चटकी रीढ़,अब शिक्षा माँगे प्राईवेट ट्रीटमेंट
हर देश की रीढ़ होती है शिक्षा,शिक्षा जन जागरण,नैतिकता, तार्किकता एवं मानववाद की जननी होती है शिक्षा से व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास करता है,शिक्षा पर किसी धर्म,जाति, समुदाय या व्यक्ति विशेष का ही अधिकार नही अपितु यह तो जन साधारण या हर व्यक्ति के लिए एक समान रूप से शिक्षा का अधिकार एवं कर्तव्य के क्षेत्र में आती है,शिक्षित होना आपको सभ्य,शालीनता एवं तार्किक बनाता है,जिससे आप अपने समाज और संस्कृति के लिए कुछ कर सके और एक आदर्श बन सके,शिक्षा का अर्थ वह जानना होता है,जो आपको पता तक नही होता कि यह हमको पता भी नही था। शिक्षा मानव समाज की दिशा-दशा को निर्धारित करती है।शिक्षा एक उच्च समाज का आधार ही नही अपितु यह एक राष्ट्र की निर्माता भी मानी जाती है शिक्षा ही है जो राष्ट्र के विकास,प्रभुता को अपने उच्च सफर पर ले जाती है।शिक्षा देश की सपन्नता, सजगता, जागरूकता,उन्नति का आधार होती है,वह देश का प्रतिनिधित्व करती है,शिक्षा देश की बैकबोन या कहे तो रीढ़ की हड्डी होती है,जो देश को शिथिलता प्रदान करती है।
आज देश की बैकबोन शिक्षा की हालत भी कुछ बिगड़ती जा रही,आज बैकबोन की हालत भी भार उठा-उठा कर थक गई है,आज देश की बैकबोन में दर्द हो उठा है,शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी चरमरा रही है,मानो उस पर प्रहार किया जा रहा हो,मानो की वह जोर जोर से चिल्ला रही हो कि मुझे अब मत खड़ा करो मुझे तो अब स्ट्रेक्चर पर लिटा दो मेरी करयाई टूट रही है, में अब और इस अवस्था में खड़ी नही रह सकती हूँ।आज हमारी शिक्षा व्यवस्था की बात की जाए तो वह आज इसी पीड़ा से गुजर रही है, आज की शिक्षा व्यवस्था ने मानव को निर्बल और आराम पसंद बना दिया है,आज शिक्षा का उद्देश्य मात्र अंक अर्जित करना रह गया है,जिससे शिक्षा के स्तर को शून्य कर दिया गया है,वर्तमान में हम अंक वाली शिक्षा ग्रहण कर रहे है,जिससे न तो व्यक्ति देश,समाज और अपने क्षेत्र का विकास तो छोड़ो वह इस खुद अपने व्यक्तित्व का विकास तक नही कर सकता है,आज की अंक आधारित शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा की उत्कृष्ट छवि को धूमिल कर दिया है,आज शिक्षा का अर्थ सिर्फ आगे निकलना रह गया,अंकों में बाजी मारना रह गया है।आज की शिक्षा व्यवस्था सिर्फ और सिर्फ अंक आधारित हो गयी है जिससे व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के विकास एवं सामाजिक कर्तव्यों से दूर हो रहा है,जो देश के विकास वविकास में बाधा बन खड़ी होती है।आज की शिक्षा व्यवस्था स्ट्रेक्चर पर लेटी हुई,अपने व्यवस्थित होने का इंतजार कर रही किंतु इसके चौकीदार बे-फिक्र गहरी नींद में सोए हुए है या सिर्फ सोने का नाटक कर रहे है,आज शिक्षा की हालत को देखकर भी लोग बेखबर है,वह उस घड़ी के इंतजार में है कि यह  कब अपने आखिरी स्तर पर आएगी और हम कब इसके लिए नारेबाजी कर इसके लिए द्वारा खड़ी करेगे।यही सोच उसी शिक्षा व्यवस्था की पनपी हुई थी कि कब आपको अपना स्वार्थ सिद्ध करना है।शिक्षा व्यवस्था ने मानव समाज में जहर घोलने का कार्य किया है।आज तक जिस शिक्षा के माध्यम से अन्य चिंतनीय विषय भी बड़ी आसानी से सुलझा लिये जातेथे आज वही शिक्षा स्वयं के चिंतन के विषय का कारण बन गयी है। यह कारण और भी चिंतनीय हो गया है।
शिक्षा व्यवस्था में ये एक शब्द कि में भी अब शिक्षक बन जाऊँ, यह शब्द ही शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी शक्तिशाली है,आज हर वर्ग की मानसिकता शिक्षा ग्रहण करने के बाद सिर्फ एक सरकारी नौकरी के लिए ही जाती है और जब उनमे असफल होते है तो एक शिक्षक बनना बेहतर समझते है,भले जिसके लिए वह योग्य भी न हो तो भी वह अपने आप को योग्य कर ही लेते है जुगाड़ से।
  जब ऐसी शिक्षा व्यवस्था होगी और ऐसी मानसिकता के लोग जब तक है तब तक न तो शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकता है और ना ही बेरोजगारी जैसे मुद्दे को कम किया जा सकता है।
देश के ह्रदय का शिक्षा से दहलता दिल-
शिक्षा व्यवस्था का हाल तो हर जगह ही बेहाल हुआ है,किन्तु मध्यप्रदेश में शिक्षा व्यवस्था तो पहले से ही अन्य राज्यो की अपेक्षा निचले स्तर पर थी पर वर्तमान समय ने उस स्तर को भी नीचे करते हुए इसे अपने निम्न स्तर पर पहुँचा दिया है,आज मध्यप्रदेश का शिक्षा बोर्ड अपनी निम्न स्तर की विषयवस्तु को और भी सामान्य से करने को प्रयत्नशील है,बोर्ड भी अंक प्रतिशत बढ़ाने के लिए नित्य नए फार्मूले ला रहा है,आज मध्यप्रदेश के 10 वी कक्षा में विद्यार्थी को 6 विषय में से मात्र 5 विषय में ही पास होना होता है,उसमे भी 1 विषय में सप्लीमेंटरी,5 नम्बर की ग्रेस और प्रायोजना कार्य के 20 नम्बर जो स्कूल वालों को स्वयं देने होते है,यही हाल 12वी कक्षा का है,वहाँ भी कुछ ज्यादा कम राहत नही है विद्यार्थी की दृष्टि से।इसमे दोष विद्यार्थी या शिक्षक का नही है बल्कि शासन व बोर्ड द्वारा इन विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है,जो इनको आगे जाकर सिर्फ निर्बल बनाने के लिए ही प्रेरणादायक होगी।बाकि रही हुई कसर शिक्षक पूरी कर देते है।
शिक्षा मांगे प्राईवेट ट्रीटमेंट
देश की आधार शिक्षा और यातायात की आधार रेलवे दोनों ही देश की एक आधारभूत जरूरत है जो कि दोनों ही अपने बुरे दौर से गुजर रही है, आज सरकार ने रेलवे के इस बुरे दौर को समझा और जिस तरह भारत में रेलवे को प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप में जोड़ा गया और जोड़ने का कार्य किया जा रहा है जिससे रेलवे पुनः अपने अतीत के स्वरूप में आ जाये,ठीक उसी तरह आज देश की बुलंदियों की  आधार शिक्षा जो स्ट्रेक्चर पर पड़ी हुई को भी एक ऐसे ही ट्रीटमेंट की जरूरत है,जिससे इस अद्वितीय रत्न को बचाया जा सके,वर्तमान में शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी चटकने लगी है,यदि इसका जल्द ही कोई उपचार नही किया गया तो यह और अधिक दर्दनाक हो सकती है,अब इस चटकी रीढ़ की हड्डी को एक सहारे की जरूरत है,जिसके सहारे यह चल सके।जहाँ चटकी हुई बैकबोन के साथ अपने आप हिल नही सकते उसी बैकबोन के साथ चलना तो एक मिथ्या साबित होता,क्या आपको नही लगता कि इस शिक्षा व्यवस्था को किसी टिकोने की जरूरत है?क्या शिक्षा व्यवस्था को भी प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप पर दें देना चाहिए? जिससे कि देश की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की कार्यकुशलता में सुधार आये?क्या इसकी वाकई जरूरत है? हाँ बिल्कुल यदि ऐसा होता है,जिससे कि शिक्षा व्यवस्था निरतंर व सुचारू रूप से संचालित हो तो ऐसा करने में शासन और प्रशासन व समाज को भी कोई आपत्ति नही होगी,और समाज का स्तर भी ऊँचा उठ सकेगा।
मनु शर्मा
व्यंगकार,युवा लेखक
भोपाल
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