1
सच तो सच है । “
तुम वादा करके
अगर किसी दिन
भले मुकर जाओ
फिर
अगले ही दिन
दस बीस लोग
जमाकर बता दो
या बिफर पड़ो !
किसी एक मसले पर
तुम्हारा जुदा -जुदा
नजरिया सही नही है ।
भले तुम्हारी नजरों मे
तुम्ही ं तुम हो ।
दूजा दिखता नहीं
शायद गुमशुम हो ।
म्हारी- म्हारी छाळया ने दूध पिलाऊ
बाकी बची ने मार भगाऊ ।
जमाने का सच
एक आँख बंद कर देखना
चाटुकारिता में लिपटना है ।
इससे तो अच्छी
गांधारी की काली पट्टी
जो दोनों आँख ना देख पायी ।
जरा सोचो –
एक आँख बंद करने से
सच कुचल जाएगा ।
जब मुँह फटेगा
अजगर सा निगल जाएगा ।
और तुम –
लाचार गडरिया से
जमीन पर लाठी पीटोगे ।
तब दूसरी तरफ से
कानों मे सुनाई देगा
एक बेबाक स्वर –
क्या फर्क पड़ता है ?
ऐसे कोई डरता है ।
फिर भी
कितने पूर्वाग्रह
कितनी गलतफहमी
मन मे पाल बैठा है ।
बाहर-भीतर
अपना रौब जमाना
अपने को ऊंचा बताना
तुम्हारे लिए ठीक हो ।
लेकिन
समय बड़ा बलवान है ।
जो बदलता पाले है।
हाकम बदलते रहेंगे ।
सिर्फ और सिर्फ
सब पर समान
हुक्म चलते रहेंगे ।
शेष गलतफहमियां है ।
सच तो सच है
जितना नकारोगे
उतना उलझ जाओगे ?
एक आँख बंद कर
सच कैसे देख पायेंगे ?
2
नन्हा लड़का
नन्हें हाथों में बेलन
थामें मुस्कराता ।
अक्ल का कच्चा
कुछ बुदबुदाता बच्चा !
तल्लीन दिखाई दिया।
रंग – बिरंगी फर्रो में
लिपटी फुलझड़ी सा।
वो सिर्फ रोटी को
आकार देता बेल कर ।
हाई फाई होटल की
रंगीनीयत से बेखबर ।
मालिक का अनुसरण
एक जोड़ी हाथ – पाँव है।
पिंजर बद्ध सोन चिरैया सा।
खाकर अनगिनत गालियां ,
मशगूल है नन्हीं हथेलिया ।
छोड़कर काँच की गोलियां ,
सेंक रही आँच पर रोटियां ।
भले आज चुपचाप
सब सह कर खामोश है ।
नियति ने पर काट लिए है !
तो फिर क्या ?
वह लड़ेगा, लड़ेगा !
बिखरेगा और निखरेगा
जीतेगा मन में होश है।
जानकर राख में छुपी
चकमक चिनगारी सा
भीतर भरा जोश है।
हारिल की लकड़ी पकड़
समय पाकर उड़ जायेगा
वह फुदकती चिरैया सा।।
कालिख में हीरा मिलेगा
नजरें गोताखोर है ।
खुली आँखों देखा
उसका सपना भोर है।
© हरीश सुवासिया
प्राध्यापक
देवली कलां(पाली)
राजस्थान
9784403104
लेखक -परिचय
* नाम – हरीश सुवासिया
* जन्मतिथी – 28 जनवरी 1985
* जन्मस्थान – देवली कला (पाली)
* सम्प्रति – प्राध्यापक
* स्थायी पता- अम्बेडकर नगर, देवली कला (पाली)
306306
* शिक्षा – एम.ए.(हिंदी ) बी.ऐड. ।
* लेखन – कविता ,गीत,गज़ल , आलेख और बाल साहित्य ।
* मो. 9784403104
* संग्रह – प्रतीक्षा रहेगी और नये पल्लव ।
* सम्मान – दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार (साहित्य लेखन और स्काउट )