कभी नहीं
युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ी जाए या यूक्रेन में
उसके परिणाम हर काल खंड में हर जगह
उतने ही दिल दहलाने वाले होते हैं
युद्ध में दोनो पक्ष में से कोई जीतता नहीं
दोनो ही पक्षों की हार होती है
दोनो पक्ष के प्रमुख कहते हैं कि वे
सत्य और धर्म की लड़ाई लड़ रहे है
फिर युद्ध में साम दाम दण्ड भेद
कुछ भी नहीं छोड़ते हैं
हैवानियत की सभी सीमाएँ लांघ देते हैं
मासूम बच्चे हों कि वृद्ध और अबला
किसी को नहीं बक्शते हैं
युद्ध के मैदान में पड़ी क्षत विक्षत लाशें
उनके ऊपर मँडराते चील और कौवे
जो ज़िंदा बचते हैं उनकी ज़िंदगी
खंडहर में तब्दील हो गयी होती है
कोई भी अनछुआ नहीं बचता
भाइयों के बीच ठनी लड़ाइयाँ
अक्सर भयानक रूप ले लेती हैं
फिर वो कौरव और पांडव के बीच हो
या फिर रूस और यूक्रेन के बीच
क्यूँकि भाइयों को एक दूसरे की
कमियों और शक्तियों की
पुख़्ता जानकारी होती हैं
दूसरे को समाप्त करने के जुनून में
खुद का ज़्यादा नुक़सान कर लेते हैं
मानव इतिहास के सभी मील के पत्थर
एक से एक विभत्स लड़ाइयाँ ही तो हैं
सभ्यताओं का उत्कर्ष तक पहुँच कर
युद्ध में सब कुछ गवाँ धूल में
मिल जाने की कहानी ही को
हम मानव इतिहास कहते हैं
युद्ध होते हैं, युद्ध विराम होते हैं
दोस्ती के बाद दुश्मनी, फिर दोस्ती
कुछ हमेशा के लिए नहीं होता
मनुष्य बार बार स्वयं से ही हार जाता है
यही एक मात्र पूर्ण सत्य है
यह कभी नहीं बदलता है
कभी नहीं
———प्रीता अरविन्द