“अनामिका की कविताओं में अभिव्यक्त पीड़ा एवम मुक्ति का स्वर”
(टोकरी में दिगंत: थेरी गाथा के विशेष सन्दर्भ में)
राहुल कुमार
पीएच.डी. शोधार्थी
हिन्दी विभाग, झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय, रांची
प्रसिद्ध कवियित्री अनामिका की रचना टोकरी में दिगंत:थेरी गाथा हिंदी कविता की नई रचना शैली की कृति है ।इस कविता संग्रह में अनामिका ने बौद्ध काल की स्त्रियों की पीड़ा से लेकर आजतक की पीड़ा को व्यक्त करने के साथ उसके उपाय को खोजने का प्रयास किया है अनामिक की क्विटोको समकालीनता के आर पार थोड़ा पीछे थोड़ा आगे के संदर्भ में स्वप्न और यथार्थ की जुगल बंदी कहा जा सकता है ।इसकी कविताओ में निहित स्त्री आन्दोलन प्रतिशोध पीड़ित नही है स्त्री आंदोलन की समर्थक मानविया है,यंहा स्त्रियां मादा ड्रैकुलाये नही है। इनके विमर्श मे लोक ,परिवार तथा सार्वभौमिक भगनी वाद है ये समाज के दो पहिये स्त्री और पुरुष के मध्य समानता चाहती है ।“बराबरी का यह साथ तभी हो सकेगा जब पुरुष अति पुरुष न रहबर स्त्रियां अति स्त्री। एक धुर्वीय विश्व न माइक्रो स्तर पर अच्छा है ना मैक्रो स्तर पर। संतुलन ही सुख का मूल मंत्र है सरप्लस न क्रोध का चाहिए न कामना का “।1
अनामिका की रचना टोकरी में दिगंत :थेरी गाथा वास्तव में नई सदी का महाकाव्य है, जंहा एक ओर बुद्ध कालीन कथाये है तो दूसरी ओर वेदना से भरा आज का स्त्री जीवन।इसका प्रमाण संग्रह का चार भगोबमे बंटना। जंहा प्रारम्भ पुरोवाक के साथ एवम थेरियों की बस्ती में बौद्ध कालीन स्त्री वेदना, फिर ये मुजफ्फरपुर नगरी है सखियां और आख़िरी खण्ड चलो दिल्ली चलो दिल्ली वैशाली एक्सप्रेस की कविताओ में वर्तमान की स्त्री वेदना को दर्शाया गया है बुद्ध कालीन समय मे बुद्ध द्वारा निर्मित संघ में जो स्त्री प्रवज्जा प्राप्त कर लेती थी वह थेरी कहलती है।संघ की तिहत्तर थेरियों की लगभग 500 गाथाओं को ही थेरिया कहा जाता है।2 इन थेरियों में चिंदियां थेरी,वितृष्णा थेरी, शांता, मुक्ता,उत्पल,अभिरूपा जैसी अनेक थेरिया के माध्यम से उस समय की स्त्री जीवन की वेदना को वर्तमान से जोड़ने का प्रयास किया गया है। इस काव्य संग्रह की कविताओ की दुर्लभ मार्मिकता उसे सहज ही समकालीन स्त्रीओ के दुखको थेरियों, यानि बुद्ध क्लींस्त्रियो के दुख से जोड़ देती है।
टोकरी में दिगंत:थेरी गाथा में अभिव्यक्त स्त्रियों की पीड़ा को सगजता के साथ रखा है। बौद्ध भिक्षुणी आम्रपाली के साथ पीड़ा के इतिहास का नया पन्ना खुलता है।उसके अंतस में चलने वाली खदर बदर हर औरत की जिंदगी का शाश्वत सत्य है।ढाई हजार साल पहले की थेरिय हो या भक्ति काल की ललदेह रत्नावली हो आधुनिक युग कीअन्ना कॅरिनिना अनामिका ने सबको अपनी कविताओ में पुनर्जीवित किया है।–
अगल बगल नाहीं देखती
चलती है सीधी मानो खुद से बाते करती
शरद काल मे जैसे पकने को छोड़ दी-
जाती है, लतर में लौकी
पाक रही है मेरी मांसपेशियों
खदर बदर है मेरे भीतर का
हहाता हुआ सत।।3
अनामिका के इन काव्यानुभवो पर प्रियदर्शन ने ठीक ही कहा है कि”कहने की जरूरत नही है कि स्त्रित्व सहज ढंग से इस परम्परा की पुनर्व्याख्या और पुनर्रचना भी करता है”।4अनामिका के यंहा दुख और स्त्री जीवन समानार्थी से लगता है, अनामिका इसे स्त्री पीड़ा का तत्व मानती है।इतिहास से वर्तमान तक ये दोनों साथ ही चलता है-
बूढी पटरानी की तरह
एक दुख बैठा है मुझमे!
वह अपने दरवाजे नही खोलता
गम शूम ही सुन्न महल में बैठा रहता है ।5
और अधिक विस्तृत रूप में सुंदर बिम्बो में कहती है –
एक था राजा ,एक थी रानी
दोनो मार गए खत्म कहानी
अरे!कहानी यंही से शुरू होती है
अपने इस लोकतंत्र की
कि गई हुई चीजें कभी नही जाती
ओझल हो जाती है
गिरती दीवारों के पार कंही। 5
पुरुष वाड़ी सोच स्त्री मैन की पीड़ा का प्रमुख कारण है पुरुषो द्वारा बनाये गए नियंम परम्परा से स्त्रीं मन पीड़ा ,कुंठा जैसे भाव से पीड़ित रहता है ।थेरियों के माध्यम से इसी सोच को अनामिका अपनी कविताओं में कहती है।जंहा पुरुष के नाम उसके अस्तित्व से स्त्री की पहचान हो,स्वतंत्र पहचान की पीडाको अनामिका थेरियों के माध्यम से कहती है
किसकी नूरजहां हूँ मैं अंधियारे कमरे में यो
टीन खुरचती आटे की?
सोच ही रही थी
कि दूर कंही से आते
बुद्ध दिखाई पड़े
कंधे पर अपने उठाये हुए गठरी
पड़ी हुई थी उनके कन्धों पर
पृथ्वी खुद भी एक गठरी सी ।6
अनामिका की कविताओं की वास्तविक पीड़ा जेंडर स्टिरियोटाइप को लेकर है ,जो लज्जा,प्रेम,सहिष्णुता, धैर्य, सहकारिता जैसे गुणो को सिर्फ स्त्रियों के खाते में ड़ालकर पुरुष को रोबीला,बलवान और आक्रमक बनने पर मजबूर कर देती है।इसका एक कारण यह भी होता है कि इससे स्त्रियों की एक अलग पहचन के रूप में रूढ़ हो जाती है।
आज मैं इतिहास से टकरा गई
लेकिन वह मुझको पहचान ही नही पाया ।7
कविता तिलोत्तमा थेरी के माध्यम से अनामिका यह संकेत करती है कि स्त्रियों की निवेदित सुधार आंदोलन इसलिए कुछ विशेष नही हासिल करवा पाया,क्योंकि सुधार तो पितृसत्तात्मक सोच में आपेक्षित है—
इतिहास के सुधार आंदोलन
स्त्री की दशा को निवेदित थे
और सुधारना किसे था?
यह कौन कहे?।8
दुख स्त्री की स्थाई भाव हो गया हो।किन्तु पितृसत्तात्मक समाज मे उसे ही अपनाना मुश्किल हो गया है,चम्पा थेरी कविता में इसका मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती है —
टेसुए बहा देती हो फट से
धारकता ही पात्रता है
असल दुःख का स्वाद तुमने नही चखा
उसने कहा और चला गया।9
अनामिका की कविताएं सामाजिक अंतर्विरोध कॉजगिर करती है जो आघातों से छलनी होते मनुष्य को सहानुभूति के लिए पढ़ा जा चाहिए,जो विमर्शो और विचार धारा में कैद नही है।अनामिका की दृष्टि मूलतः उन विसंगतियों एवमं विडंबनाओं पर केंद्रित है जो मानविया गरिमा को चोट पहुचती है।यह पीड़ा अनामिका की अनेक कविताओ में में निहित है-
“यही एक काम किया मैंने,
हर तरह के दर्द की दहमग
स्वर लिपियां सीखी।10
अनामिका की पीड़ा हाशिए पर धकेल दी गई स्त्रियां है।“वास्तविक जीवन जगतबके चरित्र हो या क्लासिको के चरित्र हो मेरी कल्पना के स्थायी नागरिग वही बनते है,जिन्हें कभी न्याय नही मिला हो जो हमेशा लोगो की गलतफहमी का शिकार हुए दुनिया ने जिन्हें प्यार नही दिया न मान ,भीतर से वे जितने अगाध होते है ,उतने ही अकेले।।11 इसी पीड़ा को घसियारिन थेरी के माध्यम से समाज से प्रश्न करती हुई लिखती है-
“यह नकेल कब छूटेगी
मेरी प्यारी सखी?
घसियारिन थेरी से बोली
वह बूढी घोड़ी!”11
अनामिका की अनेक कविताओ में मानविया करुणा और स्त्री स्वर एक हो जाते है।पीड़क स्वर अनेक कथाओ ,किदवंती और इतिहास के माध्यम से रखती है, “दुख भी खुशी ही है भंते”जैसी कविताओ में है
घर का न घाट का
जो दोनों खूंटो से
छूट गया,बढ़ जाता है उसके जीवन का दायरा
फूटेगा मटका, तब ही तो वो सागर होगा।12
मुक्ति का जो भाव इस कविता में कवियित्री ने लिया वह दोनो घाट, परम्परा और पुरुषवादी सोचदोनो से छूटने से है।दुख की प्रजातियां,,नसीहत, सुपक़री ,नमक,खिचड़ी, टूटी हुई छतरी जैसी कविताओ में पीड़ा के स्वर निहित है।स्त्री जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि पुरुष उसकी भावना पढ़ने में असफल रहा है या पीड़ा समस्त स्त्रियों की पीड़ा है देह इसका प्रमुख कारण हो सकता है स्त्री खुली किताब की तरह होती है ,उसे समझने उससे प्रेम भावना की आकांक्षा रहती है।इस भावना को इतिहास के साथ संबंध स्थापित करते हुए कहती है-
एक अधूरी चिठ्ठी जो वे डिकोड नही कर सके,
क्योंकि वह सिंधु घाटी की सभ्यता के समय
मैंने लिखी थी ।13
यंहा दोनो शब्द अधूरी एवमं सिंधु घाटी सभ्यता महत्वपूर्ण हैजन्हा एक ओर यह आम धारणा है कि सिंधु घाटी सभ्यता स्त्री प्रधान सभ्यता है,इसलिए वह लिपि जो स्त्री भावना है,उसे समझने के लिए स्त्री भाषा को समझना आवश्यक है।एवं अधूरा का तात्पर्य है कि अभी उनके लिए कर्म करना जरूरी है।जब तक पूर्णता को प्राप्त न हो जाये।।
जैसे कि पहले ही उल्लेख कर चुके है कि अनामिका की कविताओ में प्रतिशोध नही है,अनामिका की पीड़ा यह नही है कि स्त्रियां पुरुषो की तरह क्यों नही है,जो प्राकृतिक विशिष्टता है वे शर्मनाक नही है। आरोपित मानदंड दोहरे है यह अनामिका की प्रमुख पीड़ा है।अनामिका की वे स्त्रियां प्रमुख पात्र है जिनके दुख दर्द को बहुत कम साझा किया गया,जिन्हें अनामिका पूरी जीवन्तता के साथ अभिव्यक्त करती है, इसकी कविताओ में स्त्री-पुरुष को समानता के सस्तर पर रखना चाहती है। सच्चे अर्थों में स्त्री को मनुष्य की तरह देखना चाहतीं है।चुड़ैल-गली कविता में स्त्री को चुड़ैल बोल कर उसके साथ अमानवीय व्यवहार करना भी पुरुषवादी सोच का कारण है—
क्योकर हुआ करते है उल्टे पाव चुड़ैलों के,
क्योकर चुड़ैल बन जाती है………..
पर दुनिया मे मुझको कोई भी औरत दिख दो
जो उल्टे पाव नही चलती
व्यतीत में जिनके
गड़ा नही है कोई खूँटा,
भागती नही औरते
लौट आती है, उल्टे पाव।14
अनामिका की कविताओ में पीड़ा ही नही मुक्ति का स्वर भी है थेरी गाथा इतिहास बोध में स्त्रीं मुक्तिं का प्रथम प्रयास मिलता है।जंहा उस समय की अनेक स्त्रियो ने चाहे वो किसी श्रेणी की हो,धनवान अथवा गरीब,सभी ने मुक्ति का आंदोलन कर प्रवज्जा होकर बौद्ध भिक्षुणी हो गयी।इसी इतिहास बोध को अनामिका अपनी कविताओं में स्त्री मुक्ति का स्वर बनाती है करुणा और मैत्री भाव समूचे विश्व के लिए ही मुक्ति का आधार है।अनामिका की मुक्ति की कामना इस बॉब्स स्पष्ट है किस कविता संग्रह में जो स्त्री पात्र है,वे सभी बौद्धिक वर्ग की स्त्रियां है,जिन्हें वे कविता के केंद्र में रखती है, जो स्त्री विमर्श को एक नई दिशा देती है ।साहसी स्त्रियां, हुँकार भर्ती,आंदोलन करती,पितृसत्तात्मक व्यस्था को ललकारती स्त्रियां मिलेगी किन्तु वे कोई व्यापक समाधान नाही निकालती है।जबकि इस कविता संग्रह में तृष्णा, भाखा, चिंदियां,वितृष्णा,शांत,सरल जैसी विदुषी स्त्रियों को कविता का पात्र बनाती है।
बौद्धिकता के साथ साथ न्याय और प्रेम के द्वारा स्त्रियों की मुक्ति अनामिका चाहती है।यही कारण है कि थेरियों के माध्यम से स्त्री वेदना और स्थिति का अंकन करती है,सांस्कृतिक मुक्ति तथा पुरुष वर्चस्ववाद को भी कटघरे में खड़ा करती है।इससे बड़ा सांस्कृतिक षटयन्त्र कोई हो हो सकता कि सीता सावित्री जैसी वागी स्त्रियां को मूक आज्ञाकारिता से एकाकार करके देख जाए,न सीता कठपुतली थी न सावित्री- दोनो के स्वतंत्र व्यक्तित्व थे।15 आरतीय इतिहास में सीता सावित्री जैसी पात्र अन्यायी असंस्कृत और भष्ट्र पति भी मूक प्रतिछाया बनकर रहने वाली दीन हीन स्त्रियों को सीता सावित्री कहा जाता है।जबकि बौद्ध संघ की स्त्रियां जो प्रवज्जा प्राप्त है। वे इन पितृसत्तात्मक सोच से अलग है,उन्होंने उस समाज की पुरुष प्रधानता की वेदियों से खुद को अलग कर स्वतंत स्त्री आंदोलन की नींव रखी।टोकरी में दिगंत काव्य संग्रह में यही मुक्ति की आकांक्षा है।
मैं तो केवल इतना कह पाई
तुम अपने कर्मो के चरवाहे लो
आज से मैंने तुमको,
अपने सब कर्मो के साथ
अकेला छोड़ा।16
पुरुष वादी सोच से मुक्ति का एक और उदाहरण है—
मेरे वाले ने कहा,
“रहना है नतमस्तक, साथ चलो,
और करने है कुतर्क जो इसी तरह
तो भाड़ में जाओ………
उसने सुना और फोड़ दिया मेरा माथा
कि सत्य सुनने की उसमे ताकत नही थी”।17
अनामिका मुक्ति के लिये संवाद को जरूरी मानती है वे समय के गतिशील यथार्थ से न केवल संवाद करती है बल्कि अपनी प्रयुक्तियों से निज से बातचीत की शक्ति अख्तियार कर लेती है।इसमें अनामिका व्यवस्था के संकीर्ण और अमानुषिक स्वरूप का ही प्रत्याख्यान करती है, वह थेरियों को न केवल बोलने का मौका देती है बल्कि उन्हें नाम रोऊ भी देती है।
जीवन मेरा बदल, बुद्ध मील,
बुद्ध को घर न्योतकर
अपने रथ से जब घर लौट रही थी,
कुछ तरुण लिच्छवी कुमारो के रथ से
टकरा गया मेरे रथ का,
धुर से धुर छक्कों से चक्का जुएं से जुआ।18
यंहा टकराना शब्द प्रमुख है,मुक्ति के साथ परम्परा का टकराव,मानसिकता का टकराव,दकियानूसी विचारों से टकराव से हिबस्त्री मुक्ति का द्वार खुलता है।“सारे मुक्ति संघर्षो के सूत्र अनामिका इसी टकराव में देखती है,यंहा मुक्ति का आधार व्यापक हो जाता है,यंहा मुक्ति प्रतिरोध या बदले की भावना से नही है,बल्कि हरियाली का बीज है,जिसकी छाया में स्त्री पुरुष परस्पर मैत्री भाव से बैठ सके।तभी तो अनामिका कहती है –दुनिया का सबसे मजबूत और नाज़ुक पल होते है दो लोगो के बढ़कर मिले हुए हाथ।19मुक्ति के कथ्य को अपनी कविताओ में इस भाषिक संरचना के साथ लाती है,जिसका असर हृदय पर तीक्ष्ण होता है।यंहा स्त्री मुक्ति सिर्फ स्त्री जाति से नही है बल्कि पूरी मानवता से है,स्त्री तो सिर्फ सामान्य पात्र के रूप में कविता में उतरती है।स्त्री का तात्पर्य उस मानव से है जिसे अधिकार नही मिला , परम्परा धर्म, रिवाज के नाम पर उसे बाहर निकल कर समानता की चटाई पर बिठा कर बातचीत करना चाहती है,संवाद स्थापित करना चाहती है-
आखिर तो “मुक्ति” स्त्री ही है,
तब ही तो हँसती बतियाती
सदा झुंड में चलती है
किसी को कभी भी अकेली नही मिलती ।20
संवाद हेतु अनामिका का आग्रह महाभिषभ कविता में और बिबो और प्रतीकों के माध्यम से औषधि को मुक्ति के बिम्ब के साथ भाषिक कुशलता के साथ व्यक्त किया है।यंहा मुक्ति को सम्हालने तथा उसे दीर्घकाल तक रहने के लिए संवाद शैली देखिये-
तुम सब जो हो आस पास अभी
और तुम जो यात्रा पर गयी हो
आपस मे बातचीत कर लो
एकमत होकर दो आशीष इस औषधियों को
जो हम लाई है
विनयपूर्वक खोदकर
धरती की गम चोट की खातिर। 2
नायिकाभेद नवेलिक थेरी बोली लागत सिंह कॉलेज के आचार्य से कविता में अनामिका स्त्री को भोग की बस्तु हेतु जो नायिका की पदवी देती है,उसे नकारते हुए जीवन के विभिन्न दशाओ के माध्यम से उनका विरोध करती है।यंहा देह को भोग की वस्तु समझने का जो खेल है उससे मुक्ति का द्वार खोलती है जीवन के प्रत्येक दशा में अपने जीवन मे भिन्नं भिन्न अवधारणाओं के माध्यम से संवाद करती है।
आचार्य हम इनमे कोई नहीं कोई नही
कोई नही कोई नही
मुग्धा, प्रगल्भा, विदग्धा,या सुर्तीगरविता
प्रकिया भी नही न स्वकीया ही……….
प्रारब्धयोवन हुई जब हम
नौकरी के सौ झमेले थे सर पर..22
मंडी की आचार संहिता में अनामिका यह चेतावनी भी देती है कि सिर्फ बातो पर विश्वास नही करना है ,बल्कि व्यक्तित्व और आचरण भी महत्व पूर्ण है कभी कभी हम जानते हुए भी गलती कर देते है यह मुक्ति का मार्ग नही हो सकता है—
जैसे कि सिगरेट का डिब्बा
नन्हे नाहे अक्षरों में समझता है
सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए ठीक नही
अहिंसा परमो धर्म गाती है बिल्ली
अस्सी चूहे खाकर
हज को चली।23
लेखनी को मुक्ति का प्रमुख हथियार माना है
अपनी कलम से लगातार
खोद रही हूं तब से
काल कोठरी में सुरंग
यंहा कालकोठरी उस व्यवस्था का प्रतीक है जिसमे आधी आबादी अंधकार में रहने को मजबूर है।यंहा कलम से लगातार शब्द महत्वपूर्ण है उसका भाव बोध बहुत गहरा है. मुक्ति का स्वर पुरुष को अति पुरुष न होने पर संभव हो सकता है जिसे अनामिका अपनी कविता में रखती है समय का बदलाव और स्त्री मन की स्वाधीनता के कारण ही सोच में अब परिवर्तन दिखता है कवियित्री यह जानती है कि एक स्त्री का शत्रु स्त्री रूप में उसके साथ ही रहता है।किंतु संवाद और व्यवहार परिवर्तन के कारण अब सोच में परिवर्तन सकारात्मक है
कहती है आकाश में जगता सूर्य देखकर
बेटी हो तो चिंता ही नही,
बेटा अगर हो तो सुबह का सूरज
जिसमे प्रचंडता नही हो।24
अनामिका की कविता संग्रह टोकरी में दिगंत में अभिव्यक्त स्त्री की पीड़ा एवम मुक्ति का स्वर कई अर्थो में विशिष्ट है।बौद्ध कालीन कथ का एक अर्थ यह भी है कि बौद्ध धर्म अहिंसा पर आधारित है तो थेरियों के माध्यम से अनामिका समजबमे अहिंसा शान्ति और प्रेम की कथा को प्रोत्साहित करन का सफल प्रयास किया है ।स्त्री वादी समीक्षा का एक बड़ा अवदान यह है कि वैयक्तिक अनुभूतियों का सामाजिक संदर्भ इसने बनाया ,और बताया कि जैसे स्त्रियां वैयक्तिक विफलता मानकर घुटती है” उस असामंजस्य और समन्जन्य का मूल उस पूर्व ग्रस्त पितृसत्तात्मक समाज मे है। जिसके शिकार पुरुष भी है। एक को भेद और दूसरे को भेड़िया बना डालता है जो दोनों ही मानविया गरिमा के नीचे गिरते है”25
निःसंदेह यह काव्य संग्रह स्त्री मुक्ति एवमं उसकी पीड़ा का महाकाव्य है । समाज के प्रत्येक वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व थेरियों में है,राजकुमारी श्रेणी की थेरिया ,श्रेष्ठ कन्याओं की थेरिया,एवम दलित थेरिया भी मौजूद है अनामिका एक ऐसा आख्यान परस्तुत करती है जिनमे सभी श्रेणी की स्त्रीओ की समस्याओं को देख जा सके , सबकी समस्या एक सी है।
लोभ , क्रोध और कामनाओ के अतिरेक से पीड़ित
ओजोन छिद्र भेदता
अतिशय पुरुष
नाइ धरती के किस काम का?
खुद अपना पुरुष गड़ेंगी नई धरती अब
स्वस्थ होंगी धमनिया उसकी और दृष्टि सम्यक।।26
संदर्भ सूची-
1-अनामिका, त्रियाचरित्र उत्तर कांड, पृष्ठ 3
2-अनामिका, मन मांझने की जरूरत पृष्ठ 44
3- अनामिका, टोकरी में दिगंत थेरी गाथा। पृष्ठ,15
4- प्रियदर्शन, पुस्तक वार्ता 20 मई 2015
5- अनामिका, टोकरी में दिगंत थेरी गाथा। पृष्ठ, 25
6- अनामिका, टोकरी में दिगंत। पृष्ठ, 26
7- वही। पृष्ठ127
8- वही। पृष्ठ 60
9- वही। पृष्ठ 61
10- वही पृष्ठ
11-वही पृष्ठ 47
12- वही पृष्ठ 50
13- वही 45
14- वही 86
15- अनामिका, मन मांझने की जरूरत 13
16- अनामिका, टोकरी में दिगंत, पृष्ठ 61
17 वही पृष्ठ 66
18- वही पृष्ठ 16
19- राजीव रंजन गिरि समालोचना
20- अनामिका, टोकरी में दिगंत पृष्ठ 179
21- वही पृष्ठ 179
22- वही पृष्ठ 176
23- वही पृष्ठ 84
24 – वही पृष्ठ 93
25- अनामिका , कहती है औरते। पृष्ठ 11
26 – अनामिका , टोकरी में दिगंत पृष्ठ 123
संदर्भ ग्रंथ-
आधार ग्रंथ- अनामिका, टोकरी में दिगंत थेरी गाथा , राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली दूसरा संस्करण 2021
सहायक ग्रंथ-
1 -स्त्री पक्ष और परिप्रेक्ष्य, रेखा सेठी
2- मैन मांझने की जरूरत, अनामिका
3- कहती है औरते स. अनामिका
4- स्त्री मुक्ति साझा चूल्हा अनामिका
5- त्रिया चरित्रम ऊतर कांड, अनामिका
6 – स्त्रित्व का मानचित्र, अनामिका
पत्र पत्रिकाएं
- आजकल मासिक पत्रिका
- जन संदेश टाइम दैनिक
- हँस मासिक पत्रिका
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- कविता कोश