मुस्लिम औरतों की सच्ची अक्कासी ‘सूखी रेत’ गुड़िया का घर’ में

डॉ. बेनजीर

अतिथि शिक्षक, डी.यू. नई दिल्ली

Contect No: 9958716211

ईमेल: benazeersiddiqui53@gmail.com

सारांश-धर्म की आड़ में स्त्रियां सदैव पितृसत्ता का दंश झेलती रही है, समाज में प्रचलित गलत रूढ़िवादी धार्मिक मान्यताएं इनके बदहाली के प्रमुख कारण हैं। यदि मुस्लिम महिलाओं की स्थिति पर विचार करें तो निश्चितरूप से समाज में इन स्त्रियों की बिगड़ती हुई सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक हैसियत का अनुमान लगाया जा सकता हैं। मुस्लिम समाज के भीतर सांस ले रही आधी आबादी एक बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। यह संकट उनकी अस्मिता, स्वतंत्रता एवं समाज में गैरबराबरी का हैं। यह एक गम्भीर प्रश्न है। यह हाशिए का वह समाज है जो निरन्तर अपने लिए सामाजिक न्याय की मांग कर रहा है। इन्हीं स्त्रियों की पीड़ा, यातना, संघर्ष साहित्य में किस रूप में अभिव्यक्ति पाते है, मेरे इस आलेख में विशेषरूप से इस ओर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास किया गया हैं। इस दृष्टि से उर्दू साहित्य की प्रसिद्ध ख्याति प्राप्त लेखिका जीलानी बानो को मैं एक महत्वपूर्ण रचनाकार के रूप में देखती हूं जो बहुत ही बारीकी से मुस्लिम स्त्री जीवन की समस्याओं का वास्तविक एवं जीवन्त चित्रण करती हैं। मेरा यह आलेख मुस्लिम स्त्री विमर्श की दिशा में विशेष योगदान को दर्शाता है।

बीज शब्द – समाज, मुस्लिम, मुस्लिम स्त्री अस्मिता, समानता एवं स्वतंत्रता, मुस्लिम स्त्री विमर्श, साहित्य, लघु-उपन्यास और कहानी-संग्रह।

भूमिका

धर्म की आड़ में स्त्रियां सदैव पितृसत्ता का दंश झेलती रही है, समाज में प्रचलित गलत रूढ़िवादी धार्मिक मान्यताएं इनकी बदहाली के प्रमुख कारण हैं। यदि मुस्लिम महिलाओं की स्थिति पर विचार करें तो निश्चितरूप से समाज में इन स्त्रियों की बिगड़ती हुई सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक हैसियत का अनुमान लगाया जा सकता हैं। मुस्लिम समाज के भीतर सांस ले रही आधी आबादी एक बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। यह संकट उनकी अस्मिता, स्वतंत्रता एवं समाज में गैरबराबरी का हैं। यह एक गम्भीर प्रश्न है। यह हाशिए का वह समाज है जो निरन्तर अपने लिए सामाजिक न्याय की मांग कर रहा है। यह सत्य है कि समय-समय पर जिन मुसलमान औरतों ने देश की पितृसत्ता के विरूद्ध विद्रोह करने का साहस किया है उन्होंने वास्तव में समाज की परम्परागत रूढ़िवादी सोच पर सवालिया निशान लगाया है, इतना ही नहीं बल्कि स्वयं स्त्री होकर अन्य स्त्रियों के प्रति होने वाले सामाजिक भेद-भाव को तथा उनके प्रति अमानवीय व्यवहार तथा जुल्म के खिलाफ बाआवाज बुलंद किया। यह महिलाएं उन तमाम औरतों की जुबान बनी जो कभी भी अपने अधिकारों के लिए बगावत कर सकती है। उनमें एक महत्वपूर्ण शख्सियत लेखिका जीलानी बानों है। आज के अतिआधुनिक युग में टेक्नालॉजी का तीव्र विकास तथा तेजी से बदलते हुए सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों एवं महामारी के बढ़ते नकारात्मक प्रभाव के कारण परिवार को अनेको चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पारिवारिक टूटन, अकेलापन, ईर्ष्या, कलह, स्त्रियों के प्रति घरेलू हिंसा जैसी क्रुरतम त्रासदी अपने सबाब पर है। ऐसे में ‘सूखी रेत’ ’गुड़िया का घर’ जैसी महत्वपूर्ण कृतियां अधिक प्रासंगिक लगने लगती हैं।

मुस्लिम औरतों की बदहाली के लिए मध्यकालीन व्यवस्था, परिवेश और परिस्थितियां विशेष रूप से जिम्मेदार रही हैं। जिसमें परदा प्रथा, बहुविवाह, तलाक, जैसी कुरीतियां स्वतः ही उत्पन्न हो गयी । परन्तु बीसवीं शताब्दी तक आते-आते मुस्लिम औरतों की स्थिति में कुछ परिवर्तन आने लगे। मुस्लिम महिलाओं ने राजनीतिक, सामाजिक और साहित्यिक आदि क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाने लगी । सऩ 1930 के आस-पास कुछ ऐसी लेखिकाएं सामने आयी जैसे रजिया सज्जाद जहीर, इस्मत चुग़ताई, बानो, मुमताज शीरी, जहांबानो बेगम आदि जिन्होंने अपने सशक्त अभिव्यक्ति और क्रान्तिकारी विचारों से समाज को समृद्ध करने का प्रयास किया तथा इनकी अगली कड़ी में मेहरुन्निसा परवेज, हुस्न तबस्सुम, निहा किश्वर नाहिद, रूकैया सखावत हुसैन के अतिरिक्त तहमीना दुर्रानी और नासिरा शर्मा, गीतांजलि श्री, जयश्री राय, तसलीमा नसरीन जैसी लेखिकाओं का नाम स्वतः ही जुड़ जाता है। जिस प्रकार से इस्मत चुगताई ने बड़े ही बेबाक तरीके से पितृसत्तामक के विरूद्ध मोर्चा लिया वही काम आगे चलकर बाद की लेखिकाओं में वाजिदा तबस्सुम और जीलानी बानो ने किया।

जीलानी बानो को मैं 20 वीं सदी की एक महत्वपूर्ण लेखिका के रूप में देखती हूं। लेखिका उर्दू की मशहूर महिला कथाकार रही है। इन्होंने बड़े ही संजीदगी से आज के दौर में बदलते हुए जीवन मूल्यों व अंतर्विरोधों की जो तस्वीर अपने उपन्यासों व कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया है वह सराहनीय है। विशेष रूप से स्त्री जीवन की अभिव्यक्ति। लेखिका अपनी धरती और दुनिया को ही अपनी कहानियों तथा उपन्यासों का मजमून बनाती है। जो हैदराबाद की सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक परिदृश्य को दिखाती है। इन्होंने अपने समय में हैदराबाद की जो बनती बिगड़ती तस्वीर अपनी आँखों से देखा उसका यथार्थ एवं वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया। इसी कारण से इनके ज्यादातर रचनाओं की पृष्ठभूमि इसी शहर के इर्दगिर्द घूमती है। यह समाज व जीवन से सम्बन्ध रखने वाली दो मुँही सोच की असलियत को बेपर्दा करती है। इनके इसी अतुलनीय साहित्यिक अवदान के लिए सन् 1997-98 में ‘मजलिस फरोग उर्दू’ नामक बड़े अदबी पुरस्कार से नवाजा गया।

जीलानी बानो का जन्म 14 जुलाई 1936 को बदायूँ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। परंतु इनकी परवरिश हैदराबाद में हुई । जीलानी बानो ने 1954 में लघुकथा लेखन से अपना लेखकीय जीवन आरंभ किया। इन्होंने कहानियाँ उपन्यास, लघु उपन्यास तथा इसके अतिरिक्त बच्चों के लिए कहानियाँ आदि लिखीं। लेखिका की महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाओं में -उपन्यास -(1)ऐवाने गज़ल (2) बारिशे संग लघु उपन्यास -नग़में का सफर, जुगनू और सितारे। कहानी संग्रह ‘रोशनी के मीनार’ ‘निर्वान’ ‘पराया घर’ ‘रोज का किस्सा’यहकौन हसा, तरयाक सच के सिवा, बात फूलों की आदि है। जीलानी बानो की कृतियों का अनुवाद केवल भारतीय भाषाओं में ही नहीं बल्कि विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद कार्य हुआ।

कहानी संग्रह “सूखी रेत’ की कहानियां स्त्री जीवन के उस मरुस्थल को प्रतिबिंबित करती है जो सदियों से विस्तारित होता चला आया है और उसकी तपिश और खलिश से वह न तो उकताती है और न ही हार मानती है। नारी का यही अंतर्विरोध एक प्रतिकार बनने से कैसे कहाँ चूक जाता है इसी मसले की दास्तान है ‘सूखी रेत’ ।”1 ‘सूखी रेत’: में 20 कहानियां सम्मिलित है- ज्वाएं, मुजरिम, एक दिन लेबर – रूम में, स्कूटरवाला, आगही, दश्ते-कर्बला से दूर, गोश्त के व्यापारी, प्रॉमिस, एक शूटिंग-स्क्रिप्ट-एक पूरी, ताक में रखी हुई गुड़िया, जिल्ले-सुबहानी, ए दिल… ए दिल, अजायबघर में, कब्ल-अज-मर्ग-बयां प्रीमैच्योर बच्चे, सूखी रेत आदि सम्पूर्ण कहानियाँ स्त्री जीवन को व्यक्त करती है। ‘गुड़िया का घर’ लघु उपन्यास में (1) गुड़िया का घर, (2) अबार्शन, (3) मशाले-जाँ, (4) जुगनू और सितारें, संग्रहित हैं इस कृति में अपने समय व आसपास के मुस्लिम समाज और जीवन को देखने दिखाने का प्रयास किया गया है। इस उपन्यास में विशेष रूप से अतीत की स्मृतियों के आइने में वर्तमान की पड़ताल और भविष्य के सपने हैं। यह उपन्यास मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने तथा संस्कृति की रखा के लिए अहम भूमिका अदा करता है।

जीलानी बानो के साहित्य का मुख्य विषय में राजनीति, किसान, मजदूर तबका रहा हैं। इसके बावजूद इन्होंने अपनी रचनाओं में जबरदस्त स्त्री किरदार उठाए है। कही ऐसा प्रतीत होता है कि मानों स्त्री जीवन की समस्याएं ही इनके साहित्य के केंद्र में है। इससे सम्बन्धित शायद ही कोई पक्ष अछूता हो जिस पर लेखिका की दृष्टि न गयी हो। स्वयं एक स्त्री होने के कारण लेखिका ने बड़ी ही बारीकी से स्त्री जीवन को परखा तथा उन पर होने वाले शोषण को अभिव्यक्ति दी। इनकी स्त्रियां संघर्षशील हैं तथा शोषण, अन्याय के खिलाफ बगावत करने का जज्बा रखती हैं उनके अंदर स्वतंत्रता एवं मुक्ति की तड़प है जो अवसर पाते ही एक सशक्त चरित्र के रूप में उभरती है। सूरजीत भूमिका में लिखते है कि “जीलानी बानो की कहानियों के नारी पात्र बार-बार प्यासे रह जाने और अपनी तकमील की तलाश के नाकाम हो जाने को अपनी किस्मत नहीं मानते हैं वे सब न तो छिछला विद्रोह करते हैं और न ही अपनी गरिमा से च्युत होते हैं, सब सुलग रहे हैं भीतर ही भीतर सब रेगिस्तान से निकलने की मुकम्मल राह तलाशते हुए”2

जीलानी बानो इस्मत चुगाताई के जीवन तथा लेखन से विशेषरूप से प्रभावित रही हैं। इस्मत के समान ही जीलानी बानों ने विशेषरूप से मध्यमवर्गीय मुस्लिम स्त्रियों को ही अपने लेखन का आधार बनाया है। एक मध्यमवर्गीय परिवार, जिसमें पति-पत्नी साथ तो है परंतु उनके बीच है केवल निराशा, आपसी नोक झोंक, नफरत की ऊँची दीवार है ‘‘ जहाँ सब एक दूसरे से मुह फेरकर जी रहे थे एक दूसरे का जी जलाकर अपना जी खुश करते थे। बाहर मिलने वाली सारी नाकामियों नाइंसाफियों का इंतकाम (बदला) एक दूसरे से लेते थे।”3 यहा लेखिका ने विवाह संस्था की सच्चाई को बेनकाब किया है। एक स्त्री को किस तरह से अपना जीवन ही बोझिल लगने लगता है खुशी का अहसास भी उसके अन्तःमन को छू नहीं पाता इसलिए वह अंदर ही अंदर बेचैन है। उसके अन्तर्द्वन्द्व की जद्दोजहद ही उसके मुक्ति की राह दिखाते है।

प्रायः परिवार में निर्णय लेने का दायित्व केवल पुरूषों को ही प्राप्त रहा है यही कारण है कि पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री सदैव ही दोयम दर्जे की नागरिक मानी जाती है। उसकी अपनी इच्छा क्या है, वह कैसा जीवन जीएगी यह पुरुष ही तय करता आ रहा है। एक स्त्री सदैव से अपने पिता, पति एवं बेटे पर ही आश्रित रही उसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहा, इसलिए वह अपनी खुशी सदैव पुरुष में ही ढूंढने का प्रयास करती है। नेवस्ट पूछती है – एक स्त्री से – ‘‘क्या हुआ है तुम्हें?’’ वह मर्द की तरफ देखती है। मैं समझ गई। अपने दिल की बात कहने का अख्तियार वह हमेशा किसी और को देती है।’’ मर्द कहता है -:‘‘डॉक्टर! इसे बच्चा नहीं चाहिए। चार महीने चढ़ गए हैं’’ इसे क्या चाहिए? वह कुछ नहीं कहती।’’4

लेखिका ने स्त्री की जीवन की पराधीनता के लिए केवल पुरुष को ही कुसूरवार नहीं ठहराया बल्कि औरत ही औरत की दुश्मन है और वह स्वयं भी जिम्मेदार है। ”एक अधेड़ उम्र की तेज तर्रार औरत वह मुसलसल (लगातार) बोले जा रही है। ‘‘बिस्मिल्लाह करके अंदर जाओ भाभी, अल्लाह ने चाहा इस बार लड़का ही होगा। तुम्हारे घर में उजाला हो जाएगा।…..‘‘बेचारी के पांच लड़कियां हो चुकी है। घर में अल्लाह का दिया सब कुछ है, मगर मेरे भाई के नसीब खोटे हैं। हम आप के पास बड़ी आस लेकर आए हैं डॉक्टर…’’ यह सुनकर औरत चकराकर गिरने लगती है…।’’5 इस्मत ने बहुत पहले ही ‘सोने का अण्डा’ कहानी लिखकर समाज की इस गम्भीर रूढ़िवादी सोच की ओर इशारा किया था। एक लड़का और लड़की जन्मने पर इनके साथ किस प्रकार से असमानता का व्यवहार किया जाता है। लड़के को सिर पर बिठाने की बहुत पुरानी रूढ़िवादी परम्परा रही है जो आज भी कायम है। इसी की मुखर अभिव्यक्ति जीलानी बानो के यहां देखने को मिलती है।

समाज में कुछ ऐय्यास पुरुष को भी लेखिका ने आड़े हाथों लिया है जो बड़ी आसानी से स्त्रियों के भावनाओं रौंदकर अपने शारीरिक भूख शांत करते है। एक लड़की जो बचपन में ही अपने भोलेपन के कारण पुरुष द्वारा शारीरिक एवं मानसिक रूप से ठगी जाती है एक घबराई हुई सी लड़की हनी की सहेली बताती है कि ‘‘डॉक्टर हनी ने कुछ नहीं किया। वह जो टीचर शाम को स्कूल में स्पेशल क्लास लेता है न वह… वह…’’ /‘‘वह टीचर कहता है। किसी से कहा तो बदनाम हो जाओगी, फिर तुमसे कोई शादी नहीं करेगा….।’’लेखिका का मानना है कि ऐसे पुरूष भी होते हैं जो मर्द औरत में फर्क नहीं करते बल्कि स्त्रियों के प्रति समान भाव एवं संवेदनशील बने रहते है। लड़की कहती है – मैं इस दुनिया में नहीं रहूंगी जहां मर्द हैं वह खौफ भरे लहजे में कहती है।/डॉक्टर – ‘‘पगली… दुनियां में सब मर्द वहशी नहीं होते। ’’6 इसलिए लेखिका ऐसे पुरुषों की हिमायत करती है यह वास्तव में स्त्री के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खुशहाल जीवन जीते हैं ।

जीलानी बानो ने ‘स्कूटरवाला’ कहानी शीर्षक को प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत किया है अर्थात एक स्त्री का शांत रहना तथा अन्दर ही अन्दर स्वयं को तलाशने की खिड़की का दरवाजा उस खड़खड़ाते हुुए स्कूूटर की बेल से खुलता है। लेकिन इसे खोलना आसान नहीं। घर की मजबूत चारदीवारी उसे ऐसा करने से रोकती है। क्योंकि स्त्रियों ने यह जान लिया है उनकी जगह केवल घर ही नहीं बाहर की दुनियां में भी हैं। उसके दायित्व केवल घर तक ही महदूद नहीं है बल्कि घर से बाहर भी है जहां उन्हे अपने अन्य अनेक सामाजिक दायित्वों का भी निर्वहन करना शेष है। स्त्री विमर्श अवधारणा के आरम्भ में ही छायावादी लेखिका महादेवी वर्मा ने ‘घर और बाहर’ लेख में एक ऐसी ही स्त्री की कल्पना की थी जो सम्भावनाओं से भरपूर कर्मठ एवं सशक्त स्त्री है। जिसके सम्मुख कठिन चुनौतियां भी है उससे पिनटने का रास्ता क्या है इसका साकार रूप जीलानी बानों के यहा आबिदा के जीवन में देख सकते है। जिसकी अभिव्यक्ति कुछ इस रूप में हुई है ‘‘अकेले घर में हर तरफ आबिदा को पुर-असरार (रहस्यपूर्ण) सरगोशियां सुनाई देती।/मुन्ने को कंधे से लगाए टहलने में न जाने क्या सोचा करती थी कभी उसका जी चाहता कि सामने दीवार पर बैठी हुई चिड़िया बन जाए…..कभी उसे ख्याल आता है कि मुन्ने की तरह एक साल की बच्ची बनकर फिर से जिंदगी शुरू करें, तो क्या बनेगी?’’7 आबिदा की जीजिविषा तब दम तोड़ने लगती है जब उसका पति उस पर व्यंग्य कसने से नहीं चूकता हैं। ‘‘वाह भई! स्कूटर वाले की मसरूफियत की औकात तो तुम्हें खूब याद हो गई है अब यह करो कि उसकी प्राइवेट सेक्रेटरी बन जाओ।’’8

जीलानी बानो की स्त्रियां कठिनाईयों में भी अपने बचने का रास्ता निकाल लेती है वह साहसी तथा आत्मविश्वास से भरपूर नारी है जो अपनी आत्मरक्षा करना जानती है। वह इनका पति तथा उसके परिवार के द्वारा अवहेलना तथा प्रताड़ना की शिकार होती है, जहां बहादुरी की प्रशंसा करने वाला कोई भी नहीं है फिर हिम्मत न हारती ‘‘वह तो सारी दुनिया को पुकार-पुकार कर यह बात सुनाना चाहती थी कि उसने कितनी बहादुरी से अपनी इज्जत बचाई है।’’ /‘‘यह दो कौड़ी के मर्द क्या समझते हैं कि जब चाहो किसी औरत की इज्जत पर हमला कर दो।’’9 सितारा के परिवार वाले सास, ननद, शौहर सभी उसको ये एहसास दिलाते हैं कि हमारे घर की इज्जत चली गई हम समाज में क्या मुंह दिखाएंगे खास बात तो यह है कि खालिद तो खुद अपनी प्रेमिका को चाहता है उसके लिए सितारा शारीरिक सुख देने के अलावा और कुछ भी नहीं है। सितारा एक शिक्षित एवं आत्मनिर्भर स्त्री है अपनी बच्ची को लेकर उसके अंदर एक आत्मविश्वास पैदा होता है जब ‘‘जला-भुना खालिद कमरे में आया।’’/बच्ची को अपनी विपता (विपत्ति) क्यों सुना रही हो?’’/अब इसी को सुनाना है। उसे तो जरूर बताना है कि हर कदम पर कितने आदिल उसका रास्ता रोकेंगे।’’10

जीलानी बानो वृद्ध स्त्रियों के प्रति भी गहरी संवेदना रखती हैं। जीवन के इस पड़ाव पर विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहा लेखिका ने उस समस्या को इशारा करती है जो अपने बाल बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करती है जो बुढ़ापे की लाठी बनने के बजाए उन्हें बेसहारा छोड़ देते हैं और मरने पर आंसू का एक कतरा भी नहीं निकलता बचता है केवल दिखावा मात्र ‘‘अम्मों सबकी तरफ बड़े दुःख के साथ देख रही थी।’’/“उसके सबसे बड़े बेटे ने जल्दी सफेद कपड़ा डालकर अम्मों का मुँह छुपाना चाहा था। अगर अम्मों हाथ उठाकर चादर न हटा देती तो शायद वे सब दूसरे कमरे में जाकर उन्हें दफन करने की तैयारी शुरू कर देते।’’11

मध्यमवर्गीय परिवारों में दहेज प्रथा का चलन आज भी अपने चरम पर है। दिन प्रतिदिन इसमें इजाफा ही होता जा रहा है। स्त्री जीवन में यह किसी अभिशाप से कम नहीं। स्वयं स्त्रियां भी इस रूढ़िवादी परम्परा को निभाने से तनिक भी गुरेज नहीं करती। इस सन्दर्भ में एक स्त्री की मानसिकता कुछ इस रूप में प्रकट होती है। ‘‘हमें ऐसी नकचढ़ी जल्दबाज बहू नहीं चाहिए जो पंडितों, ज्ञानियों की रस्मों का इंतजार किए बगैर खुद अपनी चिता में जल बैठे और फिर इल्जाम आए पतिदेव पर। इसलिए कहते हैं कि पहले ही इतना दे दो कि सती की रस्म तुम्हारी बेटी को खुद ही न करना पड़े…।’’12

हमारे समाज में पति परमेश्वर या खुदा मजाजी का रूप रहा है। पितृसत्तात्मक समाज में पति को शीर्ष पर बैठाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही इस अवधारणा को लेखिका ने तोड़ने की कोशिश की है। एक लड़की को परिवार के द्वारा यह शिक्षा दी जाती है कि वह पति की इच्छा के विरुद्ध कुछ न करेंगी ‘‘अरी जोर से मत हँसना खबरदार जो किसी बात का पलट कर जवाब दिया। वह तेरा पतिदेव होगा, भगवान समान वह आए तो पहले अपने आपको समेटे रखना…।’’13 और भी नसीहतें दी जाती हैं जैसे ‘‘अरे पति जिस छूरी से मारे उस छूरी का भला… वह नारियां सीधी स्वर्ग में जाती थी जो पति के साथ सती हो जाती है।’’14

लेखिका ने गुड़िया के खेल को कुछ इस ढंग से प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत किया। मीरा जिसे गड़िया से बेहद लगाव है ऐसा लगता वह गुड़िया में स्वयं को ढूँढती है वह कहती है कि: ‘‘एक दिन भैया ने लड़कियों का सारा खेल बिगाड़ दिया था। गुस्से में गुड़िया की धज्जियाँ बिखेर डाली। हँसते-हँसते उसका सारा सिंगार उजाड़ दियां। ….मीरा उस दिन बहुत रोई थी जैसे भैया ने गुड़िया के नहीं उसके टुकड़े कर डाले हों।’’15

जीलानी बानो ने एक पुरूष की दोमुही सोच को भी बेपर्दा किया है। एक तरफ उसकी प्रेमिका तो दूसरी तरफ उसकी पत्नी है। पर पत्नी कभी भी अपने पति से कोई सवाल नहीं करती न ही उसे छोड़ पाती है। वह अपना सर्वस्व त्यागकर पति को खुश रखने का प्रयास करती है ऐसे में उस पुरूष की मानसिकता कुछ इस तरह से खुलकर सामने आती है। परन्तु एक का प्रतिरोध चूकता नहीं । जमीला का पति यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि ‘‘वह मुझे छोड़कर क्यों नहीं चली जाती? वह मुझे क्या पाने की उम्मीद में बैठी है? जमीला की इसी अदा ने मुझे घेर रखा था और इसी चक्कर में आकर मैं उसके तीन बच्चों का बाप बन गया, हालांकि मेरा दिली अभी भी कुंवारा था। मैंने अपनी चाहत, अपनी प्यास, अपनी मुहब्बत का हीरा अभी तक अपने दिल में छुपाए रखा था।’’16 यह एक स्त्री का त्याग ही है कि पुरूष चाहकर भी उससे बन्धनमुक्त नहीं हो पाता है। एक स्त्री ऐसी विषम परिस्थितियों में भी अपनी अलग राह बनाने की चाह रखती है। ‘मशाले जां’ में एक ऐसे ही परिवार की कहानी है जिसमें पति पत्नी साथ तो हैं परंतु अपनी प्रेमिका के यादों का चिराग पति हमेशा अपने दिल में जलाए रखता है। जैसे ही पत्नी को पता चलता है कहती है कि ‘‘मैं भी उस मर्द पर क्या भरोसा करू? मैं अपने बच्चे को लेकर कहीं दूर चली जाऊंगी…..। मैं इस घर में एक पल भी नहीं रह सकती। जिस पर किसी और औरत का हक हो…।’’17

पहले तो लड़की का घर में जन्म लेना ही परिवार वालों के सिर पर खतरा मंडराने लगता है। और जैसे-जैसे वह बड़ी होने लगती उस पर पहरा कई गुना बढ़ जाता । क्योंकि ‘‘अब नूरी आ गई सबको चौंकाने, दहलाने, खानदान की इज्जत के लिए खतरे की घंटी सब मर्द चौक पड़े। उसे बाधने के लिए जाल, बहलाने के लिए खिलौने और समझाने के लिए किताबें लिखी गई।’’18 नूरी के ऊपर हजार तरह की बंदिशे लगाई गई फिर भी कुछ-कुछ सवाल उसे हमेशा परेशान करते हैं व पूछती भी है ‘‘अब्बा आपकी किताब में यह क्यों नहीं लिखा है कि औरतों को मर्दों के साथ कैसा सलूक करना चाहिए।’’ उसका बाप चौक पड़ा अपनी भोली-भाली सोने की मूरत जैसी बेटी को उसने गौर से देखा और उसके हाथ से किताब छीन ली, ये किताबें लड़कियों के पढ़ने की नहीं है।’’19 इस तरह से हमारा समाज लड़कियों पर हर तरह की बंधन लगाता है और कितनी खुबसूरती से घर की चाहरदीवारी में रहने की साजिश की जाती है। ‘अजायबघर में’ नूरी नाम की पात्र जो सदैव ही अपने बाप, भाई और माँ के द्वारा बताए गए वसूलों पर चलती है उसे परिवार के सदस्यों द्वारा कुछ इस प्रकार की सीख दी जाती है। ‘‘हमारे खानदान की लड़की का चेहरा पहली बार देखने वाला मर्द उसका शौहर होता है।’’ नूरी ने अपने सिर का पल्लू चेहरे पर खींच लिया। ‘‘लड़कियां फिल्मी गीत नहीं सुनती हैं।’’ नूरी ने अपने कानों पर हाथ रख लिए। ‘‘लड़कियां बातें नहीं करती हैं’’ अपनी माँ के हुक्म पर उसने अपने लब सी लिए।’’20 परिवार के अनेक प्रयासों के बाद भी लड़की नूरी एक दिन पिजड़ा तोड़ फरार हो जाती है। बिना बताये बाजार चले जाना यही उसका सामंती व्यवस्था के प्रति प्रतिकार और प्रतिशोध की भावना को बताता है।

लेखिका ने उच्च शिक्षित, आत्मनिर्भर,साहसी स्त्री का किरदार भी गढ़ा है जो समानता, स्वतंत्रत मुक्ति की चेतना से भरपूर है। वह उन सभी बन्धनों को तोड़ देना चाहती है जो इसकी मुक्ति की राह में बाधा बने । अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए वह शोषण के विरूद्ध बगावत करने का जज्बा भी रखती है। तभी वह कहती है कि ‘‘ न नहीं जाग रही हूँ पहले वार करने वाले को ढूंढ रही हूँ । ’’21

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि जीलानी बानो की रचनाएं नारी चेतना से युक्त संघर्षशील स्त्रियों की दास्तान है। लेखिका ने अपने लेखन के माध्यम से स्त्री जीवन के विभिन्न दृष्टिकोणों अपनी जोरदार अभिव्यक्ति की हैं। यह लेखिका की अदभुत विलक्षण क्षमता का परिचायक है। उनका ऐसा सजीव व जीवन्त चित्रण कर पाना ही लेखिका की अनूठी विशेषता कही जा सकती है। लेखिका मुस्लिम स्त्रियों के अनुरूप स्त्री भाषा का इस्तेमाल करना भी बखूबी जानती है। जो पाठकवर्ग पर अपनी गहरी छाप छोड़ते है। यह कालजयी रचनाएं है जो आज तथा आने वाले समय में भी स्त्रियों में साहस एवं ऊर्जा का संचार करते रहेंगें। जिससे जिससे वह अपनी आत्मरक्षा और अस्मिता सुरक्षित रख सके । इसलिए लेखिका चेतावनी देती हैं और सचेत करते हुए कहती है कि ”धुनक में कितने रंग घुले हैं?/सत सुरों का भेद है क्या?/अलिफ लैला में कितने दर (द्वार) खुलते हैं?/गालिब दिल को क्यों दूता है?/इन भेदों को जान लो, रजाए/वरना,/आने वाले वक्त के जब्र से/अपने जमीर को बचा न सकोगी…।” इसलिए प्रत्येक स्त्री शिक्षित और आत्मनिर्भर बनें इसके लिए लेखिका अपनी रचनाओं के माध्यम से हर सम्भव प्रयास करती है।

संदर्भ

  1. बानो, जीलानी ‘सूखी रेत’(लिप्यन्तरण-सुरजीत) रामकमल प्रकाशन प्रा.लि., संस्करण, भूमिका, 2001।
  2. वही, भूमिका
  3. ज्वाए, पृ. 9-10।
  4. एक दिन लेबर रूम में, पृ. 23।
  5. वही, पृ. 25।
  6. वही, पृ. 26।
  7. स्कूटर वाला, पृ. 29।
  8. वही, पृ. 31।
  9. आगही, पृ. 39।
  10. वही, पृ. 41।
  11. प्रॉमिस, पृ. 57।
  12. ताक में रखी हुई गुड़िया, पृ. 78-79।
  13. वही, पृ. 79।
  14. वही, पृ. 81।
  15. वही, पृ. 79।
  16. ऐ दिल ऐ दिल, पृ. 97।
  17. बनों, जीलानी ‘गूड़िया का घर’’(रूपान्तर-सुरजीत) भारतीय ज्ञानपीठ,नई दिल्ली-110003 संस्करण 2009, पृ. 85।
  18. अजायबघर में, पृ. 103।
  19. वही, पृ. 105।
  20. वही, पृ. 106।
  21. कब्ल अज-मर्ग बयाँ, पृ. 128।

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.