।। मेरी मां….।।
अमिट प्रेम की पीयूष निर्झर
क्षमा दया की सरिता हो ।
गीत ग़ज़ल चौपाई तुम हो
मेरे मन की कविता हो ।।
ऋद्धि सिद्धि तुम आदिशक्ति हो
ज्ञानदायिनी मां सरस्वती हो ।
रणचंडी तुम समर क्षेत्र में
रिपुंजय मां काली हो।।
कृष्ण बांसुरी की तुम धुन हो
नारद की वीणा का स्वर हो ।
चक्र सुदर्शन श्री विष्णु के
शिवजी का त्रिशूल प्रखर हो ।।
गीता के तुम श्लोक छंद हो
मानस की दोहे चौपाई ।
वीणा की तुम झंकृत स्वर हो
सात सुरों की तुम शहनाई ।।
गंगा-यमुना का संगम हो
सुरसुरी की निर्मल धारा हो ।
हिमगिरि का उत्तुंग शिखर हो
सागर की पावन धारा हो ।।
सीता सावित्री अनुसुइया
मां पार्वती कल्याणी हो ।
श्री लक्ष्मी तुम दिव्य रुप हो
मां स्वरुप अवतरिणी हो ।।
जन्मदायिनी – ज्ञानदायिनी
शिक्षा संस्कार की देवी ।
रुप अलौकिक चंद्र किरण सा
पालक पोषक जग की सेवी ।।
विमल रुप व्याप्त विश्व में
धरा गगन आरती उतारें ।
मातृशक्ति तुम देवमणि हो
जनमानस नित पांव पखारे ।।
उर्वर धरती की तुम शोभा
नील गगन सा शीश छत्र हो ।
चार दिशाओं की ज्वाला हो
जनजीवन का कर्मक्षेत्र हो ।।
सदा सत्य का दर्पण तुम हो
पावन पुण्य समर्पण तुम हो ।
पूजनीय हैं चरण तुम्हारे
पावन पूजन अर्चन तुम हो ।।
होली और दिवाली तुम हो
ईदगाह की रौनक तुम हो ।
ईस्टर की प्रार्थना तुम्हीं हो
प्रकाश पर्व का गौरव तुम हो ।।
पुण्य धरा की नारी तुम हो
हे मां! जन कल्याणी तुम हो ।
नेह स्नेह की बलिबेदी हो
मेरे मन की वाणी तुम हो ।।