आज की होली में
है नीरवता
बीच- बीच में कहीं कोलाहल बच्चों का
कहीं कभी बज जाता है डी जे.
लोग बन्द होने लगे हैं घरों में..
कोई होली के नाम पर अराजकता न कर दे
वो होली के पखवाड़े पूर्व का उल्लास
वो डब्बे में बाँध चिड़चिड़ी लकड़ी की आग
का गोलाकार घुमाना
वो रंगों की खरीददारी
तरह- तरह के पकवान की तैयारी
फ़टे-पुराने कपड़ों के जुगाड़
यादआती है
उसी होली की याद…
आज की होली
हो गयी दफ्तर की छुट्टी काटने का बहाना
काश! कि लौटे वो त्योहार पुराना
दिन भर रंगों में डूब जाना
- शाम को घण्टो नहाना और
जब जाऊँ दफ़्तर
तो कान रंगा रहे ….
अगले दो दिनों तक
तन- मन खिला रहे
पलाश के फूल सरीखे
कई दिनों तक…
इसी रंग औऱ ताजगी के बूते बीत जाए यह वर्ष..