जैनेन्द्र की कहानियों में स्त्री, ‘जान्ह्वी’ के विशेष सन्दर्भ में

कुमकुम पाण्डेय

शोधार्थी, पीएच. डी. (हिन्दी)

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

नई दिल्ली – 110067

मोबाइल नं. – 9868325939

ईमेल: kumkum.jnu@gmail.com

सारांश

आधुनिक काल में कहानियों के माध्यम से समाज की कई मुख्य समस्याओं को पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का कार्य कहानीकारों ने किया है। जैनेन्द्र कुमार को प्रेमचन्दयुगीन कहानीकारों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। जैनेन्द्र कुमार मनोवैज्ञानिक कहानीकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनकी कहानियों के पात्रों में बाह्य की अपेक्षा आंतरिक तथा मनोवैज्ञानिक द्वन्द्व देखा जा सकता है। इनके पात्र समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं के विरूद्ध कोई बाह्य विद्रोह या क्रान्ति नहीं करते। वे अपनी मनोवैज्ञानिक मनःस्थिति के माध्यम से पाठकों के विचारों को प्रभावित करते हैं। जैनेन्द्र की कहानियों में स्त्री पात्रों को प्रमुखता मिली है। इनकी अधिकतर कहानियों के नाम स्त्री पात्रों के नाम पर रखे गए हैं। जैनेन्द्र कुमार की कहानियों में ‘जान्ह्वी’ का मुख्य स्थान है। इसकी नायिका समाज की दकियानुसी परम्पराओं को न मानते हुए अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जीती है। ये स्त्री पात्र भले ही समाज में क्रान्तिकारी के रूप में सामने न आए हों परन्तु अपनी मनोवैज्ञानिक तथा आंतरिक मनःस्थिति के माध्यम से पाठकों पर विशेष प्रभाव डालती हैं तथा समाज में परिवर्तन का एक नया आयाम खड़ा करती हैं।

बीज शब्द

रूढ़िवादी, परम्परा, मनोवैज्ञानिक, मनःस्थिति, दार्शनिकता, वैचारिकता, नैतिक-मर्यादा, तादात्म्य, सम्बद्ध, यौन-नैतिकता।

शोध आलेख

जैनेन्द्र ने कहानी को वैचारिकता एवं दार्शनिकता का एक नया धरातल प्रदान किया। हिन्दी कहानी को नई चेतना से लैस करते हुए उन्होंने कथावस्तु को सामाजिक धरातल से ऊपर उठाकर व्यक्तिगत एवं मनोवैज्ञानिक भूमि पर प्रतिष्ठित किया। उन्होंने प्रेमचन्द की परम्परा में जीते हुए भी अपने लेखन की एक पुष्ट व्यक्तिवादी परम्परा स्थापित की। पहली बार हिन्दी कहानी में मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रतिष्ठित करते हुए व्यक्ति के अस्तित्व के प्रश्न को जीवन के मूलभूत प्रश्न और उनकी सार्थकता से सम्बद्ध कर देखा गया है। मनोविज्ञान की सहायता से जैनेन्द्र मनुष्य के आंतरिक जगत में प्रवेश कर उसकी थाह लेने लगते हैं। जैनेन्द्र की कहानियों में स्त्री मुख्य विषय बनकर आती है। इन्होंने अपनी नायिका को घर एवं पतिव्रत्य की चहारदीवारी से मुक्त कर नारी के रूप में चित्रित किया है और उनकी यह मुक्ति नैतिक-मर्यादाओं, विशेषकर यौन-नैतिकता के अतिक्रमण के सन्दर्भ में देखने को मिलती है। ‘जान्ह्वी’, ‘रत्नप्रभा’, ‘प्रतिमा’ आदि इनकी प्रमुख नारी केन्द्रित कहानियाँ हैं।

जैनेन्द्र ने अपनी कहानियों में स्त्री के कई रूपों को दिखाया है। पत्नी, प्रेमिका, बेटी परन्तु हर रूप में ही नारी की किस प्रकार उपेक्षा की जाती है, उसे दबाया जाता है, उसके सम्मान को कुचला जाता है इसका यथार्थ चित्रण किया है। नारी को ही नारी के विरोध में दिखाया गया है। इन्होंने अपनी कहानियों ‘त्रिवेणी’ ‘एकरात’ आदि के विषय से अलग हटकर एक नए सन्दर्भ में नारी के चरित्र को दर्शाया है। जान्ह्वी अपनी इच्छानुसार अपनी जिन्दगी जीना चाहती है। वह समाज के बन्धनों में बंधकर अपनी जिन्दगी को खत्म नहीं करना चाहती। वह जिससे प्रेम करती है उसी के प्रति समर्पित है, उसके अलावा वह किसी और से कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहती, वह अपने प्रेमी की याद में ही पूरा जीवन गुजारना चाहती है। उसका प्रेमी किसी कारण या समाज की दकियानूस बातों, बन्धनों की वजह से उससे विवाह नहीं कर पाता फिर भी जान्ह्वी को एक आशा की किरण दिखाई देती है। उसकी आशा निम्न पंक्तियों में दिखाई देती है – ‘दो नैना मत खाइयो पिउ मिलन की आस’। कौओं के साथ उसका अपनापा दर्शाता है कि वह संकीर्ण विचार वाले मनुष्यों के साथ रहने से अच्छा उस पक्षी के साथ रहना पसन्द करती है जिसे समाज ने अशुभ और मूर्ख माना है। लेकिन जान्ह्वी का रोज-रोज कौओं को खिलाना उन रूढ़िबद्ध मान्यताओं और प्रेम के दुश्मन समाज की मान्यताओं का श्राद्ध करने की ओर ईशारा करता है। कौओं को खाना एक विशेष पक्ष में खिलाया जाता है और जान्ह्वी है कि हर रोज खिलाती है। वह केवल प्रेम के दुश्मन समाज से ही नहीं धार्मिक मान्यताओं के भी परे जाकर अपना विद्रोह दिखाती है। वह उन कौओं के साथ अपना तादात्म्य देखती थी, उनके साथ वह भी उड़ जाना चाहती है। उड़ते हुए कौओं को देखकर वह इस समाज तथा संसार से जैसे कहीं दूर चली जाती है, परन्तु जल्दी ही उसे सच्चाई का आभास हो जाता है और वह फिर से वहीं खड़ी हुई अपने को पाती है। इस कहानी का पात्र ‘मैं’ कहता है – “उसके देखने में सचमुच कुछ दिखता ही था, यह मैं नहीं कह सकता। पर, कुछ ही पल के अनन्तर वह मानो वर्तमान के प्रति, वास्तविकता के प्रति चेतन हो आयी।”(1)

प्रेम करना समाज में जैसे गुनाह माना जाता है। जब जान्ह्वी अपनी सच्चाई पत्र के माध्यम से ब्रजनन्दन को बता देती है तो उसकी चाची कहती है – “वह लड़की आशनाई में फँसी थी। पढ़ी-लिखी सब एक जात की होती हैं।”(2) ऐसा लगता है जैसे जान्ह्वी ने प्रेम नहीं कोई अपराध कर दिया हो। यह केवल उस समय की सोच नहीं है बल्कि आज भी जब हमारा समाज इतना आगे निकल चुका है, शिक्षित हो चुका है फिर भी उसकी मानसिकता में कोई ज्यादा अन्तर दिखाई नहीं देता। आज भी अगर कोई लड़की प्रेम करती है तो समाज उसे तरह-तरह के उलाहने देता है, उसे कुलक्षणी, कलंकिनी आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। जान्ह्वी में जैसी चाची है वैसी स्त्री आज भी हमारे समाज में मिल जायेंगी।

अपने पात्रों के सम्बन्ध में जैनेन्द्र कहते हैं – “मेरा पात्र परिस्थितियों को धक्का देकर तोड़ने में उतना उद्यत मालूम नहीं होता। परिस्थिति में मिसमिताता है, लड़ता-झगड़ता है तो ऐसा मालूम होता है कि वह अपने साथ ज्यादा लड़ता-झगड़ता है – बाहर के साथ कम लड़ता है – चेतना परिस्थितियों का उपयोग करके अपने को विकसित कर सकती है। परिस्थिति को टक्कर देकर उसमें छेद या दरार करके चेतना विकास पाती है, ऐसा मैं नहीं मानता।”(3) परन्तु जैनेन्द्र की ‘जान्ह्वी’ अपनी परिस्थिति में मिसमिताती नही है बल्कि अपनी सच्चाई निःसंकोच बताती है। वह एक पत्र अपने भावी पति ब्रजनन्दन को लिखती है – “आप जब विवाह के लिए यहाँ पहुँचेंगे तो मुझे प्रस्तुत भी पाएँगे। लेकिन मेरे चित्त की हालत इस समय ठीक नहीं है और विवाह जैसे धार्मिक अनुष्ठान की पात्रता मुझमें नहीं है। एक अनुगता आपको विवाह द्वारा मिलनी चाहिए वह जीवन संगिनी भी हो। वह मैं हूँ या हो सकती हूँ इसमें मुझे बहुत सन्देह है।”(4) वह जिस तरह सत्य कहने का साहस दिखाती है ऐसा चरित्र जैनेन्द्र ने बहुत कम कहानियों में दिखाया है। जान्ह्वी के निर्णय को सफल बनाने में ब्रजनन्दन की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। क्योंकि वह कोई उपभोग की वस्तु नहीं खरीद रहा था बल्कि उसे जीवन संगिनी चाहिए। इससे स्पष्ट होता है कि ब्रजनन्दन रिश्तों की अहमियत को भली प्रकार समझता है। यदि ब्रजनन्दन विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता तो ‘जान्ह्वी’ भी ‘घूँघरु’, ‘एकरात’ आदि कहानियों की नायिकाओं की तरह ही होती जिनका मन प्रेमी के प्रति स्नेह रखता है परन्तु जिन्हें सामाजिक दबाव ने तन को तथाकथित पति को देने के लिए विवश कर दिया।

जैनेन्द्र ने अपनी कहानी ‘जान्ह्वी’ में आधुनिक नारी का चित्रण किया है। जो अपने मूल्यों पर जीवन जीना चाहती है तथा इस समाज की झूठी मान्यताओं से लड़ते हुए अपने जीवन को समाज की बलि नहीं चढ़ने देती। जान्ह्वी के पत्र से ब्रजनन्दन में आए बदलाव पर मधुरेश लिखते हैं – “जान्ह्वी के लिखे उस पत्र को अपने से अलग नहीं करता। प्रेम अपने प्रभाव में कैसा संक्रामक होता है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि बहुत ठाठ से रहने वाले ब्रजनन्दन में एक चमत्कारी परिवर्तन होता है।”(5) ब्रजनन्दन जान्ह्वी की सहजता तथा सच्चाई से उससे प्रेम करने लगता है। उसका प्रेम मात्र जान्ह्वी के शरीर को पाना नही है, वह जानता है कि उसके मन में किसी और के लिए प्रेम है, वह शादी से इन्कार कर देता है। जान्ह्वी के सच कहने के साहस तथा सादगी ने ब्रजनन्दन को भी बदल दिया। जान्ह्वी जैसी पात्र हिन्दी कहानी में पहले नहीं हुई। मधुरेश लिखते हैं – “जान्ह्वी अपने प्रिय की अन्तहीन प्रतीक्षा में शाश्वत विरह का प्रतीक बनकर खड़ी है। अपनी स्थितियों से न तो वह असंतुष्ट दिखती है और न ही संकेत से व्यंजित पारिवारिक, सामाजिक अवरोधों के प्रति उसके मन में कहीं विद्रोह की चेतना है। वह अपनी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ प्रेम के लिए समर्पित एक ऐसी नायिका है जो इससे पहले हिन्दी कहानी में दिखाई नहीं देती।”(6)

जैनेन्द्र ने जिस तरह से जान्ह्वी का चरित्र पाठकों के सामने रखा है वह अपने-आप में एक विद्रोह है और ऐसे लोगों को जान्ह्वी जवाब देती है जो स्त्री को अपना गुलाम समझते हैं। ऐसा नहीं है कि जान्ह्वी को यातनाएँ नहीं उठानी पड़ी होंगी लेकिन उसके साहस ने स्त्री को एक नया मार्गदर्शन दिया जो स्त्री के संकोच को खुल कर व्यक्त करने के लिए प्रेरणा देती है। वह जिस तरह बिना समाज से डरे अपने प्रेम की सच्चाई अपने भावी पति को बताती है वह इस समाज के मानदण्डों के प्रति विद्रोह ही है। आज के समय में जब कि प्रेम करने पर ऑनर किलिंग तथा खाप पंचायत द्वारा सजा सुनाई जाती है। ऐसी घटनाएँ हर रोज आती हैं, ऐसे में उस समय के समाज में जिसमें इतना विकास भी नहीं हुआ था जान्ह्वी अपने मानदण्डों पर जीती है। वह समाज द्वारा थोपे गए बन्धनों में बंधने से इन्कार करने का साहस दिखाती है। जैनेन्द्र ने जान्ह्वी के माध्यम से आधुनिक नारी का चरित्र प्रस्तुत किया है। परन्तु उस समय जो परिस्थितियाँ थीं उससे हमारा वर्तमान समाज बहुत आगे नहीं निकल पाया है। इस दृष्टि से जैनेन्द्र की कहानी आज भी प्रासंगिक है।

सन्दर्भ ग्रन्थ-

  1. जैनेन्द्र रचनावली, संपादक – डॉ. निर्मला जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, खण्ड-4, पेज नं. – 496
  2. वही, पेज नं. – 499
  3. कहानी : अनुभव और शिल्प, जैनेन्द्र कुमार, पूर्वोदय प्रकाशन, नई दिल्ली, पेज नं. – 46-47
  4. जैनेन्द्र रचनावली, डॉ. निर्मला जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, खण्ड-4, पेज नं. – 499
  5. कहानीकार जैनेन्द्र कुमार, मधुरेश, समान्तर प्रकाशन, पेज नं. – 89
  6. वही, पेज नं. – 87

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