जिंदगी से इक दिन मिली जिंदगी
जिंदगी हो गई इक हसीं जिंदगी
जिंदगी ने कहा जिंदगी तुम सुनो
जिंदगी के बिना ना रही जिंदगी
जिंदगी जब मिली जिंदगी से तो पूछा
अब तक कहां रही ऐ मेरी जिंदगी
जिंदगी ने कहा जिंदगी की कसम
जिंदगी के बिना ना रही जिंदगी।
कवि और लेखक: डॉ. गुरु सरन लाल, असिस्टेंट प्रोफेसर, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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