प्रेमचंद के उपन्यास साहित्य में चित्रित पत्रकारिता संदर्भ
-डा. पवनेश ठकुराठी,
अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) – 263601
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वेबसाइट- www.drpawanesh.com
शोध सार
प्रेमचंद के उपन्यासों की पत्रकारिता विभिन्न समाचार पत्रों–पत्रिकाओं के संपादन एवं उनमें प्रकाशित होने वाले समाचार नोटिस आदि को व्यक्त करती है। इनके उपन्यासों में व्यक्त पत्रकारिता से पता चलता है कि आजादी से पूर्व के भारतीय समाचार– पत्र जनता एवं ब्रिटिश सरकार की गतिविधियों को प्रसारित करने का कार्य किया करते थे। ज्यादातर पत्रों में देशभक्ति और स्वदेश को महत्व दिया जाता था। प्रेमचंद के उपन्यासों में कमला, सरस्वती, जगत, हिंदुस्तान–रिव्यू, गौरव, आर्य–जगत्, प्रजा–मित्र बिजली आदि पत्रों के संपादन से संबंधित प्रसंग व्यक्त हुए हैं।
बीज शब्द: प्रेमचंद, उपन्यास, पत्रिकाएँ, संपादक, कहानी, पत्रकारिता
शोध विस्तार:
एक ऐसा कथाकार जो स्वयं एक सफल पत्रकार रहा हो, उसके कथा साहित्य में पत्रकारिता से संबंधित संदर्भ व्यक्त न हों, ऐसा कम ही देखने में आता है। कथाकार प्रेमचंद एक सफल पत्रकार रहे थे, यही कारण है कि उनके कथा साहित्य में पत्रकारिता से संबंधित विविध संदर्भ व्यक्त हुए हं। प्रेमचंद के उपन्यास और कहानी साहित्य दोनों में पत्रकारिता से जुड़े विविध संदर्भ दिखाई देते हैं।
प्रेमचंद के प्रेमा, वरदान, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि उपन्यासों में पत्रकारिता से संबंधित विविध संदर्भों का निरूपण हुआ है। इनके ‘प्रेमा’ उपन्यास में अमृतराय के समाचार पत्रों में सामाजिक सुधार पर लेख लिखने का उल्लेख हुआ है: ‘‘इसके उपरांत उन्होंने देहातों में जा-जाकर सरल-सरल भाषा में व्याख्यान देना शुरू किया और समाचार पत्रों में समाजिक सुधार पर अच्छे-अच्छे लेख भी लिखे।’’1 इसी उपन्यास में मुंशी बदरीप्रसाद और बाबू अमृतराय के अखबार पढ़ने का भी उल्लेख हुआ है। संबंधित उदाहरण दृष्टव्य हैं-
- कई मिनट तक मुंशी बदरीप्रसाद अखबार पढ़ते रहे।2
- अखबार पढ़ते-पढ़ते सो गये।3
इनके ‘वरदान’ उपन्यास में ‘कमला’ और ‘सरस्वती’ नामक पत्रिकाओं से संबंधित संदर्भ व्यक्त हुए हैं। ‘कमला’ में ‘भारत महिला उर्फ विरजन’ की कविताएं प्रकाशित होती निरूपित हुई हैं। दो उदाहरण दृष्टव्य हैं –
- प्रयाग से उन दिनों ‘कमला’ नाम की अच्छी पत्रिका निकलती थी। प्राणनाथ ने ‘प्रेम की मतवाली’ को वहां भेज दिया।4
- अब प्रतिमास ‘कमला’ के पृष्ठ विरजन की कविता से सुशोभित होने लगे और ‘भारत महिला’ के लोकमत ने कवियों के सम्मानित पद पर पहुंचा दिया।5
विरजन की लोकप्रियता से प्रभावित होकर ही प्राणनाथ ‘भारत महिला’6 के शीर्षक से एक प्रभाव पूरित लेख लिखता है। इसी प्रकार बालाजी उर्फ प्रतापचंद्र विरजन की कविताओं की समालोचना ‘सरस्वती’ में लिखता है: ‘‘वे अपनी प्रभावशालिनी वक्तृताओं और लेखों में बहुधा उसी के वाक्यों का प्रमाण दिया करते थे, उन्होंने ‘सरस्वती’ में एक बार उसके संग्रह की सविस्तार समलोचना भी लिखी थी।’’7 वस्तुतः ‘सरस्वती’ पत्रिका प्रेमचंद के काल में प्रकाशित होती थी किंतु ‘सरस्वती’ की स्थापना 1900 ई0 में हुई थी और 1903 से 1920 तक इस पत्रिका का संपादन महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किया और इसे लोकप्रियता के उत्कर्ष तक पहुंचाया।
इनके ‘सेवासदन’ उपन्यास के चरित्र प्रभाकर राव का परिचय कथाकार ने हिंदी पत्र ’जगत’8 के संपादक के रूप में कराया है। वेश्या समस्या से संबंधित प्रस्ताव पर लेखमाला वे अपने इसी पत्र में निकालते हैं: ‘‘लेकिन महीना पूरा भी न हो पाया था कि प्रभाकर राव ने अपने पत्र में इस प्रस्ताव के संबंध में एक लेखमाला निकालनी आरंभ कर दी। उसमें पद्मसिंह पर ऐसी ऐसी मार्मिक चोटें करने लगे कि उन्हें पढ़कर वह तिलमिला जाते थे।’’9 इस उपन्यास का युवा चरित्र सदनसिंह भी अपने लेख प्रकाशित करने के लिए ‘जगत’ के संपादक के नाम भेजता है:‘‘उसने दो-तीन लेख लिखे और प्रभाकर राव के पास डाक द्वारा भेजे। कई दिन तक प्रकाशित होने की आशा करता रहा।’’10 जब लंबे समय बाद भी उसके लेख प्रकाशित नहीं होते, तो वह स्वयं ‘जगत’ के संपादक को धमकाने उनके कार्यालय पहुंच जाता है: ‘‘संध्या समय एक मोटा-सा सोटा लिए हुए ‘जगत’ कार्यालय में पहुंचा। कार्यालय बंद हो चुका था। पर प्रभाकर राव अपने संपादकीय कुटीर में बैठे हुए कुछ लिख रहे थे।’’11 प्रभाकर राव द्वारा उसकी शंका का समाधान होने पर ही वह वापस घर लौटता है। वस्तुतः सदनसिंह को शक होता है कि प्रभाकर राव ने द्वेष भाव के कारण उसके लेखक नहीं छापे।
इनके ‘प्रेमाश्रम’ उपन्यास का उच्चवर्गीय चरित्र ज्ञानशंकर जब अपने विचारों को एक अंग्रेजी पत्रिका में प्रकाशित कराता है, तो पूरे नैनीताल में हलचल मच जाती है: ‘‘किंतु जब ज्ञानशंकर ने अपने विचारों को एक प्रसिद्ध अंग्रेजी पत्रिका में प्रकाशित कराया तो सारे नैनीताल में हलचल मच गई।’’12 इस उपन्यास में एक अंग्रेजी पत्र में दवाओं के मनोरंजक विज्ञापन छपे होने का उल्लेख भी हुआ है: ‘‘एक अंग्रेजी पत्र लेकर पढ़ना चाहा पर उसमें जी न लगा। दवाओं के विज्ञापन अधिक मनोरंजक थे। दस मिनट में उन्होंने सभी विज्ञापन पढ़ डाले।’’13 वस्तुतः जिस अंग्रेजी समाचार पत्र में ज्ञानशंकर का लेख छपा होता है, उस अंग्रेजी समाचार पत्र का नाम ‘हिंदुस्तान रिव्यू’ होता है और इसी समाचार पत्र में छपे लेख को पढ़कर प्रेमशंकर विदेश से भारत लौट आता है; तभी तो वह ज्ञानशंकर से कहता है: ‘‘… ‘हिंदुस्तान रिव्यू’ में तुमने नैनीताल के जीवन पर जो लेख लिखा था उसे पढ़कर मैंने आने का निश्चय किया।’’14 इस उपन्यास में ‘तिलक’ नामक समाचार पत्र की कार्यप्रणाली और रूढ़िवाद को पोषित करने की प्रवृत्ति का निरूपण करते हुए कथाकार लिखता है: ‘‘‘तिलक’ एक स्थानीय समाचार पत्र था। उसमें इस विषय पर खूब जहर उगला जाता था।’’15 वस्तुतः यह विषय ज्ञानशंकर द्वारा भाई प्रेमशंकर पर लगाये गये झूठे आरोपों एवं आक्षेपों का पुलिंदा मात्र था।
इस उपन्यास में सैयाद ईजाद हुसैन उर्फ मिर्जा साहब भी अपने ‘इत्तहादी यमतीखान’े की प्रशंसा अखबारों में तलाशते निरूपित हुए हैं: ‘‘इसके बाद समाचार पत्रों की बारी आई, लेकिन मिर्जा की निगाह लेखों या समाचारों पर न थी। वह केवल ‘इत्तहादी अनाथालय की प्रशंसा के इच्छुक थे। पर इस विषय से उन्हें बड़ी निराशा हुई। किसी पत्र में भी इसकी चर्चा न दीख पड़ी।’’16 इस उपन्यास में गायत्री द्वारा सनातन धर्म सभा को पचास हजार के गहने दान में देने की खबर का समाचार पत्रों में छपने का उल्लेख हुआ है: ‘‘उसने ज्ञानशंकर को, जो सभा के मंत्री थे, बुलाया और अपने गहनों का संदूक देकर बोली, इसमें पचास हजार के गहने है, मैं इन्हें सनातन धर्म सभा को समर्पण करती हूँ। समाचार पत्रों में यह खबर छप गई। तैयारियाँ हो लगी।’’17 इतना ही नहीं सनातन धर्म महोत्सव का समाचार भी अखबार में प्रमुखता से छपता है: ‘‘एक दिन संध्या समय प्रेमशंकर बैठे हुए समाचार पत्र देख रहे थे। गोरखपुर के सनातन धर्म महोत्सव का समाचार मोटे अक्षरों में छपा हुआ दिखाई दिया। गौर से पढ़ने लगे।’’18 सनातन धर्म महोत्सव की खबर के अलावा अदालत में होने वाली कार्यवाहियों का समाचार भी अखबारों में छपने का उल्लेख इस उपन्यास में हुआ है: ‘‘ज्यों ही दशहरे की छुट्टियों के बाद हाईकोर्ट खुला, अपील दायर हो गई और समाचार पत्रों के कालम उसकी कार्यवाही से भरे जाने लगे।’’19 इस उपन्यास के समझदार और सजग बाल चरित्र मायाशंकर का लेख भी एक पत्र में छपता निरुपित हुआ है: ‘बारहवें दिन उन्होंने पत्र खोला तो मायाशंकर का लेख नजर आया। आद्योपांत पढ़ गए।’’20 इसके अलावा इस उपन्यास में काशी के समाचार पत्र ’गौरव’ द्वारा डाक्टर प्रियनाथ की प्रशंसा करने का उल्लेख हुआ है: ‘‘काशी का प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘गौरव’ उनका पुराना शत्रु था। पहले उन पर खूब चोटें किया करता था। अब वह भी उनका भक्त हो गया। उसने अपने एक लेख में यह आलोचना की: ‘काशी के लिए यह परम सौभाग्य की बात है कि बहुत दिनों के बाद उसे ऐसा प्रजावत्सल, ऐसा सहृदय, ऐसा कर्तव्यपरायण डाक्टर मिला। चिकित्सा का लक्ष्य धनोपार्जन नहीं, यशोपार्जन होना चाहिए और महाशय प्रियनाथ ने अपने व्यवहार से सिद्ध कर दिया है कि वह इस उच्चादर्श का पालन करना अपना ध्येय समझते हैं।’’21
इनके ‘रंगभूमि’ उपन्यास में प्रभु सेवक द्वारा अपनी बहन सोफिया के गायक होने की सूचना समाचार पत्रों में देने का उल्लेख हुआ है: ‘‘पुलिस के दफ्तर में दिन-भर में दस-दस बार जाता और पूछता कुछ पता चला? समाचार पत्रों में भी सूचना दे रखी थी। वहां भी रोज कई बार जाकर दरियाफ्त करता।’’22 इस उपन्यास में सोफिया द्वारा विनयसिंह की माता रानी जान्हवी को समाचार-पत्र सुनाने और राजा महेन्द्र कुमार सिंह उर्फ राजा साहब के पत्र पढ़ने का उल्लेख भी हुआ है। संबंधित उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं –
- एक दिन रात को भोजन करने के बाद सोफिया रानी जाह्नवी के पास बैठी हुई कोई समाचार पत्र सुना रही थी कि विनयसिंह आकर बैठ गए।23
- दूसरे दिन राजा साहब ने दैनिक पत्र खोला तो उसमें सेवकों की यात्रा का वृतांत बड़े विस्तार से प्रकाशित हुआ था।24
इसके अलावा इस उपन्यास में प्रभु सेवक द्वारा ‘हिंदुस्तान-रिव्यू’ में कविता लिखने, इंदु के समाचार पत्र पढ़ने और अफसर साहब के समाचार-पत्र पढ़कर एक-दो बजे घर जाने का उल्लेख हुआ है। संबंधित उदारण दृष्टव्य हैं –
- प्रभु सेवक ने हास्य भाव से कहा सच पूछिए, तो यह उस कविता का फल है जो मैंने ‘हिंदुस्तान रिव्यू’ में लिखी थी।25
- तब आज का समाचार-पत्र खोलकर देखने लगी। पहली ही शीर्षक था-’शास्त्रीजी की महत्वपूर्ण वक्तृता।’26
- तखमीने के अफसर साहब बारह बजे घर से आते, अपने कमरे में दो-चार सिगार पीते, समाचार-पत्र पढ़ते, एक-दो बजे घर चल देते।27
इसके ‘कायाकल्प’ उपन्यास के नायक चक्रधर के ‘सरस्वती’ नामक पत्रिका में लेखक छपा करते थे; इसीलिए तो यशोदानंदन उनके एक लेख को पढ़कर उनसे कहते हैं: ‘‘अबकी ‘सरस्वती’ में आपका लेख देखकर चित्त बहुत प्रसन्न हुआ। इस वैषम्य को मिटाने के लिए आपने जो उपाय बताए हैं, वे बहुत ही विचारपूर्ण हैं।’’28 इनके इस उपन्यास में ठाकुर साहब के समाचार-पत्र पढ़ने और मनोरमा द्वारा आगरे के समाचार अखबारों में पढ़ने का भी उल्लेख हुआ है। संबंधित उदाहरण दृष्टव्य हैं –
- ठाकुर साहब धूप में बैठे एक पत्र पढ़ रहे थे।29
- मैं पत्रों में रोज ही वहां का समाचार देखती थी और सोचती थी कि आप यहां आयेंगे, तो आपकी पूजा करूंगी।’’30
इस उपन्यास के नायक चक्रधर और उनकी पत्नी अहिल्या दोनों समाचार पत्रों में लेख लिखकर अपने परिवार की आजीविका चलाते चित्रित हुए हैं। प्रारंभ में चक्रधर दो-तीन समाचार पत्रों में लेख लिखकर अपनी जरूरत पूरी कर लेते थे, किंतु बाद में उनके लेख विदेशों के पत्रों में भी छपने लगे थे, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने लगी थी: ‘‘उन्हें काफी धन मिलता था। योरप और अमेरिका के पत्रों में भी उनके लेख छपते थे।’’31 इसी तरह उनकी पत्नी अहिल्या भी ‘एक मासिक पत्रिका में अपनी एक सहेली का लेख’32 देखकर लेखन हेतु प्रेरित होती है और स्वयं भी पत्रिका को लेख भेजती है। पति चक्रधर के पूछने पर वह उन्हें बताती है: ‘‘… अबकी मैंने ‘आर्य-जगत्’ को दो लेख भेजे थे। उसी के पुरस्कार के तीस रुपये मिले। आजकल एक और लेख लिख रही हूँ।’’33
इनके ‘गबन’ उपन्यास में कथानायक रमानाथ के घर से गायब होने पर उनका विज्ञापन प्रयाग के दैनिक पत्र में छापा जाता है: ‘‘प्रयाग के सबसे अधिक छपने वाले दैनिक पत्र में एक नोटिस निकल रहा है, जिसमें रमानाथ को घर लौट आने की प्रेरणा दी गई है; और उनका पता लगा लेने वाले आदमी को पंच सौ रुपये इनाम देने का वचन दिया गया है; मगर अभी कहीं से कोई खबर नहीं आई।’’34 रमानाथ कलकत्ता में इस विज्ञापन को पढ़कर आश्चर्य में पड़ जाता है: ‘‘हां, जब खूब अंधेरा हो जाता है तो वह एक बार मुहल्ले के वाचनालय में जरूर जाता है। अपने नगर और प्रांत के समाचारों के लिए उसका मन सदैव उत्सुक रहता है। उसने यह नोटिस देखी जो दयानाथ ने पत्रों में छपवाई थी; पर उस पर विश्वास न आया।’’35 इस उपन्यास की नायिका जालपा अपने पति रमानाथ का पता लगाने हेतु एक शतरंज के नक्शे को हिंदी दैनिक पत्र में छपवाती है: ‘‘यह नक्शा वहां के एक हिंदी दैनिक पत्र में छपा था और उसे हल करने वाले को पचास रुपये इनाम देने का वचन दिया गया।’’36 इस उपन्यास में रमानाथ और देवीदीन के वार्तालाप के माध्यम से भी ‘प्रजामित्र’ अखबार और उसके संपादक के व्यक्तित्व का उद्घाटन हुआ है: ’‘देवीदीन अभी आग सुलगा रहा था कि रमानाथ प्रसन्न मुख आकर बोला दादा, जानते हो, ‘प्रजा मित्र’ अखबार का दफ्तर कहां है? देवी-जानता क्यों नहीं हूँ। यहां कौन अखबार है जिसका पता मुझे न मालूम हो। ‘प्रजा मित्र’ का संपादक एक रंगीला युवक है, जो हरदम मुंह में पान भरे रहता है। मिलने जाओ, तो आंखों से बातें करता है; मगर है हिम्मत का धनी। दो बेर जेहल हो आया है।’’37
इसी तरह रतन और जालपा के संभाषण भी ‘प्रजामित्र’ अखबार की स्थिति को उद्घाटित करते हैं। वस्ततुः जालपा ‘प्रजामित्र’ में शतरंज का एक नक्शा छपवाना चाहती है-’वहां तो प्रजामित्र की बड़ी चर्चा थी। पुस्तकालयों में अक्सर लोग उसी को पढ़ते नजर आते थे।’
’तो प्रजामित्र को ही लिखूंगी; लेकिन रुपए हड़पकर जाए और नक्शा न छापे तो क्या हो?’38
इस प्रकार जालपा ‘प्रजामित्र’ अखबार में जब नक्शा छपवाती है, तो रमानाथ उस नक्शे का हल निकाल लेता है। तब जालपा के पास प्रजामित्र कार्यालय से पत्र और रमानाथ के हस्ताक्षर युक्त रुपयों की रसीद आती है: ‘प्रजामित्र कार्यालय का पत्र भी दिखाया। पत्र के साथ रुपयों की एक रसीद थी, जिस पर रमानाथ का हस्ताक्षर था।’’39 जालपा को रमानाथ से संबंधित मुकदमे का फैसला भी एक दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से पता चलता है: ‘‘आज बड़े सवेरे घर के काम-धंधों से फुर्सत पाकर जालपा दैनिक पत्र वाले की आवाज पर कान लगाये बैठी थी, मानो आज उसी का भाग्य निर्णय होने वाला है। इतने में देवीदीन ने पत्र लाकर उसके सामने रख दिया। जालपा पत्र पर टूट पड़ी और फैसला पढ़ने लगी। फैसला क्या था, एक ख्याली कहानी थी, जिसका प्रधान नायक रमानाथ था। जज ने बार-बार उसकी प्रशंसा की थी।’’40 वस्तुतः रमानाथ को न्याय दिलाने में समाचार-पत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाचार-पत्र ही जालपा और जोहरा का बयाना छापते हैं और इनके बयान पुलिस की बखिया उधेड़ देते हैं: ‘‘एक पत्र ने जालपा से मुलाकात की और उसका बयान छाप दिया। दूसरे ने जोहरा का बयान छाप दिया। इन दोनों बयानों ने पुलिस की बखिया अधेड़ दी।’’41
इनके ‘कर्मभूमि’ उपन्यास के अमरकांत का राजनैतिक ज्ञान समाचार- पत्रों को पढ़कर ही विकसित होता है: ‘‘दैनिक समाचर-पत्रों के पढ़ने से अमरकांत के राजनैतिक ज्ञान का विकास होने लगा। देशवासियों के साथ शासक मण्डल की कोई अनीति देखकर उसका खून खौल उठता था। जो संस्थाएं राष्ट्रीय उत्थान के लिए उद्योग कर रही थीं, उनसे उसे सहानुभूति हो गई। वह अपने नगर की कांग्रेस कमेटी का मेम्बर बन गया और उसके कार्यक्रम में भाग लेने लगा।’’42 अमरकांत की सास रेणुका देवी भी अमरकांत से खबरें पढ़वाकर सुनती थी: ‘‘दैनिक समाचार और सामयिक साहित्य से भी उसे रुचि थी, विशेषकर इसलिए कि रेणुका रोज-रोज की खबरें उससे पढ़वाकर सुनती थी।’’43 अमरकांत की पत्नी सुखदा पति-पत्नी के बदलते रिश्तों और रूढ़ियों पर पत्रों में लेख लिखती है: ‘‘अब कोई इस भ्रम में न रहे कि पति चाहे जो करे उसकी स्त्री उसके पांव धो-धोकर पीयेगी, उसे अपना देवता समझेगी, उसके पांव दबायेगी और वह उससे हंसकर बोलेगा, तो अपने भाग्य को धन्य मानेगी। वह दिन लद गये। इस विषय पर उसने पत्रों में कई लेख भी लिखे है।’’44 इस उपन्यास के शांतिकुमार नगरपालिका की समस्या के निदान हेतु समाचार-पत्रों एवं व्याख्यानों द्वारा जनक्रांति करने पर बल देते हैं । इसीलिए तो वे सुखदा से कहते हैं: ‘‘अब तो समाचार-पत्रों और व्याख्यानों से आंदोलन करना होगा।’’45 इस उपन्यास के लाला समरकांत सुखदा से गांव की क्रांतिकारी गतिविधियों की खबर समाचार-पत्रों में छपने की बात कहते हैं: ‘‘अब तो वहां का हाल समाचार-पत्रों में भी छपने लगा।’’45
इनके ‘गोदान’ उपन्यास में पडित ओंकारनाथ का परिचय कथाकार ‘बिजली’ दैनिक पत्र के संपादक के रूप में देता है: ‘‘आप दैनिक पत्र ‘बिजली’ के यशस्वी संपादक हैं, जिन्हें देश चिंता ने घुला डाता है।’’46 इस उपन्यास में प्रेमचंद ने संपादक ओंकारनाथ के बहाने तत्कालीन समय में प्रकाशित होने वाले ‘स्वराज’, ‘स्वाधीन भारत’ और ‘हंटर’47 पत्र-पत्रिकाओं का भी उल्लेख किया है। संपादक ओंकारनाथ मजदूरों की हड़ताल आदि से संबंधित खबरंे अपने ‘बिजली’ पत्र में छापते हैं, यही कारण है कि मजदूरों के बीच उनके पत्र की लोकप्रियता बढ़ती जाती है: ‘‘ मिल में असंतोष के बादल घने होते जा रहे थे। मजदूर ‘बिजली’ की प्रतियां जेब में लिए फिरते और जरा भी अवकाश पाते, तो दो-तीन मजदूर मिलकर उसे पढ़ने लगते। पत्र की बिक्री खूब बढ़ रही थी। मजदूरों के नेता ‘बिजली’ के कार्यालय में आधी रात तक बैठे हड़ताल की स्कीमें बनाया करते और प्रातःकाल जब पत्र में यह समाचार मोटे-मोटे अक्षरों में छपता तो जनता टूट पड़ती और पत्र की कापियाँ दूने-तिुगने दाम पर बिक जाती।’’48
इस प्रकार प्रेमचंद के उपन्यासों की पत्रकारिता विभिन्न समाचार पत्रों-पत्रिकाओं के संपादन एवं उनमें प्रकाशित होने वाले समाचार नोटिस आदि को व्यक्त करती है। इनके उपन्यासों में व्यक्त पत्रकारिता से पता चलता है कि आजादी से पूर्व के भारतीय समाचार- पत्र जनता एवं ब्रिटिश सरकार की गतिविधियों को प्रसारित करने का कार्य किया करते थे। ज्यादातर पत्रों में देशभक्ति और स्वदेश को महत्व दिया जाता था। प्रेमचंद के उपन्यासों में कमला, सरस्वती, जगत, हिंदुस्तान-रिव्यू, गौरव, आर्य-जगत्, प्रजा-मित्र बिजली आदि पत्रों के संपादन से संबंधित प्रसंग व्यक्त हुए हैं। इनके उपन्यासों में व्यक्त सरस्वती, हिंदुस्तान-रिव्यू, आर्य-जगत्, प्रजा-मित्र आदि पत्र तो प्रेमचंद के काल में प्रकाशित होते थे। सरस्वती, आर्य-जगत्, प्रजा-मित्र आदि पत्र तो भारतीय जनता को जागृत करने और उनकी आवाज को मुखरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, जबकि हिंदुस्तान-रिव्यू एक अंग्रेजी दैनिक पत्र था। यह उच्च वर्ग में अधिक लोकप्रिय था।
संदर्भ सूची–
- मंगलाचरण, पृ0159
- वही, पृ0177
- वही, पृ0222
- वरदान, पृ098
- वही, पृ098
- वही
- वही, पृ0103
- सेवासदन, पृ0121
- वही, पृ0185
- वही, पृ0188
- वही, पृ0189
- प्रेमाश्रम, पृ083
- वही, पृ088
- वही, पृ089
- वही, पृ093
- वही, पृ0207
- वही, पृ0208
- वही, पृ0238
- वही, पृ0291
- वही, पृ0326
- वही, पृ0232
- रंगभूमि, पृ036
- वही, पृ078
- वही, पृ0134
- वही, पृ0207
- वही, पृ0284
- वही, पृ0368
- कायाकल्प, पृ014
- वही, पृ035
- वही, पृ040
- वही, पृ0197
- वही, पृ0195
- वही, पृ0195
- वही, पृ0196
- गबन, पृ011
- वही, पृ0116
- वही, पृ0127
- वही, पृ0129
- वही, पृ0151
- वही, पृ0165
- वही, पृ0225
- कर्मभूमि, पृ022
- वही, पृ021
- वही, पृ0142
- वही, पृ0181
- गोदान, पृ041
- वही, पृ052
- वही, पृ0222