जनकृति का दिसंबर अंक आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है।
Vol. 6, Issue 68, December 2020 वर्ष 6, अंक 68, दिसंबर 2020
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क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या | पीडीएफ़ | ||
अनुवाद | |||||
1. | असम का सांस्कृतिक पर्यटन : अनुवाद और निर्वचन की वर्तमान स्थिति एवं समस्याएँ: उज्जवल डेका बरुआ | 1-15 | |||
अल्पसंख्यक विमर्श | |||||
2. | मुंशी ज़का उल्लाह और डिप्टी नज़ीर अहमद के शैक्षिक कार्य: अब्दुल अहद | 16-25 | |||
इतिहास | |||||
3. | अकबर की धार्मिक नीति: जुगनू आरा | 26-31 | |||
कला-विमर्श | |||||
4. | मालवा लोक जीवन में राम की प्रासंगिकता: डॉ. अर्जुन सिंह पंवार | 32-35 | |||
5. | भक्तिकालीन हिन्दी रंगमंच में परंपराशील नाट्य शैलियों का योगदान: दीपा | 36-50 | |||
6. | बुजुर्गों का अकेलापन और हिन्दी सिनेमा: डॉ. आशा | 51-55 | |||
किन्नर-विमर्श | |||||
7. | बदलती अर्थनीति और किन्नर समुदाय : परिवर्तन एवं प्रभाव- भावना चोटिया | 56-62 | |||
दलित एवं आदिवासी विमर्श | |||||
8. | भारत में जाति समस्या: पूनम गुप्ता | 63-67 | |||
9. | सुशीला टाकभौरे कृत “नीला आकाश” उपन्यास में दलित जीवन का परिपेक्ष्य- उषा यादव | 68-72 | |||
10. | दलित शब्द का अर्थ: परिभाषा एवं अवधारणाएँ-डॉ. गोविंद कुमार | 73-78 | |||
11. | दलित राजनीति का उभार और शिव मूर्ति का कथा साहित्य: कौशल कुमार पटेल | 79-84 | |||
12. | दलित लोकजीवन का सौंदर्य प्रतीक ‘मुर्दहिया’: डॉ.राजेन्द्र परमार | 85-91 | |||
बाल -विमर्श | |||||
13. | प्रेमचंद की बाल कहानियों में नैतिकता: वंदना | 92-96 | |||
भाषिक-विमर्श | |||||
14. | आर्थिक मजबूती से बढ़ेगा हिन्दी का साम्राज्य: डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ | 97-99 | |||
शिक्षा-विमर्श | |||||
15. | बहुभाषी शिक्षा: समता और सामाजिक न्याय की ओर एक कदम: करन | 100-105 | |||
समसामयिक-विमर्श | |||||
16. | करोना महामारी और बेरोज़गारी: आरती शर्मा | 106-108 | |||
17. | आवां : विकलांगता और उसका प्रभाव- डॉ. संध्या कुमारी | 109-113 | |||
स्त्री- विमर्श | |||||
18. | हीरादेवी चतुर्वेदी : ‘रंगीन पर्दा’ और स्त्रियाँ- आरती यादव | 114-121 | |||
19. | स्त्री पाठ : दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता- दिनेश कुमार | 122-129 | |||
साहित्यिक-विमर्श | |||||
20. | सामाजिक ताना-बाना और स्वर्गवासी- प्रशांत कुमार यादव | 130-133 | |||
21. | समय के संदर्भ को दर्ज करता डायरी का गद्य (विशेष संदर्भ:मोहन राकेश की डायरी ): डॉ.दीना नाथ मौर्य | 134-141 | |||
22. | समकालीन हिंदी कविता का वर्तमान परिदृश्य: शुभम सिंह | 142-148 | |||
23. | सत्ता, साम्प्रदायिकता और ध्रुवीकरण की राजनीति बनाम समकालीन हिंदी कविता- डॉ.गंगाधर चाटे | 149-157 | |||
24. | ‘जारी है लड़ाई’ बनाम मुकम्मल आवाज- बृजेश प्रसाद | 158-162 | |||
25. | कविता का वर्तमान एवं औपनिवेशिकता: डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंघवी | 163-168 | |||
26. | ‘दायरा और ‘कांच’ कहानी में सामाजिक और आर्थिक चेतना का द्वंद’: ममता | 169-178 | |||
27. | बीसवीं सदी के उत्तरार्ध से अब तक प्रकाशित नवगीत रचनाओं का अनुशीलन: अशोक कुमार मौर्य | 179-186 | |||
28. | निर्मल वर्मा के चिन्तन में प्रकृति और पर्यावरण: डॉ. बीना जैन | 187-196 | |||
29. | ‘नंगातलाई का गाँव’ में ग्राम्य जीवन का चित्रण: सच्चिदानंद | 197-204 | |||
30. | मुक्तिबोध की जीविका का संघर्ष: ‘लेक्चररशिप के लिए मेरा जी अभी भी ललकता है।- रमेश कुमार राज | 205-213 | |||
31. | गुरु नानक देव की समाज में जीवन मूल्य की शिक्षा: जगदाले अप्पासाहेब गोरक्ष | 214-219 | |||
32. | ‘कसप’ में अभिव्यक्त रोमान और यथार्थ: शिखा | 220-225 | |||
33. | ‘कठगुलाब’:एब्यूज्ड स्त्री चिंतन से आगे की कथा: डॉ.वीरेन्द्र प्रताप | 226-232 | |||
34. | इक्कीसवीं सदी के हिन्दी उपन्यासों का सामाजिक परिदृश्य और भूमण्डलीकरण: जगदीश सिंह | 233-237 | |||
35. | अपने वज़ूद को तलाशती स्त्री ‘सुहाग के नूपुर’- डॉ शीला आर्या | 238-249 | |||
36. | श्रीमती यशोदा देवी की कहानियों का वैशिष्ट्य: डॉ. रुचिरा ढींगरा | 250-255 | |||
37. | ‘तीसरी कसम’ में प्रयुक्त लोकगीत: डा. पवनेश ठकुराठी | 256-258 | |||
38. | कृषि पद्धति का ऐतिहासिक विकास: डॉ सुशील कुमार | 259-267 | |||
39. | ‘सांस्कृतिक व राष्ट्रीय चिन्तक – कवि कन्हैयालाल जी सेठिया’: श्रीमति मंजू सारस्वत | 268-273 | |||
40. | कलि कथा वाया बाइपास में भूमंडलीकरण का प्रभाव एवं प्रतिरोध: सुगता ए आर | 274-278 | |||
41. | एक माँ के अस्तित्त्व की खोज : ‘1084वें की माँ ’- डॉ.भानुबहन ए. वसावा | 279-284 | |||
42. | हिन्दी यात्रा साहित्य में रामवृक्ष बेनीपुरी: करुणा सक्सेना | 285-289 | |||
प्रवासी साहित्य | |||||
43. | तेजेन्द्र शर्मा की कहानी खिड़की के अंदर-बाहर झांकती वृद्ध मनोस्थिति- मधु मेहता साथी | 290-292 |
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