सभ्य समाज की जरूरत है किन्नर विमर्श

नेहा झा

Ph.d. शोधार्थी हिंदी विभाग

हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय

ईमेल – nehajha5050@gmail.com

सारांश

साहित्य से लेकर समाज में अब लगातार विमर्शों का दौर है। जिसमे दलित, आदिवासी, वृद्ध तथा स्त्री जैसे महत्वपूर्ण विमर्श साहित्य में उभरकर आये हैं। लैंगिकता के जिस आधार पर स्त्री विमर्श ने साहित्य तथा समाज में अपनी अस्मिता तथा अस्तित्व की लड़ाई को प्रस्तुत किया तथा एक नई दृष्टि से समाज को विचार करने पर मजबूर किया। तो उसी लैंगिकता के आधार पर साहित्य और समाज में किन्नर विमर्श ने भी एक नई बहस को छेड़ दिया। सदियों से उपेक्षित हाशिये का जीवन जी रहे किन्नर समाज से लेकर साहित्य में प्राचीन समय से ही विद्यमान हैं। महाभारत के शिखंडी तथा बृहन्नला से लेकर हिन्दू तथा मुग़ल सम्राटों तक के दरबारों में उनकी महत्वपूर्ण स्थिति रही है परन्तु वर्तमान समय में उनके प्रति अपवित्रता तथा अमानवीय व्यवहार के साथ – साथ उन्हें घृणा की नजर से देखना किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक है। समाज के निर्माण में इनकी भी साझेदारी को सुनिश्चित करना होगा और समाज में उनके प्रीति जागरूकता लानी होगी। जिससे कि वह सभी किन्नर भी अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें।

बीज शब्द: हिजड़ा, किन्नर विमर्श , समाज, सरकार

प्रस्तावना:

जब से दुनिया में मानव सभ्यता ने विकास किया है तभी से समाज ने मानव सभ्यता को दो वर्गो में बाँटकर उसके विकास के क्रम को समझा है। मानवीय समाज को दो वर्गों में लैगिंकता के आधार पर ही बांटा स्त्री एंव पुरुष। इन्ही दो वर्गों के साथ – साथ समाज में एक अन्य वर्ग का भी विकास हुआ जिसको प्राचीन समय से ही नजरअंदाज किया गया जबकि वह मानव जाति में प्राचीन समय से ही उपस्थित रहा हैं। सामान्यत: समाज में ऐसे अन्य वर्ग के लिए ‘किन्नर’ एंव ‘हिजड़ा’ शब्द का प्रयोग किया गया है। मानवीय समाज में यह वह लोग होते है जो न तो पूर्ण रूप से स्त्री होते है और न ही पूर्ण रूप से पुरुष। कुछ विशेष अंगो अथवा गुण सूत्रों के नियमित विकास न होने की के कारण, ये लोग सामान्यत: स्त्री एंव पुरुष की भांति न तो संभोग कर पाते है और न ही गर्भ धारण। इसलिए ही इन्हें समाज में अपवित्र तथा अशुभ माना जाता है।

वर्तमान समाज में अनेक विमर्श जैसे दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, आदिवासी विमर्श, वृद्ध विमर्श के साथ ही साथ किन्नर विमर्श की गूंज भी सुनाई पड़ने लगी है। इनकी समस्याओं को लेकर साहित्य में कहानियां तथा उपन्यास और कवितायें भी खूब लिखी जा रही है। पिछले कुछ समय में किन्नर विमर्श तेजी से उभरकर आया है। साधारणत: हिजड़ा शब्द से हमारे मस्तिष्क में रेल गाड़ी में, बस अड्डों पर, रेड लाइट पर, या पार्क में जबरन पैसा मांगने वाली, गंदी गलियाँ देने वाली, ताली पीट पीट कर पैसा माँगने वाली पुरुषों के तरह दिखने वाली औरत आती है। क्योंकि हमने अपने आसपास उन्हें इसी तरह जीवन-यापन करते देखा है। जैसे वह हम सबसे बिल्कुल अलग हो। उन्हें समझनें से पहले हमें लिंग को अच्छे से समझना होगा। लिंग दो प्रकार के होते है 1. Homo sexual (समलैंगिक) 2. Hetro Sexual ( विषमलिंगी) । समलैंगिक को LGBTI Community या Queer भी कहते हैं। समलेंगिक पांच प्रकार के होते हैं -1.Lesbean 2.Gay 3.Bi-sexual 4.Transgender 5.Inter-sex वास्तविकता में Transgender को ही हिजड़ा कहते है। हिजड़ों के समुदाय को सामाजिक संरचना की दृष्टिकोण से 7 घरानों में बांटा जाता है। हर घराने के मुखिया को ‘नायक’ कहा जाता है। यह नायक ही अपने द्वारा आश्रम के लिए गुरु का चयन करते हैं। हिजड़े जिन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार करते है उन्हें ‘गिरिया’ कहते हैं। किसी कारण से ऐसा होता है कि बच्चे पूर्ण रूप से न तो नर रह पता है न ही मादा परंतु इसमे इनका क्या दोष है जिसकी सजा इन्हें मिलती है। केवल समाज ही नहीं इन्हे अपने परिवार से भी प्रताड़ना मिलती है जो इनके लिए सबसे ज्यादा दुख देने वाला है। ऐसे बच्चे के जन्म लेते ही उन्हे या तो मार दिया जाता है या हिजड़ों को सोंप दिया जाता है। अगर कोई माँ अपने ममता के कारण बच्चे को अपने पास रखना भी चाहती है तो बाकि घर वाले और समाज यह होने नहीं देते हैं।

परन्तु वर्तमान समय में समाज इनको लेकर काफी जागरूक हो रहा है। साहित्य के माध्यम से भी लोग इनके दर्द को समझ रहे है। इसलिए आजकल हिजड़ों को सम्मान सूचक शब्द ‘किन्नर’ नामे से पुकारा जाता है परंतु किन्नर कहने से यह तात्पर्य नहीं है की हिजड़ों को सम्मान दिया जाने लगा हो या किन्नरों का दुख कम हो गया हो। आज भी हिजड़ा शब्द गाली के रूप में एक दूसरे को नीचा दिखने के लिए दी जाती है। वे हमारे शुभ कार्यों में आकार नाच – गाना करते है और आशीष देकर नेग ले जाते है। ऐसा माना जाता है की हिजड़ों का आशीर्वाद बहुत असर करता है। इसी कारण हम उसे किसी भी शुभ कार्य में बुलाते है परंतु सपने में भी उसके जैसा बनने या उसके करीब जाने से डरते है। समाज में उनके प्रति इतना घृणा भरी होती है कि हम उन्हें इंसान के तौर पर भी समझना नहीं चाहते है।जिस प्रकार हम शारीरिक विकलांग व्यक्ति के प्रति सहनभूति रखते है उसी प्रकार हम हिजड़ों के प्रति क्यूँ नहीं रख पाते है वे भी तो एक प्रकार से शारीरिक विकलांग ही होते है न। इनके लिए न तो परिवार है, न ही शिक्षा, न रोजगार और न ही समाज है। इनका संपूर्ण जीवन दुत्कार और मांगकर ही कट जाता है। इसके अलावा इनके पास कमाई का और कोई जरिया नहीं होता इसी कारण आर्थिक मंदी से परेशान होकर कुछ हिजड़े वेश्यावृति की और जाने पर मजबूर हो जाते है। हमारे ही समाज का हिस्सा होते हुये हम इसे समाज से प्रताड़ित करके समाज से दूर जीवन किसी तरह काटने पर मजबूर कर देते है। हम इसे देखकर हँसते है इनका मज़ाक उड़ाते है लेकिन हम भूल जाते है की इस तिरस्कार या मजाक से उन्हे कितना कष्ट होता होगा।

हमने इन्हें आत्मसम्मान से जीने का समाज में एक मौका नही दिया। इनकी समस्यों को ध्यान में रखकर न तो सामाजिक सरंचना तैयार की, यहाँ तक की इनके लिए सार्वजनिक शौचालय भी हमारे समाज में नहीं बनाये। इनको अपवित्र – अशुभ मानकर हमने समाज से दरकिनार तो कर दिया पर जब यह लोग जीवन जीने के लिए रेड लाइट पर या फिर बच्चे पैदा होने पर या घर में शुभ काम होने पर नेग मांगने आते है तो हमारे अंदर घृणा का बोध होने लगता है। हमने समाज में ही नहीं बल्कि सरकारी नौकरियों में भी इन्हें अलग से आरक्षण नहीं दिया। न तो इनके लिए स्कूल अलग बनाये और न ही कॉलेजों में शौचालय बनाये। हिजड़ा होने की वजह से इनका मजाक उड़ाया जाता है इनके शरीरिक लक्षणों को देखते हुए तंग किया जाता है। जिस कारण यह लोग अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ देते है या फिर इन्हें शिक्षा पूरी करने का मौका ही नहीं मिलता है।

इनकी इन्हीं सभी समस्यों को ध्यान में रखकर अब इनपर साहित्य लिखा जा रह है। किन्नरों की चर्चा वर्तमान साहित्य में ही नहीं बल्कि पौराणिक ग्रंथो मे रामायण और महाभारत में भी की गयी है। महाभारत महाकाव्य में शिखंडी नामक किन्नर की चर्चा है तो रामायण में भी किन्नरों से संबन्धित अनेक कथाएँ प्रचलित है। पुराने समय में हिन्दू एवं मुस्लिम शासक इन्हें हरम की सुरक्षा के लिए नियुक्त करते थे। पहले जिस विषय पर बात भी नहीं की जाती थी आज उस विषय पर लोग चर्चा करना आरंभ ही नहीं किए बल्कि इसे समाज की ज्वलंत समस्या के रूप में भी स्वीकार किया जा रहा है। वैसे तो किन्नरों की समस्याओं पर बहुत पहले ही गौर करना चाहिए था परंतु देर से ही सही यह अब किन्नरों की समस्या को गंभीरता से लिया जा रहा है। साहित्य में किन्नर समाज पर रचनाएँ लिखी जा रही है, लेख प्रकाशित हो रहे है, कई विश्वविद्यालयों में इनपर शोध भी कराया जा रहा।

वैसे तो पुराने समय से ही अनेक रचनाकारों ने किन्नरों की चर्चा अपनी रचनाओं में की है परंतु वास्तव में किन्नर विमर्श की शुरुआत नीरजा माधव का उपन्यास ‘यमदीप’ से माना जाता है जिसकी रचना 2001 में हुई। यमदीप उपन्यास की नायिका नन्दरानी या नाज बीवी है। नन्दरानी के चाल – चलन एवं स्वभाव से उसकी माँ को पता चल जाता है कि नन्दरानी हिजरा है परंतु वह समाज की परवाह किए बगेर उसे अपने साथ रखना चाहती है और उसे अच्छी शिक्षा प्रदान करवाने की चेष्टा करती है। परंतु पढ़ने में होशियार होने के बावजूद उसकी शिक्षा पूरी नहीं हो पाती क्योंकि उम्र के बढ़ने के साथ – साथ उसे दाढ़ी – मूछ आने लगते है। उसके साथ के बच्चों का उसे इस कारण चिढ़ाना उसे अंदर तक तोड़ कर रख देता है। समाज के ताने और परिवार के दुख के कारण वो हिजड़ो की बस्ती उनकी दुनिया में जाने का फैसला लेती है। वहाँ उसका नाम नंदरनी से नाज बीवी हो जाता है और उसके गुरु मेहताब गुरु बनते है। इस उपन्यास के माध्यम से माधव जी हिजड़ा समाज के यथार्थ को दर्शाया है उन्होने ये दिखाने की कोशिश की है की समाज अगर मौका दे तो हिजड़े बहुत कुछ कर सकते है वो ये साबित कर सकते है कि उन्हें किसी से कम नहीं आंकना चाहिए। नाज बीबी कहती भी है कि “अगर सरकार हमें भी हथियार दे, मैं तो लड़ूंगी। लड़ते-लड़ते हिन्दुस्तान के पीछे अपनी जान दे दूंगी।” इसी तरह मुंबई के कंपनी में ऋण की वसूली के लिए हिजड़ो की सहायता ली जाती है जिसे वो चुटकी में वसूल कर ले आती है। एक लड़की का बलात्कार होने से हिजड़े ही उसे बचाते हैं। माँ की ममता से दूर होने के बाद भी उनके अंदर इतनी ममता बच्ची होती है की वो एक पागल औरत के बच्चे को जन्म देने में मदद भी करती हैं और उस बच्चे को किसी के द्वारा स्वीकार ना करने पर खुद ही उस बच्चे को अपने साथ ले भी जाती हैं। बच्चे का स्कूल में भर्ती करवाने के समय नाज बीवी का कथन किन्नरों की व्यथा को अत्यंत मार्मिक रूप से प्रकट करता है – “जब हम धंधे पर नहीं होते बहन जी तो इस तरह का मजाक हमारे सीने में गाली की तरह लगता है। हम आसमान से तो नहीं टपकते हैं ना आप ही की तरह किसी मां की कोख से जन्मे है हाड़ – मांस का शरीर लिया। हमें तो अपने आप दुख होता है जीवन पर आप लोग भी दुखी कर देते हो।” हिजरा अगर एक बार परिवार को छोड़ देते है तो वापस से परिवार में चाह कर भी नहीं जा पाता है। नाज बीवी अपने माता – पिता को याद करने पर भी उनसे मिलने नहीं जा पाती है। माँ की मृत्यु के पश्चात घर जाने पर भाभी भगा देती और शमशान में भाई। नीरजा माधव जी ने इस उपन्यास द्वारा किन्नरों पर हो रहे अत्याचारों को तथ्यों के माध्यम से दिखते हुये समाज में उनका महत्व और समाज के मुखी धारा से उन्हें जोड़ने का प्रयास किया है। किन्नर जीवन पर आधारि दूसरा प्रख्यात उपन्यास प्रदीप सौरव कृत ‘तीसरी ताली’ है जो 2014 में आया। इस उपन्यास में हिजड़ो की मजबूरीयों का खुल कर वर्णन किया गया है। वे किन कारणों से वेश्यावृति में जाने को मजबूर होते है? क्या सभी हिजड़े वेश्यावृति करते है? क्यूँ वे स्वयं ही हिजड़ा समुदाय में चले जाते है? आदि अनेक प्रश्नों के उत्तर के साथ यह भी पता चलता है की उन्हें समाज मौका नहीं देता अगर इन्हें मौका मिलेगा तो वे विनीता जैसी एक प्रख्यात ब्यूटीशियन और सुप्रिया जैसी फिल्मी डांसर बन सकती है। इस उपन्यास में असली और नकली हिजड़ो की समस्याओं को भी दिखाया गया है। इसके साथ ही हिजड़ा समाज की अनेक सच्चाईयों से भी पाठकों को रूबरू कराया है जिनसे वे अनिभिज्ञ थे। इसी क्रम में आगे महेंद्र भीष्म का ‘किन्नर कथा’ उपन्यास आता है जिसका प्रकाशन 2014 में हुआ इस उपन्यास में खानदान का की झूठी इज्जत, मान मर्यादा और सामाजिक दबाव के कारण केसे एक पिता अपनी हिजरा संतान को को जान से मारने में भी संकोच नहीं करता। साथ ही एक माँ की ममता को भी दिखाया गया है एक माँ किस प्रकार अपनी बेटी सोना का किन्नर होने का राज सबसे छिपती है। सोना राजघराने की लड़की है लेकिन उसके पिता को उसके किन्नर होने की खबर लगने पर सोना के प्रति उनका सारा प्रेम खत्म हो जाता है और वो उसे मारना चाहते है परंतु कहानी एक नया मोड़ लेती है और वह बच जाती है भविष्य में वह खूब नाम कमाती है। इन्हीं का एक और उपन्यास जो किन्नर पर आधारित है वो है ‘मैं पायल’। मैं पायल उपन्यास किन्नर के संघर्ष, कष्ट, पीड़ा सह कर भी खुशहाल जीवन जीने की ललक की है। पिता का पायल के लिए ये कहना की “ये जुगनी! हम क्षत्रिय वंश में कलंक पैदा हुई है, साली हिजड़ा।” उसे बार – बार मारना और एक बार तो इतनी बुरी तरह से मारना की उसकी जान चली जाए। ये सारी चीजे उसे विचलित कर देती थी। वह अत्यंत दुखी हो जाती थी परंतु वहीं उसकी माँ का हमेशा उसे बचाना, उसे हमेशा स्नेह करना उसके पिता के दिये गए घाव पर मरहम का काम करता था। उपन्यास में उन किन्नरों के जीवन का, उसके परिवार, उसके हिजड़ा समुदाय का, सामाजिक नजरिए आदि का अत्यंत बारीकी से वर्णन किया गया है। उपन्यास ‘मैं पायल’ के जरिये समाज की सोच बदलने की कोशिश की गयी है। निर्मला भुराडिया का ‘गुलाम मंडी’ में समाज के इस चमचमाती दुनिया का दूसरा अंधेरा पक्ष दिखाया गया है। यह उपन्यास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर थर्ड जेंडर, जिस्म्फ़रोशी, ह्यूमन ट्रैफिकिंग आदि विषयों पर लिखा गया है जिसे हमारा तथाकथित समाज हमेशा से दबाना चाहता है। इस उपन्यास में काफी हद तक सच्चाई है जिसे रिपोर्टर से बनी लेखिका निर्मला ने रिपोतर्ज शैली में भी लिखा है। उपन्यास की नायिकाएं ‘कल्याणी’ और ‘जानकी’ हैं। इन्हीं के माध्यम से हमारे सामने उस दुनिया का काला सच जो दिल देहला देने वाला है वो सामने आ पाता है। इस उपन्यास के माध्यम से यह बताया गया है कि जिस समाज में एक स्त्री की पीड़ा को उसके दुख को नहीं समझा जा सकता तो किन्नरों की पीड़ा को समझने की उपेक्षा कैसे रख सकते हैं। चित्रा मुद्गल के उपन्यास ‘पोस्ट बॉक्स नंबर 203 नालासोपारा’ 2016 में प्रकाशित हुआ। हाल ही में इसे अकादमिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इस उपन्यास में माँ – बेटे का मर्मस्पर्शी रिश्ता दिखाया गया है। उपन्यास का मुख्य पात्र विनोद उर्फ ‘बिन्नी’ है जिसे लिंग दोष के कारण न चाहते हुये भी माँ हिजड़ो को सोंप देती है। विनय उस समुदाय में अपने आप को ढाल नहीं पता और न ही वो घर जा सकता है लेकिन इसके बावजूद वह टूटता नहीं है बल्कि वह समान्य जीवन जीना चाहता है, नाम कमाना चाहता है, अपनी माँ का बेटा होने का फर्ज निभाना चाहता है और हिजड़ा समुदाय के लिए भी बहुत कुछ करना चाहता है। विनय अपनी माँ को खत में लिखता भी है – “सबने मुझसे मुंह मोड़ लिया, पर सपनों ने मुझसे मुंह नहीं फेरा, आज भी वे मेरे पास बेरोक-टोक चले आते हैं।” विनोद और उसकी माँ एक ही शहर में रहने के बावजूद चिट्ठियां के माध्यम से बात करने पर मजबूर हैं। वह अपनी माँ को छोटी से छोटी समस्याओं को बताता है लेकिन माँ से मिल नहीं सकता है और इसका दोषी हमारा समाज है जो एक मनुष्य की सारी कमियों को बर्दास्त कर सकता है लेकिन लिंग दोष जैसी कमी को नहीं। चित्रा जी ने इस उपन्यास में यह भी दिखाया है की किस प्रकार राजनीति में भी इन्हें सिर्फ वोट बैंक के रूप में देखा जाता है जब बिन्नी अपने अधिकारो के लिए लड़ती है तो उसे मरवा दिया जाता है।

साहित्य में कहानियों के अंदर किन्नर विमर्श की बात करे तो उपन्यास की तुलना में कहानी ज्यादा समृद्ध नहीं है परंतु फिर भी जितनी कहानियाँ है वो किन्नरों की व्यथा कहने में सफल है जैसे शिवप्रसाद सिंह की ‘बिंदा महाराज’ एक कालजयी कहानी है। इस कहानी में एक वृद्ध हिजड़ा का कष्ट और दुख से समाज को अवगत कराने की कोशिश की गयी है। कहानी के शुरुआत में ही बिंदा महाराज की स्थिति दिखाई गयी है। – “मच्छरों से भरे, भीगी-भीगी दीवार वाले घर में चारपाई पर लेटे-लेटे बिंदा महराज का दिल डूबने लगा था, बतख की तरह उजली धूप देखकर उसे बड़ी राहत मिली। उसने हाथ से धूप छुआ, सिर को छूकर सोचा कि आज बेगानी लगने वाली यह देह उसी की है।” समान्य वृद्ध को जिस समाज में बच्चे अपनाते नहीं है वहीं हिजड़ा वृद्ध को कौन अपनाएगा। ऐसे में उनकी स्थिति बद से बत्तर हो जाती है यही इस कहानी में दिखाया गया है। गरिमा संजय दुबे की कहानी ‘पन्ना बा’ किन्नर विमर्श की एक सशक्त कहानी है जिसमे दिखाया गया है कि उनके जीने पर तो उन्हें इज्ज़त नहीं ही मिलती है मरने के बाद भी उन्हें जूते और डंडों से मारते हुये शमशान ले जाया जाता है। डॉ। विजेंद्र प्रताप सिंह की कहानी ‘संकल्प’ अपने में एकदम अलग तरीके की कहानी है। यह हिजड़ा जीवन की मेडिकल साइंस और प्लास्टिक सर्जरी के द्वारा होने वाले इलाज आदि के बारे में बताती है। इस कहानी में इतनी सारी जानकारी दी गयी है जिसे शायद ही पाठक जनता हो। कहानी की मुख्य पात्र ‘माधुरी’ है जो अनेक प्रकार के अपमान सह कर भी विजय प्राप्त करती है और हमारे सामने एक साहसी और निडर किन्नर के रूप में आती हैं।

अनेक किन्नरों ने आत्मकथा के माध्यम से अपनी पीड़ा को बया किया है जिसमें लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जो की ‘मी हिजड़ा मी लक्ष्मी’ शीर्षक से आयी जिसमें उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष का वर्णन किया है। उन्होने अनेक ऐसे कार्य किये जिससे हिजड़ा समाज आज अपने अधिकारों को पाने मे सफल हुआ है। यह उनका ही संघर्ष और लगन है कि विगत अप्रैल 2015 में उच्चतम न्यायालय ने किन्नरों को तीसरे लिंग की मान्यता प्रदान किया गया। किन्नर समाज में ऐसी ही और भी अनेक सामाजिक कार्यकता उभर कर आ रही है जो अपने समुदाय के हीत में कार्य कर रही है।

किन्नर को समाज में अन्य लोगों की तरह जीने का अधिकार देने के लिए भारत सरकार ने अनेक कानून और योजनाए इनके हित में बनाई है। साल 2013 में राज्यसभा ने निजी विधेयक पारित किया था– द राइट्स ऑफ ट्रांसजेंडर्स पर्सन्स बिल, जो किन्नरों के अधिकारों की बात करता था। अब सरकार ने विधेयक में दंडात्मक प्रावधान भी रखा है। कानून के हिसाब से किन्नरों को उत्पीड़न या प्रताड़ित की सजा 6 महीने की जेल हो सकती है। इससे अब समाज में उनका मजाक बनाना या फिर उन्हें तंग करना बंद हो गया है। इन्ही विधेयेकों के माध्यम से सामाजिक लाभ अब इन्हें मिलने लगा है। किन्नरों को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में शामिल करने का प्रस्ताव है। हालांकि, यह तभी लागू होगा, जब वे अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं होंगे। यानी यदि वे अजा–अजजा का हिस्सा हैं तो उन्हें उसका ही लाभ मिलता रहेगा। अप्रैल 2014 में भारत की शीर्ष न्यायिक संस्था– सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी थी। नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी की अर्जी पर यह फैसला सुनाया गया था। इस फैसले की ही बदौलत, हर किन्नर को जन्म प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला। इसके साथ ही उन्हें एक–दूसरे से शादी करने और तलाक देने का अधिकार भी प्राप्त हुआ। वे बच्चों को गोद ले सकते हैं और उन्हें उत्तराधिकार कानून के तहत वारिस होने एवं अन्य अधिकार भी मिल गए। परंतु अनेक किन्नर शिक्षित न होने के कारण अपने अधिकारों से अवगत नहीं हो पाते हैं। शिक्षा को लेकर थोड़ा सरकारों के साथ साथ इन्हें भी आगे आना पड़ेगा। ये जिन – जिन अधिकारों से वंचित थे वो सभी इन्हें दिया जा रहा है। जिस कारण अब अनेक किन्नर खुल कर सामने आ रहे है वे भी पढ़ लिख कर बड़े – बड़े पद पर बैठ रहे है। किन्नर हर छेत्र में अपनी काबिलियत समाज को दिखा रहे है। शबनम मौसी, कमला जान, आशा देवी, कमला किन्नर, मधु किन्नर, और ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी आदि इसका उदाहरण हैं। वर्तमान में हर वो कोशिश की जा रही है जो इन्हें मुख्यधारा से जोड़ सके और यह लक्ष्य धीरे धीरे ही सही लेकिन पूरा होता हुआ भी नज़र आ रहा है।

2019 में भारत में सरकारी नौकरी लेकर किन्नर संजना सिंह ने इतिहास रच दिया था। संजना सिंह को मध्य प्रदेश के सामाजिक न्याय एंव दिव्यांग कल्याण विभाग के सचिव की निजी सहायक के तौर पर नियुक्त किया गया था। जोयिता मंडल कभी भीख मांगने पर मजबूर थी लेकिन अपनी मेहनत से वह बंगाल के दिनाजपुर जिले के इस्लामपुर में भारत की पहली ट्रांसजेंडर जज बनी। हाल ही मार्च 2021 में छतीसगढ़ सरकार ने 13 ट्रांसजेंडर को पुलिस कांस्टेबल की नौकरी देकर एक मिसाल कायम की है। बिहार सरकार ने भी सिपाही और दरोगा के 500 पदों पर एक पद ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षित रखा है। इसके लिए उन्हें लिखित परीक्षा पास करनी होगी।ऐसे ही अब किन्नर भी समाज के हर छेत्र में अपनी भागीदारी बराबरी के साथ निभाने की शुरुआत करदी है।

निष्कर्षतः उपयुक्त अध्ययन एंव चिंतन के बाद हम कह सकते है कि समाज के तृतीय एंव अन्य वर्ग की पीड़ा एंव दुःख को समझते हुए समाज में उनकी भागीदारी बराबर की है। समाज के ऐसे वर्ग के लोगो के लिए समाज में जीने के लिए हम सबको एक सकारात्मक माहौल देना होगा जिससे की वह एक बेहतरीन जीवन जी सकें। एक छोटी सी उम्र से ही उन्हें दुत्कार और सामाजिक बहिष्कार जैसी यातनाओं को झेलना पड़ता है। अपना परिवार, दोस्त अपने सपने एंव अपनी इच्छाओं को दफनाकर एक नीरस जीवन की तरफ आगे बढ़ना होता है। इसलिए हम सबको इनके प्रति घृणा के भाव की जगह स्नेह के भाव को महसूस कराना होगा। जीवन यापन के लिए इन्हें भीख मांगनी पड़े इसलिए इन्हें नौकरीयों के बराबर अवसर प्रदान करने होंगे। इन्हे समाज से केवल इज्ज़त और बाकि लोगों की तरह सामान्य व्यव्हार चाहिए सहानुभूति नहीं। समाज कुछ वर्षो से इनके प्रति सजग हुआ है और साथ ही तमाम रचनाकार साहित्य की विभिन्न विधाओं में लगातार इनके विषयों पर लिखकर इनके समाज की इनके वर्ग की समस्याओं से सभी को अवगत करवा रहें है। जिससे लोग अब इनके प्रति सकारात्मकता का भाव रखते है। सरकारी नौकरियों से लेकर के चुनाव तक में अब यह बढ़ – चढ़ कर हिस्सा ले रहें हैं। हिजड़ा शब्द कलंकित नहीं है बल्कि हमने उन्हे कलंकित किया है और इस कलंक को दूर करने के लिए इन्हे स्वयं भी शिक्षित होना पड़ेगा तभी ये समाज के बिच अपनी पहचान एवं इज्ज़त बना पायेंगे।

संदर्भ सूची

  1. माधव,नीरजा.(2009). यमदीप, सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली
  2. भराडिया,निर्मला.(2016), गुलाम मंडी, सामायिक प्रकाशन नई दिल्ली
  3. सौरभ, प्रदीप.(1997). तीसरी ताली, वाणी प्रकाशन नई दिल्ली
  4. त्रिपाठी,लक्ष्मी.(2015). मी हिजड़ा मी लक्ष्मी, वाणी प्रकाशन नई दिल्ली
  5. सिंह, शिव प्रसाद। बिंदा महारज – थर्ड जेंडर : हिंदी कहानियां संग्रह
  6. दुबे, गरिमा संजय। ‘पन्ना बा’ – दो ध्रुवों के बीच की आस : कहानी संग्रह

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