मैं कहूँगी किसी रोज़ तुमसे
जब तुम उठकर गए
बहुत दूरी तक
ठीक तब मेरी आँखों में
तुम्हारे जाने की स्मृति ने जन्म लिया
और वह और गाढ़ी हो गई
जैसे रक्त कौंधता है शिराओं में
ठीक वैसे तुम्हारा नाम मन की भित्तियों से
चिपका रह गया है
तुम्हारी स्मृति में मैं न भी रहूँ
तब भी रहेंगे मेरे नाम के स्पर्श
तुम्हारे होठों पर
मेरी आत्मा का एक किनारा
कहीं डूबेगा नहीं तुम्हारे प्यार में
मैंने तुम्हारे पुनीत नाम को
अपना बना लिया है ।
तुमसे ज़्यादा
तुम्हारा नाम है प्रेमी ।